Saudi Government ने तब्लीगी जमात पर लगाया बैन, जानें इसके बारे में सबकुछ

सऊदी सरकार ने मस्जिद के धर्मोपदेशकों को आदेश जारी कर हर शुक्रवार को तब्लीगी जमात के खिलाफ लोगों को आगाह करने को कहा है।

Update: 2021-12-11 11:12 GMT

सऊदी अरब की सरकार ने सुन्नी इस्लामी आंदोलन तब्लीगी जमात पर बैन लगा दिया है। सरकारी बयान में तब्लीगी जमात को "आतंकवाद के द्वारों में से एक" करार दिया गया है। सऊदी इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने एक ट्वीट में कहा कि मस्जिद में धर्मोपदेशकों को आदेश दिया गया है कि वे लोगों को तब्लीगी जमात की गतिविधियों और सरकारी आदेशों के बारे में आगाह करें। साथ ही शुक्रवार को जमात के बारे में लोगों को डिटेल जानकारी दें।

सऊदी इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि तबलीगी जमात अपने मुख्य मकसद से भटक गया है। अब गलत कार्यों को अंजाम देना ही इसकी विशेष पहचान है। शुक्रवार को धर्मोपदेश लोगों को इसके खतरों के प्रति आगाह करें।

कई देशों की खुफिया एजेंसियों की है इस पर नजर

यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस ने तब्लीगी जमात को एक "इस्लामी पुनरुत्थानवादी संगठन" मानता है। आतंकवादी गति​विधियों में सलिप्तता की वजह से यह संगठन सतर्कता एजेंसियों की रडार पर है। ऐसा माना जा रहा है कि इसका मकसद ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका व अन्य देशों में 'आतंकवाद को बढ़ावा देना है।

2020 में इस वजह से रहा सुर्खियों में

साल 2020 में भारत में लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने को लेकर दुनिया भर चर्चा का​ विषय बना था। निजामुद्दीन स्थित मरकज में तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था। इनमें से 10 से ज्यादा लोगों की मौत भी हुई थी। प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक तब्लीगी जमात पश्चिमी यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण एशिया सहित दुनिया भर के लगभग 150 देशों में सक्रिय है। दक्षिण एशिया में खासकर इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान और थाईलैंड में तब्लीगी जमात की बहुत बड़ी संख्या है।

1926 से है अस्तित्व में

यह संगठन 1926 में भारत में अस्तित्व में आया था। तब्लीगी जमात ( सोसाइटी फॉर स्प्रेडिंग फेथ ) एक सुन्नी इस्लामिक मिशनरी आंदोलन है, जो मुसलमानों से सुन्नी इस्लाम के शुद्ध रूप में लौटने और धार्मिक रूप से चौकस रहने की अपील करता है। विशेष रूप से ड्रेसिंग सेंस, व्यक्तिगत व्यवहार और अनुष्ठानों को लेकर काफी सख्त है। दुनिया भर में इसके 35 से 40 करोड़ इसके सदस्य हैं। संगठन का दावा है ​कि उनका ध्यान केवल धर्म पर है और वे राजनीतिक गतिविधियों और बहस से सख्ती से बचते हैं।

तब्लीगी जमात की आधिकारिक रूप से स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है। मोहम्मद इलियास का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के कांधला गांव में हुआ था। उनके जन्म की ठीक तारीख पता नहीं है। इतना पता है कि 1303 हिजरी यानी 1885/1886 में उनका जन्म हुआ था। कांधला गांव में जन्म होने की वजह से ही उनके नाम में कांधलवी लगता है। उनके पिता मोहम्मद इस्माईल थे और माता का नाम सफिया था। एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चौथाई कुरान को मौखिक तौर पर याद किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निजामुद्दीन में कुरान को पूरा याद किया। उसके बाद अरबी और फारसी की शुरुआती किताबों को पढ़ा। बाद में वह रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का निधन हो गया। 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया।

इलियास ने हरियाणा के मेवात में बतौर मिशनरी मैन के रूप में काम करना शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमान ने मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का ख्याल आया।

मरकज का मतबल क्या होता है?

बड़े-बड़े शहरों में जमात का एक सेंटर होता है। इन सेंटरों पर जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज कहा जाता है। उर्दू में इसका इस्तेमाल मरकज, इंग्लिश में सेंटर और हिंदी में केंद्र के रूप में होता है।

जमात क्या चीज है?

उर्दू में इस्तेमाल होने वाले जमात शब्द का मतलब किसी एक खास मकसद से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीगी जमात को समर्पित कर देते हैं। इस दौरान उनका अपने घर, कारोबार और सगे-संबंधियों से कोई संबंध नहीं होता है। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रोजाना के कामों में लगते हैं। वे गांव-गांव, शहर-शहर, घर-घर जाकर लोगों के बीच इस्लाम की बातें फैलाते हैं और लोगों को अपने साथ जुड़ने का आग्रह करते हैं। इस तरह उनके घूमने को गश्त कहा जाता है। जमात का एक मुखिया होता है जिसको अमीर-ए-जमात कहा जाता है। गश्त के बाद का जो समय होता है, उसका इस्तेमाल वे लोग नमाज, कुरान की तिलावत और जिक्र ( प्रवचन ) में करते हैं।

तब्लीगी जमात 6 सिद्धांतों पर आधारित है

1.  ईमान यानी पूरी तरह भगवान पर भरोसा करना।

2.  नमाज पढ़ना

3.  इल्म ओ जिक्र यानी धर्म से संबंधित बातें करना

4.  इकराम-ए-मुस्लिम यानी मुसलमानों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना।

5.  इख्लास-ए-नीयत यानी नीयत का साफ होना

6. रोजाना के कामों से दूर होना

तालीम और फजाइल-ए-आमाल

फजाइल-ए-आमाल तब्लीगी जमात के बीच पवित्र किताब है। उस किताब में उनके छह सिद्धांत से संबंधित बातें है। दोपहर की नमाज के बाद तब्लीगी जमात से जुड़े लोग एक कोने में जमा हो जाते हैं। वहां कोई एक व्यक्ति फजाइल-ए-आमाल पढ़ता है और बाकी लोग ध्यान से सुनते हैं।

इज्तिमा या जलसा


रायवंड का इज्तिमा

अक्टूबर के महीने में इस इज्तिमा का आयोजन होता है। यह जलसा तीन दिनों के लिए पाकिस्तान में लाहौर के करीब रायवंड में होता है। इसमें दुनिया भर के तब्लीगी जमात से जुड़े लोग शिरकत करते हैं।

बांग्लादेश का इज्तिमा

हर साल के आखिर में आयोजित होता है। यह बांग्लादेश के कई अलग-अलग शहरों में कई दिनों तक जारी रहता है। इस इज्तिमा में पूरा बांग्लादेश उमड़ पड़ता है।

भोपाल इज्तिमा

साल के आखिरी में यानी दिसंबर में मध्य प्रदेश के भोपाल में यह इज्तिमा होता है। इसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। पहले यह भोपाल की मस्जिद ताजुल मसाजिद में होता था। वहां जगह कम पड़ने लगी तो शहर के करीब में ईट खेड़ी नाम की जगह पर होने लगा।

तब्लीगी जमात के मरकज

भारत में दिल्ली के निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद में तब्लीगी जमात का मरकज है। दुनिया भर में तब्लीगी जमात के बीच इस मरकज की हैसियत तीर्थस्थल जैसी है।

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