महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं की आवाज दबाने के लिए उनकी हत्या, विस्थापन, दबाव, आपराधिक मामलों में कैद और यौन उत्पीड़न का धड़ल्ले से लिया जाता है सहारा
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Women environmental activists are being murdered all over the world. हाल में ही नेचर सस्टेनेबिलिटी नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान दुनिया में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और आन्दोलनकारियों की हत्या एक सामान्य सी घटना बन गयी है, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में एक बड़ी संख्या पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे कार्यकर्ताओं की है। इस अध्ययन के लिए एनवायर्नमेंटल जस्टिस एटलस में उल्लिखित पर्यावरण संरक्षण के लिए आन्दोलनकारियों और सरकारों, उद्योगपतियों या भू-माफियाओं के बीच होने वाली दुनियाभर में 523 हिंसक झड़पों का विस्तृत आकलन किया गया है।
एनवायर्नमेंटल जस्टिस एटलस यूनिवर्सिटी ऑफ़ बार्सिलोना स्थित एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है जिसमें पूरी दुनिया में होने वाले पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित आन्दोलनों और झड़पों की जानकारी एकत्रित की जाती है। इन हिंसक झड़पों में कम से कम 81 महिला पर्यावरण आन्दोलनकारियों या कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी है। महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं को डराने के लिए या फिर उनकी आवाज दबाने के लिए उनकी हत्या, उन्हें विस्थापित करना, दबाव डालना, आपराधिक मामलों में कैद करना और यौन उत्पीड़न का भी धड़ल्ले से सहारा लिया जाता है।
पिछले कुछ वर्षों से पूरी दुनिया में चरम पूंजीवाद हावी है। पूंजीवाद ही देशों की सत्ता का निर्धारण कर रहा है और पूरी दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहा है। इस लूट के विरोध में उठी हरेक आवाज, जाहिर है केवल पूंजीपतियों और भू-माफियाओं द्वारा ही नहीं बल्कि सत्ता द्वारा भी कुचल दी जाती है। पर्यावरण के विनाश को रोकने के लिए आवाज उठाना इन दिनों बहुत ख़तरनाक हो चला है। यह खतरा दक्षिणी अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में बहुत ख़तरनाक स्तर तक पहुँच गया है, पर यूरोप और उत्तरी अमेरिका भी अब इस खतरे से अछूता नहीं है।
इस अध्ययन के लिए चुने गए 523 हिंसक झड़पों में भारत समेत दुनिया के 29 देशों में 81 महिलाओं की हत्या की गयी। ऐसी हत्याओं में पहले स्थान पर फिलीपींस है, जहां 19 महिला आन्दोलनकारियों की हत्या की गयी। दूसरे स्थान पर ब्राज़ील में 7 हत्याएं, इसके बाद कोलंबिया में भी 7 हत्याएं, मेक्सिको में 6, होंडुरस में 5, ग्वाटेमाला में 4, पेरू में 4, बंगलादेश में 3 और भारत में 2 पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित महिला आन्दोलनकारियों की हत्याएं की गईं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आन्दोलनकारियों के सन्दर्भ में दक्षिण अमेरिकी देश पिछले कुछ वर्षों से कुख्यात रहे हैं, पर इस अध्ययन के अनुसार एशिया के भारत समेत 7 देशों में कुल 29 महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी।
इस अध्ययन के अनुसार पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में यूरोप और अमेरिका भले ही पूरी दुनिया को सीख देते हों, पर यूनाइटेड किंगडम में 2, अमेरिका में 2, यूक्रेन में 1 और स्पेन में भी 1 महिला पर्यावरण आन्दोलनकारी की हत्या की गयी है। समस्या यह है कि मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के दमन और हिंसा के आंकड़े एकत्रित करने वाले अधिकतर संस्थान इन आंकड़ों का लैंगिक विश्लेषण नहीं करते, इसलिए महिला पर्यावरण कार्यकर्ताओं की मौत के सही आंकड़े स्पष्ट नहीं होते।
जलवायु परिवर्तन से दुनियाभर में लैंगिक असमानता और साथ में महिलाओं का यौन-उत्पीरण बढ़ता जा रहा है और इससे जलवायु परिवर्तन को रोकने में लगातार असफलता मिल रही है। गरीब देशों में जहां, लैंगिक असमानता अधिक है, वहां जलवायु परिवर्तन को रोकने के सारे प्रयास नाकामयाब होते जा रहे हैं क्योंकि इन सारे प्रयासों में महिलाओं की भूमिका को उन्देखा किया जा रहा है। इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर के अनुसार जलवायु और पर्यावरण के हरेक मुद्दे के केंद्र में जब तक महिलाओं को नहीं रखा जाएगा तब तक ऐसी हरेक योजनायें असफल होती जायेंगी।
इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर ने महिलाओं की जलवायु परिवर्तन को रोकने में भूमिका पर अब तक का सबसे विस्तृत और बृहद अध्ययन किया है। दो वर्षों तक चले इस अनुसंधान में दुनियाभर में इस विषय पर किये गए शोध से सम्बंधित एक हजार से अधिक शोध पत्रों का विस्तार से अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन की मुख्य लेखिका केट ओवरें के अनुसार अब तो इस बात के अनेक तथ्य हैं कि तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में महिलाओं पर हिंसा बढ़ती जा रही है। जब पर्यावरण का विनाश होता है और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव बढ़ता है तो आबादी पर दबाव बढ़ता है और प्राकृतिक संसाधनों में कमी आती है, इस कारण महिलाओं पर हिंसा और उनका यौन उत्पीड़न बढ़ता है।
जब प्राकृतिक संसाधनों में कमी होने लगती है तब पर्यावरण से सम्बंधित अपराध बढ़ते हैं, और अनेक मामलों में ऐसे अपराधियों को पुलिस और सरकार का समर्थन प्राप्त रहता है। इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर ने अपने अध्ययन में ऐसे 80 मामलों का विस्तार से वर्णन किया है. जब ऐसे गिरोह सक्रिय रहते हैं तब पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने वाली महिलायें, पर्यावरण विनाश के कारण आप्रवासी या फिर शरणार्थी इनके निशाने पर हमेशा रहते हैं। जहां पर्यावरण का विनाश अधिक होता है वहां घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, वैश्यावृत्ति, जबर्दस्ती विवाह या फिर कम उम्र में विवाह और लड़कियों की तस्करी के मामले अधिक सामने आते हैं।
अफ्रीका और दक्षिण एशिया में अवैध मछली पकड़ने के क्षेत्र, कांगो और ब्राज़ील में जंगलों से लकड़ी की तस्करी के क्षेत्र और कोलंबिया और पेरू में अवैध खनन के क्षेत्र इस मामले में बहुत बदनाम हैं। अधिकतर देशों में महिलाओं को जमीन के अधिकार या फिर कानूनी अधिकार नहीं मिलते, इसलिए जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक वही प्रभावित हो रहीं हैं। अनुमान है कि केवल जलवायु परिवर्तन की त्रासदी के कारण दुनिया भर में लगभग 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी गयी है और लड़कियों की तस्करी के मामलों में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हो गयी है।
दुनियाभर में व्याप्त पूंजीवादी व्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों को बचाते पर्यावरण कार्यकर्ताओं को मारते जा रहे हैं। वर्ष 2002 से 2017 के बीच 50 देशों में 1500 से अधिक पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी। वर्ष 2017 के बाद हत्याओं की दर पहले से भी दुगुनी हो गयी। फ्रंटलाइन डिफेंडर्स नामक संस्था के अनुसार वर्ष 2021 में कुल 358 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या की गयी, जिसमें से 60 प्रतिशत से अधिक पर्यावरण बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। अब हालत यह है कि सबकी अकाल मृत्यु तय है – आप पर्यावरण विनाश से मरिये या फिर इसके विरुद्ध आवाज उठाकर।