कौन हैं सलमान रुश्दी? किस देश की कट्टरपंथी सरकार ने उनकी हत्या करने पर 30 लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की थी

Salman Rushdie News : सलमान रुश्दी का खानदानी सरनेम देहलवी होता था। उनके दादा का नाम ख्वाजा मोहम्मद दिन खालिकी देहलवी था। ये तो उनके पिता अनीस अहमद थे जिन्होंने परिवार को रुश्दी की पहचान दी।

Update: 2022-08-13 04:42 GMT

कौन हैं सलमान रुश्दी? किस देश की कट्टरपंथी सरकार ने उनकी हत्या करने पर 30 लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की थी

Salman Rushdie News : 75 साल पहले मुंबई में पैदा हुए ब्रिटिश-भारतीय मूल के कालजयी उपन्यास मिडनाइट चिल्ड्रन के रचनाकार और बुकर अवार्ड विजेता सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie ) पर 12 जुलाई को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में एक कार्यक्रम के दौरान 33 साल बाद जानलेवा हमला हुआ। फिलहाल उनकी हालत गंभीर है। न्यूयॉर्क के अस्पताल में उनका इलाज जारी है। ताजा अपडेट यह है कि अभी वो जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं लेकिन इस तरह का हमला करने और जान से मारने की धमकी उन्हें काफी पहले से मिलती रही है। अब लोग यह जानना चाह रहे हैं कि आखिर उन्हें कौन मारना चाह रहा है, कट्टरपंथी उन्हें क्यों मारना चाहते हैं, कब से है उनकी जान को खतरा।

ईरान ने की थी इनाम देने की घोषणा

दरअसल, दुनिया के चर्चित उपन्यासकार सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie ) ने कई किताबें लिख्ी हैं लेकिन द सैटेनिक वर्सेज किताब की वजह से वो विवादों में आ गए। यह एक ऐसा विवाद है जो उनके साथ जिंदगीभर बना रहेगां उनकी इस किताब को इस्लाम विरोधी और ईश निंदा करने वाला माना जाता है। 1980 के दशक में उन्हें ईरान से जान से मारने की धमकियां मिलीं। ये किताब 1988 से ही ईरान में बैन है। इसकी वजह से सलमान रुश्दी हमेशा चरमपंथियों के निशाने पर रहे।

ईरान ने ऐलान किया था कि जो भी व्यक्ति सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie ) को मारेगा उसे 30 लाख डॉलर का इनाम दिया जाएगा। ईरान में गणतंत्र के संस्थापक और देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खुमैनी ने उनके खिलाफ 1989 में ये फतवा जारी किया था। बाद में ईरान सरकार ने उनके फतवे को खुमैनी का निजी मसला बताया था। साल 2012 में भी सलमान रुश्दी को जान से मारने की फिर धमकी मिली और ईरान के एक धार्मिक संगठन ने ईनाम की राशि को बढ़ाकर 33 लाख डॉलर कर दिया।

कौन हैं सलमान रुश्दी

सर अहमद सलमान रुश्दी जन्म 19 जून 1947 को मुंबई में हुआ था। वह एक ब्रिटिश-भारतीय उपन्यासकार और निबंधकार हैं। उन्हें अपने दूसरे उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन 1981 से दुनियाभर में प्रसिद्धि मिली। इस उपन्यास को 1981 में बुकर पुरस्कार मिल चुका है। उनके अधिकांश प्रारंभिक उपन्यास भारतीय उप महाद्वीप पर आधारित हैं। उनकी कृतियों की प्रमुख विषय-वस्तुएं पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के बीच कई रिश्तों के जुड़ने, अलग होने और देशांतरणों की कहानी पर केंद्रित होती हैं।

सलमान रुश्दी का खानदानी सरनेम देहलवी होता था। उनके दादा का नाम ख्वाजा मोहम्मद दिन खालिकी देहलवी था। ये तो उनके पिता अनीस अहमद थे जिन्होंने परिवार को रुश्दी की पहचान दी। ब्रिटिश राज के दौरान उनके पिता ने कैंब्रिज से शिक्षा पाई और इसी दौरान उन पर महान इस्लामिक दार्शनिक इब्न रुश्द का प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपने सरनेम को बदलकर रुश्दी कर दिया। इस बारे में एक बार सलमान रुश्दी ने कहा भी था कि मेरे वालिद को इब्न रुश्द का काम पसंद आया इसलिए उन्होंने हमारा पारिवारिक नाम रुश्दी रख लिया। मेरे हिसाब से मेरे अब्बा ने सही चीज को चुना।

हिजबुल्लाह का पहला प्रयास रहा असफल

3 अगस्त 1989 को हिजबुल्ला का सदस्य मुस्तफा महमूद माजेह सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie ) की हत्या करने के लिए पैडिंगटन सेंट्रल लंदन के एक होटल में आरडीएक्स विस्फोटक से भरा हुआ एक किताब बम तैयार कर रहा था तो बम समय से पहले ही फट गया, जिसमें होटल की दो मंज़िलें बाहर आ गईं और माजेह की मृत्यु हो गई। एक अज्ञात एक लेबानीज संगठन ऑर्गनाईज़ेशन ऑफ द मुजाहिदीन ऑफ इस्लाम ने कहा कि वह इस्लाम विरोधी रुश्दी पर एक हमले की तैयारी में मारा गया। तेहरान के बेहेश्ट जहरा कब्रिस्तान में मुस्तफा महमूद माज़ेह के लिए एक मकबरा है जिस पर लिखा है कि वह लंदन में शहीद 3 अगस्त 1989। बाद में मुस्तफा महमूद माजेह सलमान रुश्दी को मारने के मिशन पर मरने वाला पहला शहीद घोषित हुआ। माजेह की मां को ईरान में स्थानांतरण के लिए आमंत्रित किया गया और इस्लामिक वर्ल्ड मूवमेंट ऑफ मार्टर्स कमेमोरेशन ने उसके मकबरे को उस कब्रिस्तान में बनाया जिसमें ईरान-इराक युद्ध में मारे गए हजारों सैनिकों की कब्रें हैं। 2006 जीलैंड्स पोस्टेन मोहम्मद कार्टून विवाद के दौरान हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह ने घोषणा की कि गर पाखंडी सलमान रुश्दी के खिलाफ इमाम खुमैनी के फतवे को पूरा करने के लिए कोई मुस्लिम हुआ होता तो यह निम्न वर्गीय जिसने डेनमार्क, नार्वे और फ्रांस में हमारे पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने की हिम्मत रुश्दी नहीं करता। आज भी मुझे भरोसा है कि लाखों मुसलमान ऐसे हैं जो अपने पैगंबर के सम्मान की रक्षा के लिए जीवन देने के लिए तैयार हैं और हमें इसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहना चाहिए। हेरिटेज फाउंडेशन के जेम्स फिलिप्स ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने गवाही दी कि मार्च 989 का एक विस्फोट रुश्दी की हत्या के लिए हिजबुल्लाह का एक प्रयास था।

सेफ हाउस में रहने को मजबूर हुए रुश्दी

ईरान की तरह भारत में सलमान रुश्दी ( Salman Rushdie ) की द सैटेनिक वर्सेज पहले से बैन थी। जब 1989 में ईरान ने उनके खिलाफ फतवा जारी किया, उसके कुछ ही दिन बाद मुंबई में एक दंगे में 12 लोगों की मौत हो गई। इंग्लैंड की सड़कों पर न सिर्फ सलमान रुश्दी के पुतले जला गए बल्कि उनकी किताब की प्रतियां भी जलाई गईं। सैटेनिक वर्सेज किताब की वजह से रुश्दी लगभग एक दशक से भी ज्यादा समय तक फ हाउस में रहने को मजबूर रहे लेकिन उन्होंने लिखना बंद नहीं किया। धीरे-धीरे उन्होंने वापस सामान्य जनजीवन जीना शुरू किया। वह पार्टियों और समारोहों में नजर आने लगे लेकिन ताजा हमले के बाद एक तो उनकी जान खतरे में है, दूसरी बात ये कि संभवतः अब वो पहले की तरह काम न पायें।




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