Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

COP 26 Long Queues In Entrance: बदइंतजामी, रंगभेद और कंपनियों के दबाव में उलझे सम्मेलन को नेट-जीरो से आस

Janjwar Desk
8 Nov 2021 12:34 PM IST
COP 26 Long Queues In Entrance: बदइंतजामी, रंगभेद और कंपनियों के दबाव में उलझे सम्मेलन को नेट-जीरो से आस
x

(ग्लासगो जलवायु सम्मेलन : भेदभाव का सामना कर रहे गरीब और विकासशील देशों की आवाज़ उठाने पहुंचे नुमाइंदे)

COP 26 Long Queues In Entrance : अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने 2050 तक अपना नेट ज़ीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा है। चीन ने 2060 तक यह लक्ष्य हासिल करने की घोषणा की है।

वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी का विश्लेषण

COP 26 Long Queues In Entrance : स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हो रहे संयुक्त राष्ट्र के छब्बीसवें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का पहला हफ्ता कोरोना प्रोटोकॉल्स की आपाधापी में ही नहीं बीता बल्कि यहां बहुत कुछ ऐसा भी हो रहा है जो जलवायु परिवर्तन की लड़ाई को कमज़ोर बनाता है। कोरोना महामारी के कारण पिछले साल (2020 में) होने वाला यह सम्मेलन एक साल की देरी से हो रहा है। कई पर्यावरण संगठनों ने गरीब और विकासशील देशों की भागेदारी के संकट को लेकर इसे अभी न कराने की चेतावनी दी थी लेकिन ज़्यादातर विकसित देश इस पर अड़े रहे कि सम्मेलन तो हो कर रहेगा।

बदइंतज़ामी, रंगभेद और कंपनियों का दबदबा

नतीजतन जहां एक ओर ग्लासगो में हज़ारों प्रतिभागियों के सम्मेलन में प्रवेश और हिस्सेदारी के लिये पर्याप्त व्यवस्था का अभाव है वहीं दूसरी ओर गरीब और विकासशील देशों की आवाज़ उठाने पहुंचे नुमाइंदे भेदभाव का सामना कर रहे हैं। नतीजा यह है कि वार्ता के पहले दिन शारीरिक रूप से अक्षम इस्राइल की एनर्जी मिनिस्टर सम्मेलन स्थल में प्रवेश ही नहीं कर पाईं और वापस लौट गईं।

इस सालाना जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 190 से अधिक देशों की सरकारों (जिनमें मंत्री और ब्यारोक्रेट शामिल हैं), तमाम कंपनियों, वैज्ञानिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं (और एनजीओ समूहों) के अलावा भारी संख्या में मीडिया प्रतिनिधियों का जमावड़ा होता है। पहले हफ्ते जीवाश्म ईंधन कंपनियों के दबदबे और प्रतिनिधियों के बीच रंगभेद के आरोप भी लगे। कार्बन फैलाने वाली कंपनियों के संगठन अच्छे खासे प्रतिनिधिमंडल के साथ इस सम्मेलन में अपने हितों की पैरवी के लिये सीधे या परोक्ष रूप से मौजूद हैं।

कार्बन इमीशन: फिर कोरोना महामारी से पहले जैसे हालात

कोरोना महामारी का प्रकोप कम होने के साथ ही 2021 में पूरी दुनिया में एक बार फिर से कार्बन उत्सर्जन का ग्राफ उठ गया। साल 2019 के मुकाबले 2020 में (कोरोना लॉकडाउन के कारण ठप पड़े उद्योगों के बाद ) वैश्विक उत्सर्जन करीब साढे पांच प्रतिशत गिरे लेकिन इस साल के उत्सर्जन 2019 के मुकाबले करीब पांच प्रतिशत अधिक हैं। भारत के कार्बन उत्सर्जन भी इस साल 2019 की तुलना में करीब 4.5 प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। चीन, अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और भारत दुनिया में सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले देशों में हैं।

चीन और अमेरिका के कुल उत्सर्जन दुनिया के कुल उत्सर्जन का 45 प्रतिशत हैं और माना जा रहा है कि भारत के उत्सर्जन यूरोपीय संघ के बराबर (करीब 7%) रहेंगे। ग्लोबल कार्बन समूह नाम के एक रिसर्च ग्रुप ने यह आंकड़े अपनी रिपोर्ट में दिये हैं। यह रिपोर्ट ग्लासगो सम्मेलन में पेश की गई। हालांकि यह रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक दशक (2010-19) में दुनिया साफ ऊर्जा के बिजलीघर तेज़ी से लगे हैं जिसकी वजह से अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के कार्बन उत्सर्जन कम हुये हैं और चीन में कार्बन उत्सर्जन बढ़ने की रफ्तार घटी है लेकिन कार्बन को कम करने (डिकार्बनाइजेशन) के दिशा में तरक्की बिजली की बढ़ती मांग के अनुरूप नहीं हैं।

चारों ओर नेट ज़ीरो का शोर

असल में अगर स्पेस में एक नियत सीमा से अधिक कार्बन जमा हो जायेगा तो फिर उसे धरती की तापमान वृद्धि को लक्षित 1.5 डिग्री की दहलीज़ से नीचे नहीं रखा जा सकेगा। स्पेस में जमा हो सकने वाली इसी अधिकतम कार्बन सीमा को कार्बन बजट कहा जाता है जो करीब 2900 गीगाटन आंकी गई है।। दुनिया के देश अब तक करीब 2500 गीगाटन कार्बन डाइ ऑक्साइड स्पेस में जमा कर चुके हैं और 1.5 डिग्री की सीमा पर दुनिया को रोकने के लिये (जो कि तबाही से बचने के लिये ज़रूरी है) अब अधिकतम 400 गीगाटन कार्बन ही स्पेस में और जमा किया जा सकता है। इसलिये लिये ज़रूरी है कि दुनिया के तमाम देश जो कार्बन छोड़ रहे हैं उसी रफ्तार से कार्बन हटाना भी शुरू करें। इसी को नेट ज़ीरो कहा जाता है।

जानकार कहते हैं कि अगले साल 2022 में भी कार्बन उत्सर्जन का ग्राफ बढ़ता रह सकता है। आईपीसीसी की रिपोर्ट भी कहती है कि उपलब्ध कार्बन बजट अगले 10 साल में खत्म हो जायेगा। ऐसे में नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है। नेट ज़ीरो यानी जो देश इस लक्ष्य को हासिल करेगा वह हर साल शून्य या नहीं के बराबर कार्बन (और ग्रीन हाउस गैसें) स्पेस में छोड़ेगा। यह धरती के तापमान को स्थिर रखने में मदद करेगा।

अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने 2050 तक अपना नेट ज़ीरो हासिल करने का लक्ष्य रखा है। चीन ने 2060 तक यह लक्ष्य हासिल करने की घोषणा की है। ग्लासगो सम्मेलन में पिछले हफ्ते भारत ने भी ऐलान किया कि वह साल 2070 तक इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। प्रधानमंत्री ने इसके अलावा ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिये भारत की कई योजनाओं का ऐलान किया। लेकिन क्या नेट ज़ीरो का फलसफा धरती को बचाने के लिये हथियार है या विकसित और तेज़ी से उत्सर्जन कर रहे देशों द्वारा अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का बहाना।

नेट ज़ीरो या नया बहाना

आईपीसीसी की विशेषज्ञ रिपोर्ट्स, जलवायु वैज्ञानिकों की तमाम चेतावनियों और बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफानों में प्रतिलक्षित होते क्लाइमेट चेंज प्रभावों के बावजूद तमाम देश कोई प्रभावी कदम उठाने में नाकाम ही रहे। चाहे 2007 का क्योटो समझौता हो, 2009 का कोपेनहेगेन सम्मेलन या फिर 2015 की पेरिस सन्धि अब तक कागज़ी कार्यवाही के अलावा प्रभावी कदम गायब ही दिखे हैं। इसलिये कई जानकार कह रहे हैं कि विश्व के तमाम बड़े कार्बन उत्सर्जन नेट ज़ीरो की आड़ में अपने तुरंत उठाये जाने वाले कदमों और ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।

पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नेट ज़ीरो लक्ष्य को बकवास करार देते हुये कहा कि यह पश्चिमी देशों की दिमागी उपज है जो अपनी नाकामियों पर पर्दा डालना चाहते हैं। रमेश के मुताबिक इन देशों ने जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये 2020 या 2030 तक जो कुछ करना था वह हासिल नहीं किया इसलिये अब 2050 एक ऐसा (नेट ज़ीरो) लक्ष्य दिखाया जा रहा है जिसकी ज़िम्मेदारी उन लोगों की नहीं होगी जो अभी बागडोर संभाले हुये हैं।

रमेश कहते हैं, "हममें से बहुत सारे तब तक जीवित भी नहीं रहेंगे।" उनके मुताबिक स्पेस में कार्बन छोड़ने की टेक्नोलॉजी तो है लेकिन स्पेस से कार्बन सोखने की टेक्नोलॉजी अभी कागज़ों पर ही है तो नेट ज़ीरो को हासिल करने की बात का कोई महत्व नहीं है। उनके साल 2050, 60 या 70 की बात करने के बजाय साल 2030 या अगले 10 सालों में तमाम देश ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिये क्या करेंगे ये घोषणा और उन पर अमल अधिक मायने रखता है।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story