जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा, कोरोना महामारी के बीच और बिगड़े हालात
जलवायु परिवर्तन नहीं किसी आपातकाल से कम, दुनिया के लिए भारी खतरा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। पहली बार स्वास्थ्य से सम्बंधित दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित 200 से अधिक वैज्ञानिक जर्नल एक साथ और एक ही सम्पादकीय निकालने वाले हैं – यह सम्पादकीय जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित है। इसमें दुनिया के नेताओं से आग्रह किया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन को एक आपातकाल की तरह समझें और इसके नियंत्रण के लिए सभी संभावित कदम तत्काल उठायें। इससे प्रकृति का विनाश रुकेगा और मानव स्वास्थ्य में सुधार भी होगा।
जर्नल में एक ही सम्पादकीय का यह कदम ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की अगुवाई में उठाया गया है और इसमें प्रतिष्ठित स्वास्थ्य सम्बंधित जर्नल जैसे लांसेट, न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन, ईस्ट अफ्रीकन मेडिकल जर्नल, चाइनीज साइंस बुलेटिन, नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ़ इंडिया और मेडिकल जर्नल ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया जैसे जर्नल भागीदारी निभा रहे हैं।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार ऐसा वैज्ञानिक जर्नलों के इतिहास में पहली बार हो रहा है, जब 200 से अधिक जर्नल एक ही सम्पादकीय एक साथ प्रकाशित करेंगे, और यह कदम संयुक्त राष्ट्र की आम सभा और जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए पेरिस समझौते के अंतर्गत बने कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के यूनाइटेड किंगडम के ग्लास्गो शहर में होने वाले 26वें अधिवेशन के पहले उठाया गया है, जिससे इन अधिवेशनों में दुनियाभर के देश इस पर चर्चा कर सकें।
इस सम्पादकीय में सभी देशों से आग्रह किया गया है कि वे तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने के लिए पूरा प्रयास करें, जिससे प्रकृति के विनाश को रोका जा सके और मानव स्वास्थ्य की समस्याएं कम हो सकें। जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है और स्वास्थ्य वैज्ञानिक इस मुद्दे को लगातार उठाते रहे हैं। इस बारे में विज्ञान भी लगातार बताता रहा है। इस सम्पादकीय में सभी देशों से आह्वान किया गया है कि वे जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए ठोस कदम तुरंत उठाने शुरू करें, जिससे वर्ष 2021 को इतिहास के पन्नों में मानवता की रक्षा के लिए याद किया जाए। हालांकि इस दौर में दुनिया कोविड 19 जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रही है, पर जलवायु परिवर्तन निश्चित तौर पर इससे भी बड़ा खतरा है, और यह दुनिया को समझने की जरूरत है।
दरअसल अगस्त 2021 के बाद से पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े खतरे के तौर पर देख रही है, क्योंकि इसी महीने संयुक्त राष्ट्र के इन्टरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित छठी असेसमेंट रिपोर्ट का पहला भाग प्रकाशित किया है, जिसमें पहली बार बहुत सख्त शब्दों में जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को बताया गया है। पहली बार आईपीसीसी की रिपोर्ट में "जलवायु परिवर्तन से ऐसा हो सकता है" के बदले बिलकुल स्पष्ट शब्दों में "जलवायु परिवर्तन से ऐसा हो रहा है" बताया है।
यह रिपोर्ट 8 अगस्त 2021 को 195 सदस्य देशों वाले आईपीसीसी ने अनुमोदित किया और इसे 9 अगस्त को जनता के सामने प्रस्तुत किया गया। दूसरी तरफ उसी समय लगभग पूरी दुनिया अभूतपूर्व पर्यावरण संकट से गुजर रही थी – अमेरिका, कनाडा, जापान और न्यूज़ीलैण्ड जैसे देश अत्यधिक गर्मी से झुलस रहे थे; जंगलों की ऐसी भयानक आग पहले कभी नहीं देखी गयी थी; अमेरिका, दक्षिण एशिया, दक्षिण अमेरिका, यूरोप का कुछ हिस्सा भीषण बाढ़ की चपेट में था; यूरोप का कुछ हिस्सा पिछले कुछ वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है; भयानक चक्रवात लगातार दुनिया के विभिन्न हिस्सों को अपना निशाना बना रहे हैं। ऐसे में आईपीसीसी की यह रिपोर्ट सबको जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचने पर जरूर मजबूर करती है और बताती है कि यह आज और अभी का संकट है।
दुनिया के हरेक क्षेत्र में जलवायु में अंतर देखा जा रहा है और वैश्विक स्तर पर भी जलवायु में बहुत सारे परिवर्तन देखे जा रहे हैं। इसमें से अधिकतर प्रभाव स्पष्ट हैं और अपरिवर्तनीय भी, और दूसरे परिवर्तन लगातार होते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, महासागरों की सतह का ऊंचा होने की प्रक्रिया लगातार चल रही है और इसके सामान्य होने में हजारों वर्षों का समय लगेगा। केवल कार्बन डाइऑक्साइड समेत दूसरे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती कर ही जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित किया जा सकता है, और इस कटौती हो अब से ही शुरू करना पड़ेगा तभी जलवायु को सामान्य किया जा सकता है, वरना अधिकतर प्रभाव अपरिवर्तनीय होते जायेंगे।
जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के बाद दुनिया में बढ़ाते वायु प्रदूषण से त्वरित राहत मिलेगी और इसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ेगा, जबकि तापमान वृद्धि को रुकने में 20 से 30 वर्ष लगेंगे। आईपीसीसी के वर्किंग ग्रुप 1 की रिपोर्ट, फिजिकल साइंस बेसिस के अनुसार जलवायु परिवर्तन का असर अब वायुमंडल, महासागर, हिममंडल और भूमि – सब पर स्पष्ट होता जा रहा है। अधिकतर परिवर्तन अभूतपूर्व हैं और अपरिवर्तनीय भी।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने इस रिपोर्ट के बाद कहा कि, जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है, इसके संकेत स्पष्ट हैं और प्रभाव लगातार सामने आ रहे हैं। पेरिस समझौते के तहत तापमान वृद्धि के लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस के एकदम नजदीक हम पहुँच चुके हैं। जाहिर है, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए हरेक देश को तत्काल प्रभावी और महत्वाकांक्षी कदम उठाने की जरूरत है।
मनुष्यों की गतिविधियों के कारण वर्ष 1750 के बाद से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2019 तक वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 410 पीपीएम तक पहुँच चुकी थी, और वर्ष 2011 के बाद से इस सांद्रता में 19 पीपीएम की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी। वर्ष 2019 में मीथेन की सांद्रता 1866 पार्ट्स पर बिलियन (पीपीबी) थी, जिसमें से 63 पीपीबी की बढ़ोत्तरी वर्ष 2011 के बाद से देखी गयी है; दूसरी तरफ वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता 332 पीपीबी है और वर्ष 2011 के बाद से इसमें 8 पीपीबी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है।
ये सभी गैसें औद्योगिक युग के पहले भी प्राकृतिक कारणों से वायुमंडल में मिलती थी, पर औद्योगिक युग के बाद वायुमंडल में इनकी सांद्रता बहुत तेजी से बढ़ी। इन गैसों के अतिरिक्त अनेक ऐसी गैसें भी हैं जो औद्योगिक युग की देन हैं पर ग्रीनहाउस गैसों का काम करती हैं, यानि तापमान बढाती हैं। जाहिर है इन गैसों की सांद्रता वायुमंडल में औद्योगिक युग से पहले शून्य थी। वर्ष 2019 में ऐसी गैसों – परफ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड, नाइट्रोजन ट्राईफ्लोराइड और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन - की सांद्रता वायुमंडल में क्रमशः 109, 10, 2 और 109 पार्ट्स पर ट्रिलियन (पीपीटी) तक पहुँच गयी थी।
हमारी पृथ्वी पर भूमि और महासागर सूर्य के विकिरण के कारण जितना तापमान बढ़ता है उस उष्मा का अवशोषण करते हैं, पर पिछले 6 दशकों से महज 56 प्रतिशत उष्मा का अवशोषण भूमि और महासागरों द्वारा किया जा रहा है। जाहिर है इससे पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है – पृथ्वी के तापमान का रिकॉर्ड वर्ष 1850 से लगातार रखा जा रहा है और पिछले 4 दशक वर्ष 1850 से अब तक के सबसे गर्म दशक रहे हैं और इन चारों दशकों के दौरान औसत तापमान भी लगातार बढ़ता जा रहा है।
पृथ्वी के औसत सतही तापक्रम में वर्ष 1850 से 1900 के बीच के तापमान की तुलना में वर्ष 2001 से 2020 के बीच 0.99 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है, पर अगर केवल वर्ष 2011 से 2020 के औसत तापमान को देखें तो यह वृद्धि 1.09 डिग्री सेल्सियस है। इस दौरान भूमि के औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस और महासागरों के तापमान में 0.88 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है।