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शिक्षा

DDU News : कुलपति राजेश सिंह के तुगलकी फरमान के आगे बेबस शिक्षक, आधी-अधूरी तैयारियों के साथ परीक्षायें शुरू

Janjwar Desk
2 Nov 2022 10:28 AM GMT
DDU News : कुलपति राजेश सिंह के तुगलकी फरमान के आगे बेबस शिक्षक, आधी-अधूरी तैयारियों के साथ परीक्षायें शुरू
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कुलपति अपने कारनामे से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा एवं एकेडमिक स्तर को निरंतर रसातल में पहुंचाने पर आमादा हैं, बगैर अध्ययन-अध्यापन के परीक्षा कराना, इनके लिए नयी शिक्षा नीति का अंग है। अनुदानित एवं स्ववित्तपोषित सभी कालेज के प्राचार्य एवं शिक्षकों की मर्जी के बिना परीक्षा कराई जा रही है...

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

DDU News : दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर में आधी-अधूरी तैयारियों और अव्यवस्था के बीच स्नातक व परास्नातक के प्रथम व तृतीय सेमेस्टर की मिड टर्म की परीक्षाएं 2 नवम्बर से शुरू हो गयीं। चार पालियों में परीक्षा कराने की घोषणा के बाद से ही शिक्षकों का विरोध भी कोई काम नहीं आया। कुलपति प्रो. राजेश सिंह के तुगलकी फरमान के आगे शिक्षक से लेकर छात्र तक बेबस दिख रहे हैं। इसके बाद भी अफरातफरी के बीच परीक्षा कराने की शिक्षकों की मजबूरी साफ दिखी।

परीक्षा के प्रथम दिन अव्यवस्था का आलम इस कदर रहा कि डीडीयू नोडल केंद्र से एक दिन पूर्व रात्रि सवा दस बजे बाइक पर पेपर और उत्तरपुस्तिका लेकर शिक्षक व कर्मचारी अपने केंद्रों पर रवाना हुए।उधर जिलों में बने नोडल केंद्र पर तो परीक्षा शुरू होने के चंद वक्त पहले तक पेपर और उत्तरपुस्तिका समेटने के लिए कर्मचारी लगे रहे। इसमें करीब 1.95 लाख विद्यार्थी हिस्सा ले रहे हैं। यह परीक्षा चार पालियों में 30 नवंबर तक चलेगी।

परीक्षा की तैयारी पहले से पूर्ण न होने के चलते एक पूर्व दिनभर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। शाम होते-होते कॉलेजों के व्हाट्सप ग्रुप पर प्राचार्य यह पूछते रहे कि 'बुधवार को परीक्षा होगी या नहीं?' लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। प्रबंधकों के ग्रुप पर भी लोग यही सवाल पूछते रहे। फाइनली रात्रि 8. 25 बजे परीक्षा नियंत्रक कार्यालय से जवाब आया कि प्रश्नपत्र युक्त उत्तरपुस्तिकाएं नोडल केन्द्र को भेजी जा रही हैं। महाविद्यालय नोडल केन्द्रों से प्राप्त करें, जिसके चलते रात्रि 8 से 9 बजे के बीच गोरखपुर, देवरिया और कुशीनगर के सभी नोडल केन्द्रों के लिए पेपर लेकर गाड़ियां रवाना हुईं। इसका नतीजा रहा कि परीक्षा शुरू होने के समय तक नोडल केंद्रों से स्टाफ जिलों में परीक्षा केन्द्रों पर सामग्री ले जाने में लगे रहे।

देवरिया जिले के सलेमपुर तहसील स्थित एक महाविद्यालय के शिक्षक ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि सुबह परीक्षा शुरू होने के कुछ देर पहले ही स्टाफ नोडल केंद्र मदन मोहन मालवीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटपार रानी से परीक्षा के लिए उत्तर पुस्तिका व प्रश्न पत्र लेकर पहुंचे। कमोबेश सभी महाविद्यालयों का भी यही हाल रहा। उधर बरहज स्थित बाबा राघवदास भगवानदास स्नातकोत्तर महाविद्यालय को भी नोडल केंद्र बनाया गया है। ऐसी ही अव्यवस्था की तस्वीर यहां भी देखने को मिली।


प्रवेश पत्रों में गलतियों के चलते परेशान रहे छात्र

परीक्षा शुरू होने के एक दिन पूर्व 1 नवंबर को कॉलेजों में एडमिट कार्ड डाउनलोड हुआ, जिसके बाद विद्यार्थियों को एडमिट कार्ड उपलब्ध कराया गया। कई कॉलेजों में छात्रों के एडमिट कार्ड पर गलत विषय दर्ज है। इसे लेकर उहापोह की स्थिति बनी रही। हाल यह रहा फार्म में जो विषय छात्रों ने भरा था, प्रवेश पत्र में उसकी जगह अन्य विषय का उल्लेख रहा। इसको लेकर छात्र से लेकर शिक्षक तक परेशान हुए। हालांकि बाद में मजबूरन विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी गलती मानते हुए कॉलेजों को यह मैसेज दिया कि जो विषय फॉर्म में भरें हों, उसी की परीक्षा दें। परीक्षा शुरू होने से एक दिन पहले सैकड़ों विद्यार्थी रजिस्ट्रेशन फॉर्म लेकर सिग्नेचर कराने और जमा करने के लिए भटकते रहे। इसके अलावा आईएनसी ठीक कराने के लिए भी दिनभर छात्र परीक्षा विभाग के चक्कर लगाते रहे।

शिक्षक संगठन ने गिनाई अव्यवस्था

शिक्षकों के संगठन गुआक्टा के अध्यक्ष डॉ. केडी तिवारी ने परीक्षा के उक दिन पूर्व रात्रि 10 बजे बताया कि अभी तक गोरखपुर, देवरिया और कुशीनगर के किसी भी नोडल केन्द्र पर पेपर नहीं पहुंचा है। रात्रि में सुरक्षा की दृष्टि से नोडल केन्द्रों से पेपर व उत्तरपुस्तिका कॉलेजों के लिए ले जाना ठीक नहीं रहेगा। इसलिए ग्रामीण क्षेत्र के सभी परीक्षा केन्द्र 2 नवंबर को सुबह पेपर उठाएंगे। परीक्षा के नाम पर विश्वविद्यालय प्रशासन परीक्षार्थियों के भविष्य के साथ मजाक कर रहा है।

गुआक्टा के अध्यक्ष डॉ. केडी तिवारी एवं महामंत्री डॉ. धीरेन्द्र सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि बाहर से पेपर व कापी मंगाने का मतलब है विवि प्रशासन को सिर्फ भारी कमीशन से मतलब है। प्रथम सेमेस्टर में मात्र एक हफ्ते की कक्षाएं चली हैं। चार-चार पालियों में परीक्षाएं कराना शिक्षकों के लिए बेहद दुष्कर कार्य है। चार पालियों का सीटिंग प्लान बनाना परेशानी भरा कार्य है। दूसरी तरफ परीक्षा सेंटरों पर शाम तक कापी व प्रश्नपत्र तक नहीं पहुंच पाया था। प्रवेशपत्र पर कुछ विषय गलत प्रिंट होकर आए हैं। तमाम शिक्षकों का कहना है कि परीक्षा के दौरान ऐसी अव्यवस्था से पहली बार पाला पड़ा है। वहीं बड़ी संख्या में बैक पेपर और अंक सुधार का परीक्षा फार्म भरने से भी बहुत से छात्र-छात्राएं भी वंचित रह गए हैं।

मूल्यांकन का पारिश्रमिक कम करने को लेकर नाराजगी

शिक्षक संघ का आरोप है कि शासन द्वारा निर्धारित परीक्षाओं में मूल्यांकन का पारिश्रमिक कम करना कुलपति की तानाशाही है एवं अधिकार क्षेत्र से बाहर है। जब कुलपति स्वयं शासन के नियम और आदेशों की अवहेलना करने को उद्धत है, तो प्राचार्यों को इनके आदेशों को मानने की कोई बाध्यता नहीं है। कुलपति अपने कारनामे से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा एवं एकेडमिक स्तर को निरंतर रसातल में पहुंचाने पर आमादा हैं। बगैर अध्ययन-अध्यापन के परीक्षा कराना, इनके लिए नयी शिक्षा नीति का अंग है। अनुदानित एवं स्ववित्तपोषित सभी कालेज के प्राचार्य एवं शिक्षकों की मर्जी के बिना परीक्षा कराई जा रही है।


परीक्षा मद से लगभग 30 से 40 करोड़ की आय

विश्वविद्यालय के पास 90 परसेंट परीक्षा शुल्क महाविद्यालयों से एकत्रित होता है, जिसका उपयोग केवल और केवल विश्वविद्यालय अपने हित में करता है, जबकि विश्वविद्यालय को इतनी अतिरिक्त आए होने के बाद भी, कई वर्षों से शिक्षकों का मूल्यांकन का पारिश्रमिक, केंद्रों का केंद्र व्यय और नोडल केंद्रों का नोडल व्यय विश्वविद्यालय पर बकाया है। परीक्षा मद से लगभग 30 से 40 करोड़ की विश्वविद्यालय की आय है। परीक्षा शुल्क का संग्रहण विश्वविद्यालय खुद करता है, जबकि परीक्षाओं का भार अनुदानित महाविद्यालयों के प्राचार्य पर, नोडल केंद्र बना कर डाल दिया है। नोडल केंद्र को मिलने वाला धन भी पिछले कई वर्षों से नहीं प्राप्त हुआ है, ऐसी परिस्थिति में कोई भी प्राचार्य नोडल केंद्र का समन्वयक विश्वविद्यालय के इस आदेश को मानने के लिए कदापि भी बाध्य नहीं है। इसके बावजूद हाल यह रहा कि कुलपति के फरमान के आगे शिक्षक मजबूर दिखे।

वित्तविहीन महाविद्यालयों को हर आदेश मानना मजबूरी

कुलपति के आदेश को तुगलकी फरमान कहने वाले शिक्षकों का मानना है कि विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों में से नब्बे फीसद वित्तविहीन महाविद्यालय है। जिन्हें अपने स्रोत से ही शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मियों के वेतन समेत अन्य खर्चे उठाने होते हैं। दूसरी तरफ इनके प्रबंधन द्वारा अपनी कमाई के लिए वेतन भुगतान से लेकर शिक्षण व्यवस्था के लिए निर्धारित मानक का अनुपालन नहीं कर पाते हैं। यही इनकी कमजोर कड़ी का लाभ विश्वविद्यालय प्रशासन उठाता रहा है। ऐसे में मनमानी का पूरा खेल महाविद्यालय व विश्वविद्यालय प्रबंधन मिलकर खेलते रहे हैं।

ऐसे महाविद्यालयों के प्रबंधन का कुलपति के हर फरमान को मानना एक मजबूरी भी है। बानगी के तौर पर देखें तो देवरिया जिले में 110 महाविद्यालय हैं। जिनमें से वित्तपोषित महाविद्यालय मात्र छह है। इन महाविद्यालयों के शिक्षकों की अगुवाई शिक्षक संघ के रूप में गुआक्टा करता है, जिसकी सीमित संख्या नकारा साबित होती रही है। इस बार भी परीक्षा के विरोध की इनकी मंशा काम नहीं आई, जबकि वित्तविहीन महाविद्यालयों की मजबूरी का लाभ उठाने में कुलपति व उनकी टीम कामयाब रही। लिहाजा भारी अव्यवस्था के बीच परीक्षा प्रारंभ हो गई है।

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