कोरोना की भयावहता में लाशों पर बैठकर सबकुछ नियंत्रण में होने का कर रहे भारत जैसे देश
पूरी दुनिया इस भयावह दौर में भारत की मदद जरूर कर रही है, पर यहां की सरकारी निष्क्रियता, क्रूरता, मानवाधिकार हनन और स्वास्थ्य व्यवस्था की भी उतनी ही चर्चा कर रही है...
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। कोविड 19 के प्रसार के लगभग डेढ़ साल बाद अब दुनिया में तीन तरह के देश हैं। बेहद अमीर देश, जिन्होंने इस दौरान अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को पहले से बेहतर बनाया, कोरोनावायरस पर अनुसंधान किया और टीके की उपलब्धता सुनिश्चित की। दूसरी तरफ गरीब देश हैं, जिन्होंने अपने सीमित संसाधनों से कोविड 19 का मुकाबला किया पर आर्थिक तंगी के कारण टीके के सन्दर्भ में अमीर देशों से पिछड़ गए। तीसरे प्रकार के देशों में भारत, ब्राज़ील, मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं, जहां सरकारें लाशों पर बैठकर सबकुछ नियंत्रण में होने का दावा कर रही हैं।
हमारे देश में सरकार 5 ख़रब की अर्थव्यवस्था और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत का ख़्वाब दिखाकर देश को पूरा खोखला कर चुकी है। आज हालत यह है कि लोग कोविड 19 के साथ ही गरीबी और भुखमरी से भी मर रहे हैं। पर सरकार की प्राथमिकता चुनाव, कुम्भ, प्रधानमंत्री आवास और नया संसद भवन है।
सरकार की प्राथमिकता तय कराने में मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और न्यायालय खूब साथ दे रहे हैं। पिछले कुछ दिनों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय और लगभग सभी उच्च न्यायालयों ने केंद्र सरकार को खूब लताड़ लगाई, पर यह महज दिखावा से अधिक कुछ नहीं है, क्योंकि प्रताड़ना का यह हिस्सा किसी फैसले में नहीं लिखा जाता।
न्यायालयों का दिखावा इसलिए भी है, क्योंकि केंद्र सरकार का कोई भी आदेश का पालन न करना, न्यायालयों को आजतक कभी भी अवमानना नहीं लगा है। पूरी दुनिया इस दौर में भारत को मदद कर रही है, पर सरकार के अनुसार सबकुछ चंगा है। देश में ऑक्सीजन के किल्लत की गूँज पूरी दुनिया से आ रही है, पर सरकार अभी प्रधानमंत्री जी के नए आवास में व्यस्त है।
सरकारी निरंकुशता और क्रूरता के मामले में आज के दौर में अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, सूडान और यमन जैसे देश हमसे बेहतर है। कोविड 19 के इस दौर में इतना तो स्पष्ट हो गया है कि पिछले वर्ष के अंत में इसका नियंत्रण प्रधानमंत्री या सरकार की योजनाओं से नहीं हुआ था, बल्कि चुनाव और कुम्भ जैसे आयोजनों के लिए आंकड़ों की लीपापोती की गयी थी। लोग मरते रहे और चुनाव होते रहे। हमारे परधानमंत्री और गृहमंत्री चुनावी रैलियों में लगातार बने रहे, पर जबभी विकास की बात आती है या कोविड 19 से सम्बंधित उच्चस्तरीय मीटिंग की बात आती है तो वर्चुअल हो जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय हम दो महामारी एक साथ देख रहे हैं – एक अमीर देशों की, जहां सबकुछ सही में नियंत्रण में है, और दूसरी तरफ गरीब देश हैं जहां कोविड 19 से निपटने के लिए संसाधनों का घोर अभाव है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अमीर देश भी कोविड 19 के सन्दर्भ में भ्रम में हैं क्योंकि जबतक दुनिया से कोरोनावायरस समूल नष्ट नहीं होगा, तबतक सारे प्रयासों के बाद भी अमीर देश कभी सुरक्षित नहीं हो सकते। हालात यह है कि लगभग सभी अमीर देशों में कोविड 19 के मामले कम होने के बाद भी दुनिया में पिछले दो सप्ताह में कोविड के जितने मामले सामने आये हैं, उतने पिछले वर्ष के शुरू के 6 महीनों में भी नहीं देखे गए थे, इसका मुख्य कारण दक्षिण एशिया के देश है, जिनमें भारत प्रमुख है – जहां हरेक दिन नए रिकॉर्ड बन रहे हैं।
भारत के कोविड 19 के अनियंत्रित मामलों और सरकारी लापरवाही का असर अब बांगलादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों पर भी पड़ने लगा है। पिछले एक सप्ताह के भीतर कोविड 19 के मामलों में भारत में 10 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी है, पर यहाँ के आंकड़ों पर दुनिया का कोई भी देश और संस्था भरोसा नहीं कर रहे हैं।
इसी अवधि के दौरान कोविड 19 के कुल मामलों के सन्दर्भ में नेपाल में 105 प्रतिशत, मलेशिया में 15 प्रतिशत, श्रीलंका में 82 प्रतिशत, मालदीव्स में 69 प्रतिशत, इजिप्ट में 11 प्रतिशत, होंडुरस में 26 प्रतिशत और कोस्टारिका में 32 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गयी है। दूसरी तरफ कोविड 19 के मामलों में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना में क्रमशः 10, 12, 27, 16, 54, 32 और 12 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। यूनिसेफ़ ने भी हाल में ही कहा है कि हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि कोविड 19 को हम नियंत्रित करने लगे है।
दुनिया में कोविड 19 के कुल 70 करोड़ टीके लगाए गए हैं, जिसमें से महज 0.2 प्रतिशत टीके गरीब देशों में लगाए गए हैं। यूनाइटेड किंगडम के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डोन ब्राउन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक कार्यक्रम में कहा है कि कोरोनावायरस भले ही प्राकृतिक हो, पर अब इसका विस्तार मानव स्वयं कर रहा है और इससे निपटने के सन्दर्भ में दुनिया में जो असमानता उपजी है उससे अब हम यह निर्धारित करने लगे हैं कि किसे जिन्दा रहना चाहिए और किसे मार दिया जाना चाहिए।
गॉर्डोन ब्राउन ने ही सबसे पहले कोविड 19 के टीके को पेटेंट के दायरे से बाहर करने की वकालत की थी, जिसका समर्थन विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के अनेक देश कर रहे हैं।
पूरी दुनिया इस दौर में भारत की मदद जरूर कर रही है, पर यहां की सरकारी निष्क्रियता, क्रूरता, मानवाधिकार हनन को दुबे हुई स्वास्थ्य व्यवस्था की भी उतनी ही चर्चा कर रही है। पुरानी कहावत है कि संकट में ही किसी का असली चरित्र उजागर होता है, और कोविड 19 ने प्रधानमंत्री का असली चेहरा और नरसंहारी चरित्र दुनिया को दिखा दिया। एक नकाब दुनिया के सामने तो उतर गया, पर क्या अगले चुनावों में जनता नकाब उतार पायेगी?