DDU : एक ही दिन में 4 सीटिंग में परीक्षा को शिक्षकों ने बताया कुलपति की तानाशाही, आंदोलन की दशा में छात्रों के भविष्य के साथ होगा खिलवाड़
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
DDU Gorakhpur : नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के सेमेस्टर परीक्षा पहली बार चार सीटिंग में कराने के फैसले का शिक्षकों ने विरोध शुरू कर दिया है। 29 अक्टूबर को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ गुआक्टा ने गहरी नाराजगी जताते हुए इस पर जल्द ही ठोस निर्णय लेने का ऐलान किया।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय व उससे संबद्ध महाविद्यालयों में सेमेस्टर परीक्षा 29 अक्टूबर से शुरू होने वाली थी। इसमें संशोधन कर अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2 नवंबर से परीक्षा कराने का निर्णय लिया है। पहली बार विश्वविद्यालय की परीक्षा चार पालियों में होने जा रही है, इसको लेकर गुआक्टा के अध्यक्ष प्रो.के.डी. तिवारी और महामत्री प्रो.धीरेंद्र सिंह ने कहा है कि चार सीटिंग में परीक्षा कराना, कुलपति की तानाशाही की पराकाष्ठा है। यह छात्रों और शिक्षकों के साथ मानसिक प्रताड़ना और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हैं।
बगैर पाठ्क्रम पूरा कराये होगी परीक्षा
शिक्षक संघ का मानना है कि शासन द्वारा निर्धारित परीक्षाओं में मूल्यांकन का पारिश्रमिक कम करना कुलपति की तानाशाही है एवं अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जब कुलपति स्वयं शासन के नियम और आदेशों की अवहेलना करने को उद्धत है, तो प्राचार्यों को इनके आदेशों को मानने की कोई बाध्यता नहीं है। कुलपति अपने कारनामे से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा एवं एकेडमिक स्तर को निरंतर रसातल में पहुंचाने पर आमादा है। बगैर अध्ययन-अध्यापन के परीक्षा कराना, इनके लिए नयी शिक्षा नीति का अंग है। अनुदानित एवं स्ववित्तपोषित सभी कालेज के प्राचार्य एवं शिक्षकों को इस शिक्षक एवं शिक्षा विरोधी, कुलपति का घोर विरोध तथा असहयोग करना चाहिए।
परीक्षा मद से लगभग 30 से 40 करोड़ की आय
विश्वविद्यालय के पास 90 परसेंट परीक्षा शुल्क महाविद्यालयों से एकत्रित होता है, जिसका उपयोग केवल और केवल विश्वविद्यालय अपने हित में करता है, जबकि विश्वविद्यालय को इतनी अतिरिक्त आए होने के बाद भी कई वर्षों से शिक्षकों का मूल्यांकन का पारिश्रमिक, केंद्रों का केंद्र व्यय और नोडल केंद्रों का नोडल व्यय विश्वविद्यालय पर बकाया है। परीक्षा मद से लगभग 30 से 40 करोड़ की विश्वविद्यालय की आय है। परीक्षा शुल्क का संग्रहण विश्वविद्यालय खुद करता है, जबकि परीक्षाओं का भार अनुदानित महाविद्यालयों के प्राचार्य पर, नोडल केंद्र बना कर डाल दिया है।
नोडल केंद्र को मिलने वाला धन भी पिछले कई वर्षों से नहीं प्राप्त हुआ है, ऐसी परिस्थिति में कोई भी प्राचार्य नोडल केंद्र का समन्वयक विश्वविद्यालय के इस आदेश को मानने के लिए कदापि भी बाध्य नहीं है। नोडल केंद्रों को तभी कार्य करना चाहिए जब परीक्षा शुल्क से नोडल केंद्र का अंशदान एडवांस में नोडल केंद्र प्रभारी को प्राप्त हो जाए।
परीक्षा के नाम पर शिक्षकों का होगा शोषण
4 मीटिंग में परीक्षा कराने का तात्पर्य सीधे-सीधे कम से कम 8 घंटे का कार्य होगा। इतने कम समय में छात्रों का सिटिंग प्लान कैसे अरेंज होगा। परीक्षा की खानापूर्ति अवश्य होगी। कितने महाविद्यालयों में कैंटीन और भोजन की सुविधा है? शिक्षकों को बिना खाए पिए 8 घंटे ड्यूटी करनी पड़ेगी।
शिक्षकों के साथ बैठक कर बनाएंगे रणनीति
गुआक्टा कार्यकारिणी सभी अनुदानित महाविद्यालयों के इकाइयों के साथ बात करके यह निर्णय लेगी कि 4 मीटिंग वाली इस परीक्षा एवं मूल्यांकन की दर में कटौती के कारण, परीक्षा में सहयोग पर क्या रुख अपनाया जाए? इससे माना जा रहा है कि सुचारू रूप से परीक्षा कराना संभव नहीं होगा।
शिक्षक आंदोलन पर गए तो टल सकती है परीक्षा
चार पालियों में परीक्षा और मूल्याकन के दर में कटौती के विश्वविद्यालय प्रशासन के फैसले का शिक्षक संघ के विरोध की स्थिति में परीक्षा कार्यक्रम टलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। गुआक्टा के अध्यक्ष प्रो.के.डी. तिवारी व महामत्री प्रो.धीरेंद्र सिंह ने कहा कि कुलपति के तानाशाही रवैये पर शिक्षक व कर्मचारियों में गहरा आक्रोश है। इससे साबित हो गया है कि कुलपति को न तो शिक्षकों से और न ही कर्मचारियों व छात्रों से कोई मतलब है।
डीडीयू शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष व धरना-प्रदर्शन और विवि की छवि खराब करने के आरोपी प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी कहते हैं, सत्याग्रह करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। धरना-प्रदर्शन या विश्वविद्यालय की छवि खराब करने के आरोप तथ्यों से परे हैं। शिक्षक संघ का पूर्व अध्यक्ष होने के नाते यह मेरा नैतिक कर्तव्य है कि आम सभा का कोई सदस्य समस्या उठाता है तो उसका समर्थन करूं।
शिक्षक संघ का चुनाव न कराने को लेकर नाराजगी
डीडीयू शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष व धरना-प्रदर्शन व विवि की छवि खराब करने के आरोपी प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी ने कहा कि सत्याग्रह करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। धरना-प्रदर्शन या विश्वविद्यालय की छवि खराब करने के आरोप तथ्यों से परे हैं। प्रो. कमलेश गुप्त के सत्याग्रह को हम समर्थन देते हैं। किसी के मौन सत्याग्रह का समर्थन अपराध नहीं है। शिक्षक संघ का पूर्व अध्यक्ष होने के नाते यह मेरा नैतिक कर्तव्य है कि आम सभा का कोई सदस्य समस्या उठाता है तो उसका समर्थन करूं। रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी को भी धरना-प्रदर्शन करने तथा विश्वविद्यालय की छवि को खराब करने के लिए कारण बताओ नोटिस दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि प्रो. कमलेश गुप्त पिछले करीब एक वर्ष से कुलपति प्रो. राजेश सिंह के कार्यकाल में हुई आय-व्यय की जांच करने और उन्हें पद से हटाए जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। इसकी शिकायत उन्होंने राजभवन में की थी। राजभवन सचिवालय द्वारा इस शिकायत की जांच कुलपति को ही सौंपे जाने के बाद पिछले वर्ष 21 दिसम्बर को सत्याग्रह की शुरुआत की थी। उसी दिन विवि प्रशासन ने उन्हें निलंबित कर दिया था। उसके बाद विभिन्न चरणों में प्रो. कमलेश का सत्याग्रह चला था। 8 फरवरी को विवि प्रशासन ने उनके निलंबन को रिवोक' कर दिया था।
गांधी जयंती पर प्रो. कमलेश ने फिर से सत्याग्रह शुरू किया था। उसके एक दिन बाद डीडीयू प्रशासन की तरफ से यह निर्णय आया है। रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी को भी धरना-प्रदर्शन करने तथा विश्वविद्यालय की छवि को खराब करने के लिए कारण बताओ नोटिस दिया गया था। उन्होंने इसका उत्तर संतोषजनक नहीं दिया। इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय के अधिनियम की धारा 49 के प्रावधान 8.10 के अनुसार एक जांच समिति गठित की गई है।
उल्लेखनीय है कि प्रो. कमलेश गुप्त पिछले करीब एक वर्ष से कुलपति प्रो. राजेश सिंह के कार्यकाल में हुई आय-व्यय की जांच करने और उन्हें पद से हटाए जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। इसकी शिकायत उन्होंने राजभवन में की थी। राजभवन सचिवालय द्वारा इस शिकायत की जांच कुलपति को ही सौंपे जाने के बाद पिछले वर्ष 21 दिसम्बर को सत्याग्रह की शुरुआत की थी। उसी दिन विवि प्रशासन ने उन्हें निलंबित कर दिया था। उसके बाद विभिन्न चरणों में प्रो. कमलेश का सत्याग्रह चला था।