निष्पक्ष और बिना सरकारी चाटुकारिता वाली पत्रकारिता सबसे खतरनाक पेशा, महिला पत्रकार को 7 साल की सजा

महिला पत्रकार मारिया रेसा पर जो फैसला आया, उससे अधिक बेशर्मी वाला कोई फैसला आ ही नहीं सकता था, और इसका असर केवल फिलीपींस पर ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के देशों के पत्रकारों पर होगा....

Update: 2020-06-17 12:07 GMT

जहां इस बार के नोबल पुस्कार के लिए विभिन्न श्रेणियों में 12 पुरुषों को किया गया है पुरस्कृत, वहीं महिलाओं में सिर्फ बहादुर पत्रकार मारिया को चुना गया है इस पुरस्कार के लिए

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। पिछले कुछ वर्षों से पूरी दुनिया में लगभग तानाशाह और सत्तालोभी सरकारों का कब्ज़ा हो गया है, और इसका खामियाजा पूरी आबादी झेल रही है, पर यह असर निष्पक्ष पत्रकार और मीडिया घराने अधिक भुगत रहे हैं।

हमारे देश में तो सत्ता के विरुद्ध बोलने की सजा पत्रकारों को रोज मिलती है, ब्राज़ील में भी यही हो रहा है। अमेरिका से तो पत्रकारों के पुलिस और प्रशासन द्वारा प्रताड़ना की खबरें खूब आने लगी हैं। अब फिलीपींस में एक महिला पत्रकार को मनीला की अदालत ने 7 वर्ष तक कैद की सजा सुनाई है।

अलायन्स ऑफ़ जर्नलिस्ट फ्रीडम के संस्थापक निदेशक पीटर ग्रेस्ते के अनुसार हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां कोई भी सरकार निष्पक्ष मीडिया घरानों या पत्रकारों को बर्दाश्त नहीं करना चाहतीं, उन्हें ऐसे पत्रकार पसंद हैं जो जनता को लूटती सरकारों की भी वाहवाही कर रहे हों। इस सन्दर्भ में देखें तो फिलीपींस में पत्रकार को सजा की खबर अचंभित नहीं करती।

हमारे देश का मीडिया तो अपने देश के पत्रकारों पर किये जा रहे सरकारी जुर्म की भी खबर नहीं रखता तो जाहिर है फिलीपींस की खबर तो अदृश्य ही रहेगी। पिछले सप्ताह मनीला की अदालत ने रापप्लेर डॉट कॉम नामक वेब न्यूज़ पोर्टल की संस्थापक मारिया रेसा और इसके रिसर्च राइटर रेनाल्डो संतोस को वर्ष 2012 में प्रकाशित एक आर्टिकल के लिए दोषी ठहराते हुए सात वर्ष के कारावास की सजा सुना दी।

हालांकि ये पत्रकार अभी बेल पर बाहर हैं और सर्वोच्च अदालत में अपील का मौका दिया गया है। पर यूरोपीय देशों के पत्रकार संगठन और कुछ सरकारें भी इस मामले को लेकर फिलीपींस सरकार की मुखर आलोचना कर रहे हैं। इन पत्रकारों को साइबर कानूनों के तहत दण्डित किया गया है, और सबसे आश्चर्यजनक यह है कि जब इस मुकदमे को सरकार की तरफ से दायर किया गया था। यानी वर्ष 2012 में फिलीपींस में कोई भी साइबर क़ानून था ही नहीं। मुक़दमा दायर करने के चार महीने बाद देश में पहला साइबर क़ानून बनाया गया था।

यूनाइटेड किंगडम एंड आयरलैंड नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के अनुसार इस मुकदमें में बेशर्मी से सरकार द्वारा तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया था, और सरकार के दबाव में न्यायाधीश ने उन्ही लचर आरोपों को सही माना। यह पूरा मामला एक सत्तालोभी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने के लिए दण्डित करने का है।

यूनाइटेड किंगडम के प्रेस की स्वतंत्रता के विशेष प्रतिनिधि अमल क्लूनी, जो इन पत्रकारों के एक वकील भी थे, ने फैसले के बाद कहा कि इससे अधिक बेशर्मी वाला कोई फैसला आ ही नहीं सकता था, और इसका असर केवल फिलीपींस पर ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के देशों के पत्रकारों पर होगा।

पूरे एशिया में निष्पक्ष और बिना सरकारी चाटुकारिता वाली पत्रकारिता पिछले कुछ दशकों से सबसे खतरनाक पेशा बन गयी है। कुछ समय पहले ही फ्रीडम हाउस की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया के लगभग सभी देशों में नागरिक स्वतंत्रता और निष्पक्ष पत्रकारिता को सरकारों द्वारा कुचला जा रहा है। फिलीपींस में पिछले 30 वर्षों के दौरान सरकारी आंकड़ों के अनुसार पुलिस, प्रशासन या फिर ड्रग माफियाओं द्वारा 145 से अधिक पत्रकार मारे जा चुके हैं।

जिस तरह हमारे देश में सरकार की नीतियों की खामियां उजागर करते पत्रकारों को देशद्रोही, अर्बन नक्सल और टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य के तमगे से सरकारें नवाजतीं हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प निष्पक्ष पत्रकारों को ठग कहते हैं, ठीक वैसे ही फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेरते भी पत्रकारों को खुलेआम जासूस और वैश्या की संतान जैसी उपाधियों से नवाजते हैं।

राष्ट्रपति रोड्रिगो मारे गए पत्रकारों के बारे में यह भी कहते हैं कि ये सभी पत्रकार इसी लायक थे। फिलीपींस की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी एबीएस-सीबीएन को सरकार की आलोचना करने के कारण बंद करना पड़ा। सबसे प्रतिष्ठित समाचारपत्र फ़िलिपीन डेली इन्क्वायरर को आलोचना के बाद सरकारी तौर पर इतना तंग किया गया कि इसके मालिक ने कंपनी बेच दी और इसे खरीदने वाले राष्ट्रपति के नजदीकी थे।

मारिया रेसा ने फैसले के ठीक बाद पत्रकारों और जनता को संबोधित करते हुए कहा कि यह फैसला दुखद तो है, पर अप्रत्याशित नहीं। जनता का आह्वान करते हुए कहा, यदि आप अपने अधिकारों का उपयोग नहीं करते हैं तो आप के अधिकार छीन लिए जाते हैं और सरकारें यही चाहती हैं।

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