स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव निकायों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे ट्रंप, बार-बार कोशिशें हुईं नाकाम
अमेरिका और भारत में एक और बड़ी समानता है, ट्रम्प वर्ष 2016 में राष्ट्रपति बनाने के समय से लगातार इस वर्ष के चुनावों की तैयारी में जुटे थे, उनका हरेक काम, हरेक भाषण बस अगले चुनाव की तैयारी थी, यहाँ तक कि उन्होंने कोविड 19 को भी दरकिनार कर दिया और लोगों को मरने दिया....
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
प्रधानमंत्री मोदी जी हरेक अंतर्राष्ट्रीय मंच से वसुधैव कुटुम्बकम पर जरूर चर्चा करते हैं और यह बिलकुल सही भी लगता है। दुनियाभर के देशों की अधिकतर सरकारें एक जैसा ही व्यवहार कर रही हैं। अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति ट्रम्प के पास कोई मुद्दा नहीं था, इसलिए वे केवल लोगों को भड़काते रहे और विपक्षी उम्मेदवार पर अनर्गल आरोप लगाते रहे। दूसरी तरफ, डेमोक्रेट उम्मीदवार और संभवतः अगले राष्ट्रपति जो बिडेन मुद्दों की बातें पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कर रहे थे। हमारे देश में बिहार विधान सभा के चुनावों के दौरान ऐसा ही हो रहा है।
सत्ता में बैठे दल, प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, बीजेपी के अध्यक्ष – सबके भाषणों में जनता के सरोकार की कहीं कोई बात नहीं थी। इस भाषणों में राम का जयकारा, मां भारती का जयकारा, पंद्रह साल पहले तथाकथित जंगल राज, राम मंदिर जैसे विषय के साथ विपक्षी नेताओं पर अनर्गल हमले के अलावा कुछ नहीं था। आश्चर्य यह होता है कि पूरे देश को जंगलराज में झोकने वाले नेताओं को यह सब कहने में कोई शर्म भी नहीं आती. दूसरी तरफ विपक्ष, विशेष तौर पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव लगातार रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन की बाते कर रहे हैं। बीजेपी बिहार के लोगों को कश्मीर के अनुच्छेद 370 और नागरिकता क़ानून के बाद लोगों को बाहर करने की बात कर रही है।
ट्रम्प भी चुनाव के बहुत पहले से लगातार अपनी जीत के दावे करते रहे हैं। बीजेपी भी लगातार ऐसा ही कर रही है। देश के गृह मंत्री, अपना केन्द्रीय मंत्री का काम काज छोड़कर पश्चिम बंगाल में डेरा जमाये हुए हैं और अभी से ही वहां के चुनावों में दो-तिहाई बहुमत की बातें कर रहे हैं। अमेरिका और भारत में बस अंतर इतना है कि अमित शाह जो बोलते है, वह चुनाव आयोग के लिए एक सन्देश होता है कि चुनावों में किस हद तक धांधली करनी है जिससे दो-तिहाई सीटें बीजेपी के खाते में आ सकें।
दूसरी तरफ, बेचारे ट्रम्प स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव निकायों को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं। बार-बार चुनावी गिनती रोकने की बात कर रहे हैं, पर कोई सुन नहीं रहा है। भारत में ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती, बीजेपी के एक अदने से नेता की बात भी चुनाव आयोग ध्यान से सुनता है और वैसा ही करने लगता है। ट्रम्प ने पोस्टल बैलेट को रोकने के लिए पिछले तीन महीनों से अनवरत प्रयास किया है, पर यह रुका नहीं।
अमेरिका और भारत में एक और बड़ी समानता है। ट्रम्प वर्ष 2016 में राष्ट्रपति बनाने के समय से लगातार इस वर्ष के चुनावों की तैयारी में जुटे थे, उनका हरेक काम, हरेक भाषण बस अगले चुनाव की तैयारी थी। यहाँ तक कि उन्होंने कोविड 19 को भी दरकिनार कर दिया और लोगों को मरने दिया। लोग मरते रहे, संक्रमण फैलता रहा और ट्रम्प कोविड 19 के आंकड़ों और वैज्ञानिकों की चेतावनी को दरकिनार करते रहे। हमारे देश में भी ऐसा ही किया जा रहा है।
सरकार का एक-एक कदम केवल छद्म राष्ट्रवाद और दक्षिणपंथी विचारधारा को बढाने वाला है। कोविड 19 के सन्दर्भ में दोनों देशों के सरकारों की भूमिकाएं बिलकुल एक जैसी रही हैं। यहां हम कभी तालियाँ और थालियाँ बजाते रहे, कभी मोमबत्तियां जलाते रहे तो कभी करोड़ों श्रमिकों का अभूतपूर्व पलायन देखा। इन सबसे परे, सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही और काढ़ा पीने की सलाह देती रही।
ट्रम्प के चुनाव प्रचार में शामिल होने के पहले शपथ लेनी होती है कि आप देशभक्त हैं, पर ट्रम्प ने ऐसी देशभक्ति दिखाई जिससे अमेरिका स्पष्ट तौर पर दो हिस्सों में बट गया। हमारे देश में भी प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े नेता ऐसी ही देशभक्ति दिखाने पर तुले हैं। देश भी छद्म देशभक्तों और राजद्रोहियों में स्पष्ट तौर पर बंट गया है। इस तरह देश का विभाजन तो अंग्रेज भी 200 वर्षों में नहीं कर पाए थे, जैसा इनलोगों ने 6 वर्षों में कर दिया है।
लगातार आशंका जताई जा रही है कि ट्रम्प हार के बाद भी वाइट हाउस छोड़ेंगें या नहीं। इस मामले में भारत की स्थिति अलग है और कुछ ऐसा होता है जो दुनिया में कहीं नहीं होता है। हमारे देश में जब चुनाव होते हैं तब बीजेपी को बहुमत मिले या नहीं मिले पर कुछ समय बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त और जांच एजेंसियों की सक्रियता के बाद सरकार बीजेपी की ही बन जाती है। यह सब खुले आम पूरी बेशर्मी से किया जाता है।
अमेरिका और भारत दोनों देशों में सत्ता में बैठे नेता लगातार विपक्ष पर हमले को जायज करार देते हैं और इसे हवा भी देते हैं। ट्रम्प अमेरिका में यही कर रहे हैं और अमित शाह ममता दीदी को उखाड़ फेंकने की बातें कर रहे हैं। यह निश्चित तौर पर उनके कार्यकर्ताओं के लिए सन्देश है कि जहां मौका मिले, हमला करो। दोनों देशों में चुनाव को वर्तमान सरकारें एक युद्ध की तरह देखती हैं, जिसमें अपने सभी हथियारों का उपयोग जायज हो जाता है। पर, जनता को यह ध्यान रखना चाहिए कि युद्ध से केवल बेगुनाह जनता का ही नुकसान होता है, नेताओं का नहीं।