पानी की भयंकर कमी से जूझते 25 देश झेल रहे हैं निरंकुश सत्ता और तानाशाही की मार
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
India is among the 25 extreme water stressed countries in the world. इन दिनों जब अखबारों में बाढ़ की खबरें फ्रंट पेज पर प्रकाशित की जा रही हैं और मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया उफनती नदियों, बारिश से दरकते पहाड़ों और टापुओं में तब्दील तमाम स्मार्ट शहरों की तस्वीर लगातार दिखा रहा है, तब शायद यह समझना कठिन होगा कि हमारा देश दुनिया के उन 25 देशों में शामिल है जहां पानी की गंभीर समस्या है। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट ने हाल में ही एक प्रेस रिलीज़ में बताया है कि दुनिया में पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और मांग को पूरा करने के चक्कर में जल संसाधनों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। दूसरी तरफ जल प्रदूषण के कारण बहुत सारे जल संसाधन अब उपयोग लायक नहीं बचे हैं और तापमान वृद्धि के कारण दुनियाभर के जल संसाधन संकट में हैं।
जल संसाधनों पर अत्यधिक बोझ तब माना जाता है जब कोई देश पूरे वर्ष के दौरान पानी की नवीनीकृत मात्रा में से 80 प्रतिशत या अधिक पानी का इस्तेमाल नियमित तौर पर कर लेता है। ऐसा करने वाले दुनिया में कुल 25 देश हैं, जिनमें से अधिकतर मध्य-पूर्व और अफ्रीका में हैं। बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारत अकेला इस सूची में शामिल है। यूरोप के तीन देश – बेल्जियम, सैन मरीनो और ग्रीस – भी इस सूची में शामिल हैं।
पानी की अत्यधिक समस्या से जूझ रहे 25 देश हैं – बहरीन, सायप्रस, कुवैत, लेबनान, ओमान, क़तर, यूएई, सऊदी अरब, इजराइल, ईजिप्ट, लीबिया, यमन, बोत्सवाना, ईरान, जॉर्डन, चिली, सैन मरीनो, बेल्जियम, ग्रीस, तुनिशिया, नामीबिया, साउथ अफ्रीका, इराक, भारत और सीरिया। इन 25 देशों की सम्मिलित आबादी दुनिया की कुल आबादी में से एक-चौथाई से अधिक है। इस सूची में शामिल लगभग सभी देशों में परम्परागत तौर पर जल-संसाधनों की कमी है, पर भारत एकलौता देश है जहां पर्याप्त जल संसाधन हैं, पर इनके कुप्रबंधन के कारण इस सूची में शामिल है।
वर्ष 1960 के बाद से अब तक दुनिया में पानी की मांग दुगुनी से अधिक हो चुकी है और वर्ष 2050 तक यह मांग 20 से 25 प्रतिशत और बढ़ जायेगी। यूरोप और अमेरिका में पानी की मांग दशकों से लगभग एक सामान है, पर अफ्रीका और एशिया में इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में दुनिया की आधी आबादी, यानी 4 अरब लोग, पूरे वर्ष में कम से कम एक महीने पानी की भीषण कमी का सामना करती है, पर वर्ष 2050 तक पानी की ऐसी कमी का सामना 60 प्रतिशत से अधिक आबादी करने लगेगी। पानी की कमी केवल साफ़ पानी की समस्या नहीं है, बल्कि इससे जीवन, रोजगार, कृषि, ऊर्जा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सभी प्रभावित होते हैं।
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्ष 2017 से 2021 के बीच भारत में पानी की कमी के कारण तापबिजली घरों में शीतकरण के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता पर असर पड़ा, इससे 8.2 टेरावाट घंटा उर्जा का कम उत्पादन हुआ। आंकड़ों से भले ही इसका प्रभाव स्पष्ट नहीं हो पाए, पर 8.2 टेरावाट घंटा उर्जा से 15 लाख लोगों को पांच वर्ष तक लगातार विद्युत् आपूर्ति की जा सकती है। पानी के संकट के कारण वर्ष 2010 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24 प्रतिशत प्रभावित हुआ, पर अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक जीडीपी का 31 प्रतिशत, यानी 70 खरब डॉलर, प्रभावित होगा। दुनिया के चार देशों – भारत, मेक्सिको, ईजिप्ट और तुर्की – की लगभग आधी जीडीपी पानी की कमी से प्रभावित होगी।
पानी की कमी का कृषि पर व्यापक असर पड़ रहा है और यह भविष्य में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरनाक है। दुनिया के कुल सिंचित क्षेत्र में से 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इससे कृषि उत्पादकता में कमी आ रही है, दूसरी तरफ बढ़ती आबादी के कारण वर्ष 2050 तक वर्ष 2010 की तुलना में 56 प्रतिशत अधिक खाद्य कैलोरी की जरूरत होगी।
पानी की कमी से मध्य-पूर्व की 83 प्रतिशत आबादी और एशिया की 74 प्रतिशत आबादी जूझ रही है। वर्ष 2050 तक अफ्रीका में पानी की मांग 163 प्रतिशत और दक्षिण अमेरिका में 43 प्रतिशत तक बढ़ जायेगी। पानी के उचित प्रबंधन के लिए यदि वैश्विक जीडीपी का एक प्रतिशत प्रतिवर्ष खर्च किया जाए तब इसकी कमी से छुटकारा पाया जा सकता है, पर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है और वैश्विक जीडीपी में पानी की कमी के कारण 7 से 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पानी की कमी प्रजातंत्र और राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित करती है। पानी की भयंकर कमी का सामना करने वाले 25 देशों की सूची से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकतर देश निरंकुश सत्ता और तानाशाही की मार झेल रहे हैं और इन देशों में राजनीतिक स्थिरता कहीं नजर नहीं आती।