श्रीलंका विद्रोह के चार चेहरे जिन्होंने राष्ट्रपति को भागने पर किया मजबूर

श्रीलंका ( Sri Lanka ) के लोगों ने राजपक्षे परिवार के कुशासन से लगभग मुक्ति पा ली है। कोलंबों में आंदोलनकारियों का राज है लेकिन बहुत कम लोग हैं कि परिवारवादी सरकार की सत्ता को हिलाने के पीछे किसका हाथ है।

Update: 2022-07-14 06:55 GMT

श्रीलंका जारी आंदोलन के पीछे चार प्रमुख चेहरों में बाएं से दाएं क्रमश: सत्य चरित, जीवंत पेइरिस, रु​बांति डि चिकेरा और चमीरा डेडुवगे। 

कोलंबो। पिछले कुछ महिनों से श्रीलंका ( Sri lanka ) में जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है। नौ जुलाई को राष्ट्रपति आवास पर कब्जे के बाद लोगों ने पीएम पर भी अपना गुस्सा निकाला और उनके निजी घर को फूंक डाला। उसके बाद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ( President Gotbaya Rajpakshe ) देश छोड़कर भाग चुके हैं। प्रधानमंत्री का जाना तय माना जा रहा है। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे जो कि कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हैं ने शर्तों के साथ इस्तीफे की पेशकश पहले ही कर चुके हैं।

कुल मिलाकर कोलंबों में आंदोलनकारियों का राज है। यानि राजपक्षे परिवार की तानाशाही से लोगों ने लगभग मुक्ति पा ली है लेकिन बहुत कम लोग हैं जो इस बात को जानते हैं कि परिवारवादी सरकार की सत्ता को हिलाने के पीछे किसका हाथ है। आइए, हम आपको उन चार चेहरों के बारे में बताते हैं जिन्होंने ऐसा कमाल कर दिखाया।

फेसबुक यूजर्स के जरिए देश के कोने-कोने तक पहुंचे : चमीरा देडुवगे

दरअसल, आर्थिक संकट के बीच परिवारवादी सरकार को उखाड़ फेंकने के पीछे नाटककार, डिजिटल मार्केटिंग प्रोफेशनल, कैथोलिक पादरी और मार्केटिंग प्रोफेशनल ने अहम भूमिका निभाई है। इनमें पहला नाम है कि विज्ञापन कंपनी के डिजिटल रणनीतिकार चमीरा देडुवगे का। उनका कहना है कि हमने अलगलाया यानि आंदोलन के लिए प्रमुख लोगों से बैठकें कर कोर टीम व रणनीति बनाई। आम नागरिकों, विपक्षी दलों, श्रमिक संगठनों, विद्यार्थियों से आनलाइन और घर-घर जाकर संपर्क किया। 50 लाख घरों और 80 लाख यूजर्स वाले फेसबुक को जोड़कर देश के हर कोने तक पहुंचे। 9 मई को पीएम महिंदा राजपक्षे और 9 जून को उनके छोटे भाई बासिल के दफ्तर और आवास पर कब्जा किया। उसके बाद राष्ट्रपति भवन पर कब्जे की तारीख 9 जुलाई रखी, जिस पर सफलतापूर्वक अमल किया।

मध्य वर्ग और गरीब ने राजपक्षे परिवार को उखाड़ फेंका : रुबांती डि चिकेरा

नाटककार और सामाजिक कार्यकर्ता रुबांती डि चिकेरा का कहना है कि राजपक्षे परिवार की तानाशाही और कुशासन की वजह से आर्थिक संकट के जंजाल में श्रीलंका फंसा। आर्थिक संकट की वजह से सबसे ज्यादा मध्य वर्ग परेशान है। मैं अलगलाया के लिए कोर ग्रुप में शामिल होने के बाद पूरे कोलंबो में लोगों से उनके घरों पर जाकर मिली। खासतौर से मध्य वर्ग और गरीब वर्ग के लोगों से हालात पर बात की, उन्हें प्रेरित किया। यही वर्ग देश के विकट हालात में सबसे ज्यादा पिस रहा था। 20 साल से शासन कर रहे राजपक्षे के खिलाफ मार्च में पहली बार यही लोग हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरे और अगरलाया शुरू किया।

आंदोलन को सफल बनाने में हर उम्र के लोगों का योगदान : जीवंत पेइरिस

कैथोलिक पादरी जीवंत पेइरिस का कहा है कि राजपक्ष परिवार के कुशासन के खिलाफ हर उम्र वर्ग के लोगों का योगदान है। उनके दम पर ही आंदोलन सफल रहा। मैं, पुलिस से संघर्ष के समय भीड़ का नेतृत्व करने वालों में शामिल हुआ। उम्मीद थी कि 10 हजार लोग जमा होंगे। क्योंकि आवाजाही पर कई पाबंदियां और प्रतिबंध थे लेकिन संख्या कई गुना बढ़ गई। खास बात थी कि प्रदर्शन में कई वृद्ध युवा, किशोर और महिलाएं शामिल थे। सभी ने बराबर योगदान दिया जिससे एक दूसरे को न केवल प्रोत्साहन मिला, बल्कि पुलिस से संघर्ष के दौरान साहस भी बढ़ाया।

सुरक्षा बलों पर भारी पड़े आंदोलनकारी : सत्य चरित

मार्मेटिंग प्रोफेशनल सत्य चरित का कहना है कि राजपक्षे परिवार के प्रति असंतोष पहले से ही था। मैं कोलंबो से 20 किलोमीटर दूर रहते हुए जुलाई में संघर्ष से जुड़ा। परिचितों को प्रेरित किया और 9 जुलाई को 2000 लोगों को लेकर कोलंबो पहुंचा। हमने अधिकतर लोगों को फेसबुक और व्हाट्सऐप से जोड़ा। मेरे जैसे सैकड़ों लोग बड़े समूह लेकर पहुंचे थे। हमें उम्मीद थी कि दस हजार लोग सुरक्षाबलों पर भारी पड़ेंगे। बाकी बैरिकेड हटाकर विभिन्न हिस्सों को कब्जा करते जाएंगे।

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