संकट में नेपाल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ओली: कम्युनिस्ट पार्टी से निकाला, सदस्यता भी रद्द

ओली के खिलाफ पार्टी में काफी समय से बगावत के सुर बुलंद हो रहे थे, पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहन उर्फ प्रचंड के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरुद्ध एक अलग गुट बन गया था...

Update: 2021-01-24 18:08 GMT

जनज्वार। नेपाल में काफी समय से चल रहे सियासी घमासान के बीच कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल दिया गया है। इसके साथ ही पार्टी की उनकी सदस्यता भी रद्द कर दी गई है।

बता दें कि ओली के खिलाफ पार्टी में काफी समय से बगावत के सुर बुलंद हो रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहन प्रचंड के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी में उनके विरुद्ध एक अलग गुट बन गया था।

पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की अगुआई वाले गुट की सेंट्रल कमिटी की रविवार को हुई बैठक में ओली को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

विरोधी गुट के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, 'उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई है।' उल्लेखनीय है कि पिछले साल 22 दिसंबर को ओली को कम्युनिस्ट पार्टी में सह अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अपने गुट के समर्थकों को संबोधित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा कि ओली ने न सिर्फ पार्टी के संविधान और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, बल्कि नेपाल के संविधान की मर्यादा का भी उल्लंघन किया और लोकतांत्रिक रिपब्लिक प्रणाली के खिलाफ काम किया।

ओली का विरोधी गुट उनकी ओर से पिछले साल 20 दिसंबर को संसद को भंग किए जाने के फैसले से नाराज है। ओली ने संसद को भंग करते हुए इस साल अप्रैल मई में चुनाव कराने की घोषणा की है। ओली के इस फैसले पर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मुहर लगाई थी।

इससे पहले एनसीपी के अलग गुट के नेता पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने शुक्रवार को राजधानी काठमांडो में एक बड़ी सरकार विरोधी रैली निकाली थी। इस रैली में उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा संसद को अवैध तरीके भंग किए जाने से देश की संघीय लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी अब अघोषित रूप से दो भागों में बंट चुकी है। इसमें एक धड़े का नेतृत्व पीएम ओली कर रहे हैं, जबकि विरोधी गुट की कमान प्रचंड के हाथ में है। ऐसे में दोनों ही गुट पार्टी और चुनाव चिन्ह के ऊपर अपना दावा कर सकते हैं। इस मामले के कोर्ट में जाने के ज्यादा आसार हैं। चुनाव आयोग की सलाह पर नेपाली सुप्रीम कोर्ट किसी एक के हिस्से में फैसला सुना सकता है।

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