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पर्यावरण

वन्यजीव और मनुष्यों के बीच संघर्ष में वर्ष 2014 से 2019 के बीच मारे गये 2361 मानव और 500 से अधिक हाथी

Janjwar Desk
24 Dec 2022 3:08 PM IST
वन्यजीव और मनुष्यों के बीच संघर्ष में वर्ष 2014 से 2019 के बीच मारे गये 2361 मानव और 500 से अधिक हाथी
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 देश में कागजों पर भले ही संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ रहा हो पर वन्यजीवों की संख्या के लिहाज से ये पर्याप्त नहीं है और वन्यजीवों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहना पड़ रहा है

देश में कागजों पर भले ही संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ रहा हो पर वन्यजीवों की संख्या के लिहाज से ये पर्याप्त नहीं है और वन्यजीवों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहना पड़ रहा है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

India has just over 5 percent of protected land for wildlife. हाल में ही कनाडा के मोंट्रियल में जैव-विविधता के संरक्षण से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र के कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का दो सप्ताह तक चला अधिवेशन संपन्न हुआ है। इस अधिवेशन के अंत में बताया गया कि सभी देश इस संकल्प पर राजी हो गए हैं कि वर्ष 2030 तक पृथ्वी का 30 प्रतिशत भू-भाग जैव-विविधता के लिए संरक्षित कर दिया जाएगा। भारत ने भी इस अधिवेशन में वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत भूभाग को जैव-विविधता के लिए संरक्षित करने का संकल्प लिया है, पर केवल आंकड़ों की बाजीगरी से ही ऐसा संभव हो सकता है।

वर्तमान में देश में संरक्षित क्षेत्र पूरे देश के भूभाग के महज 5.27 प्रतिशत क्षेत्र में स्थित है, जाहिर है संकल्प पूरा करने के लिए इसे अगले 8 वर्षों में 30 प्रतिशत तक पहुंचाना होगा। इस समय देश में कुल 990 संरक्षित क्षेत्र हैं, जिसमें 106 राष्ट्रीय उद्यान, 565 वन्यजीव अभयारण्य, 100 कंजर्वेशन रिज़र्व, 219 कम्युनिटी रिज़र्व शामिल हैं और इनका कुल क्षेत्र 173307 वर्ग किलोमीटर है।

संरक्षित क्षेत्रों के कम होने के कारण या फिर संरक्षित क्षेत्रों में खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के कारण जंगली पशु आबादी के क्षेत्र में पहुँच जाते हैं, जिसके कारण मानव-पशु टकराव बढ़ता जा रहा है। इसमें दोनों की जान जाती है। जुलाई 2022 में लोकसभा में पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया था कि वर्ष 2018 से 2021 के बीच देश में बिजली का करंट लगाने के कारण 222 हाथियों की मृत्यु हो गयी, रेलगाड़ी से टकराकर 45, शिकारियों द्वारा 29 और जहर देकर 11 हाथियों की हत्या की गयी।

वर्ष 2019 से 2021 के बीच शिकारियों ने 29 बाघों को मारा, और 192 बाघों की मौत का कारण अभी तक तय नहीं किया जा सका है। पिछले 3 वर्षों के दौरान हाथियों द्वारा 1579 व्यक्ति मारे जा चुके हैं, जबकि इसी अवधि के दौरान अभ्यारण्य के क्षेत्र में बाघों ने 125 लोगों पर हमला कर मार डाला।

हमारी सरकार हरेक क्षेत्र में बस इवेंट मैनेजमेंट करती है। अगस्त में जब चीता भारत आये तब का इवेंट मैनेजमेंट सबको याद होगा। प्रधानमंत्री से लेकर पूरी बीजेपी के छुटभैये नेता इस इवेंट का हिस्सा बने। टीवी पर और मीडिया में यह इसे एक महान उपलब्धि के तौर पर दर्शाया गया। दिल्ली में जगह-जगह इस उपलब्धि के होर्डिंग्स लगाए गए। यह सभी जानते हैं कि इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में रखा गया है, पर कम लोगों को ही पता होगा कि इस राष्ट्रीय उद्यान में गुजरात के गिर नेशनल पार्क से कुछ शेरों को लाकर रखना था, पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी आज तक ऐसा नहीं हुआ।

वर्ष 1990 में वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के साथ मिलकर वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसके अनुसार शेरों जैसी किसी भी प्रमुख प्रजाति, जो खाद्य श्रृंखला के शिखर पर हो, को किसी एक स्थान या क्षेत्र में सीमित रखना खतरनाक हो सकता है और पर्यावरणीय आपदा या फिर महामारी के दौर में इनके पूरी तरह विलुप्त होने का खतरा बना रहता है।

इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि एशियाई शेर केवल गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में सिमटे हैं, इसलिए इनमें से कुछ शेरों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित कर दिया जाए। इसके बाद वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी फैसला दिए कि कुछ शेरों को मध्य प्रदेश में स्थानांतरित कर दिया जाए। इन सुझावों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे गुजरात की अस्मिता का प्रश्न बनाया और आदेश मानने से इनकार कर दिया। अब इस राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीका से चीते तो पहुँच गए पर गुजरात से शेर आज तक नहीं पहुंचे। इसीलिए बहुत सारे वन्यजीव विशेषज्ञ चीतों के भारत आने को देश का गौरव या वन्यजीव संरक्षण नहीं बताते, बल्कि इसे "वैनिटी प्रोजेक्ट" बताते हैं।

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार वन्यजीव और मनुष्यों के बीच संघर्ष में वर्ष 2014 से 2019 के बीच 500 से अधिक हाथी और 2361 मनुष्य मारे गए। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार देश में बाघों के कुल आवास क्षेर्त्रों में से 35 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित क्षेत्रों के बाहर है, और हाथियों के लिए यह क्षेत्र 70 प्रतिशत से अधिक है। जाहिर है, देश में कागजों पर भले ही संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ रहा हो पर वन्यजीवों की संख्या के लिहाज से ये पर्याप्त नहीं है और वन्यजीवों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहना पड़ रहा है।

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