जी20 देशों के पास लैंगिक आधार पर संतुलित राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीतियों की कमी : वीकैन की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
प्रतीकात्मक फोटो (janjwar)
डॉ. सीमा जावेद की टिप्पणी
मिस्र में आयोजित होने जा रहे सीओपी27 से पहले वीमेंस अर्थ एण्ड क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (वीकैन) एक ताजा रिपोर्ट जारी कर रहा है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि वैश्विक स्तर पर छोड़ी जाने वाली कुल कार्बन डाई ऑक्साइड के 80 प्रतिशत हिस्से के लिये जिम्मेदार जी20 देशों के पास लैंगिक आधार पर संतुलित राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन नीतियों की कमी है। इस साल जी20 शिखर सम्मेलन आगामी 15-16 नवम्बर से इंडोनेशिया में आयोजित होगी। ठीक उसी समय नवम्बर के दूसरे सप्ताह में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की 27वीं कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी27) का भी आयोजन किया जाएगा।
यह रिपोर्ट दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं यानी जी20 समूह की राष्ट्रीय जलवायु नीतियों और नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशंस (एनडीसी) में लैंगिक अखण्डता या उसकी कमी के स्तर का विश्लेषण करती है। रिपोर्ट में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव लिंग के आधार पर अलग-अलग होते हैं और जलवायु सम्बन्धी समाधान के वाहक के रूप में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बढ़ते आभास के बावजूद जी20 देशों की जलवायु सम्बन्धी नीतियों में लिंग सम्बन्धी पहलू को अब भी व्यापक रूप से या सही अर्थों में नहीं जोड़ा गया है।
शोध की एक उभरती हुई इकाई इस बात को मजबूती से स्थापित करती है कि अधिक लैंगिक समानता से जलवायु सम्बन्धी बेहतर नतीजे हासिल होते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी एक देश में वीमेंस पॉलिटिकल एम्पॉवरमेंट इंडेक्स के स्कोर में सिर्फ एक यूनिट की वृद्धि होने से देश के कुल कार्बन उत्सर्जन में 11.5 प्रतिशत की गिरावट आती है। इसके बावजूद ज्यादातर जी20 देशों ने अपनी जलवायु सम्बन्धी नीतियों में लैंगिक पहलू को अभी तक शामिल नहीं किया है, और जब जी20 देशों में लैंगिक पक्ष का जिक्र किया जाता है तो वह अक्सर सतही और गैर कार्रवाई योग्य होता है।
वीकैन की अधिशासी निदेशक और इस रिपोर्ट की सह-लेखक ओसप्री ओरीएल लेक ने कहा : "जलवायु नीति में लैंगिक पक्ष को जोड़ना न सिर्फ महिलाओं और लिंग विविध लोगों के लिये फायदेमंद है, बल्कि यह हमारे समुदायों, धरती और उत्सर्जन सम्बन्धी लक्ष्यों के लिहाज से महत्वपूर्ण रूप से सुधरे हुए नतीजे भी सामने लाता है। अगर जी20 देश अपने जलवायु सम्बन्धी लक्ष्यों को हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें महिलाओं खासकर स्थानीय, श्याम और गहरे वर्ण वाली महिलाओं की जलवायु नीतियों, समाधान परियोजनाओं और निर्णय निर्माण की प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करना होगा।"
हालांकि अनेक जी20 देश लैंगिक रूप से प्रतिक्रियात्मक जलवायु नीतियां विकसित करने के लिये कदम उठा रहे हैं। इस रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर अर्जेंटीना का जिक्र किया गया है, जिसने जलवायु नीतियों में लैंगिक और विविधता के पहलुओं को जोड़ने में उल्लेखनीय प्रगति की है। साथ ही उसने जोखिम से घिरे समुदायों और सामाजिक समूहों को प्राथमिकता देने को अपना लक्ष्य बनाया है। हालांकि मौके पर इसका क्रियान्वयन अभी देखना बाकी है।
इस रिपोर्ट के लेखकों ने वैश्विक स्तर पर खासा असर रखने वाले जी20 देशों का आह्वान किया है कि वे प्रणालीगत पितृसत्ता, उपनिवेशवाद और नस्लवाद, जो महिलाओं और हाशिए के समूहों के नेतृत्व में न्यायसंगत और सफल जलवायु नीति और कार्रवाई के निर्माण में बाधा डालते हैं, जैसे नाइंसाफी भरे सामाजिक तौर-तरीकों को पहचानें, उन्हें समझें और उन्हें बदलें। दुनिया के 29 देशों के 80 से ज्यादा संगठनों ने मान्यता दी है। यह रिपोर्ट विश्व भर के विभिन्न समूहों और आंदोलनों की नुमाइंदगी करती हैं और संसाधनों का संग्रहण उपलब्ध कराती है और जलवायु सम्बन्धी समाधानों में लैंगिक पहलू के गहरे महत्व को उकेरने का विश्लेषण करती है।
रिपोर्ट के निष्कर्षों के सिलसिले में महिला नेतृत्वकर्ताओं के और अधिक उद्धरण इस प्रकार हैं :
एमएडीआरई में पॉलिसी एण्ड स्ट्रैटेजिक एंगेजमेंट की निदेशक दियाना दुआर्ते ने कहा "दुनिया के सबसे धनी देश लम्बे समय से जलवायु नीति में लैंगिक पहलू को जोड़ने को या तो नजरअंदाज कर रहे हैं या सिर्फ कोरी बातें ही करते हैं। इसका नतीजा ऐसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु एजेंडा के रूप में सामने आता है जो हमारे वैश्विक संकट की पूरी मारक क्षमता का सामना नहीं करता या लोगों की जरूरतें पूरी नहीं करता। जी20 को कतारों में आगे खड़े समुदायों के बचाव करने, जीने के और अधिक उन्नत सतत मार्गों पर आगे बढ़ने और न्यायसंगत जलवायु नीतियों की मांग के लिये महिलाओं की अगुवाई में जमीनी स्तर पर किये जा रहे प्रयासों को फौरन सहयोग करना चाहिये और उन्हें वित्तीय सहयोग देने के साथ-साथ उनसे सीखना भी चाहिये।"
वीकैन बोर्ड की सदस्य और पोंका एनवॉयरमेंटल एम्बेसडर केसी कैम्प-होरीनेक ने कहा "हम यहां कुदरत को बचाने के लिये नहीं हैं, प्रकृति खुद हमें बचाती है। हम धरती से हैं, धरती हमसे नहीं है। जी20 देश प्रकृति के साथ डिस्पोजेबल के तौर पर बर्ताव जारी रख रहे हैं। अगर हम जीवन के जाल को सुलझाने और इसे लापरवाही से जीवाश्म ईंधन में जलाने के इस रास्ते पर चलते रहे, तो हम विलुप्त होने वाली एक और प्रजाति बन जाएंगे। हमें महिलाओं की आवाज सुननी होगी।"
वीमेंस एनवॉयरमेंटल लीडरशिप ऑस्ट्रेलिया (वेला) की स्ट्रेटेजिक डायरेक्टर विक्टोरिया मैक्केंजी मैकहर्ग ने कहा "हमने ऑस्ट्रेलिया में अप्रत्याशित बाढ़ और जंगलों की भीषण आग को महसूस किया है। इन विध्वंसकारी नतीजों का महिलाओं पर अक्सर ज्यादा गहरा प्रभाव पड़ता है। हमने हीटवेव और बुशफायर के बाद घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी होते देखा है। इस बात की सम्भावना है कि बाढ़ के कारण लोगों खासकर बुजुर्ग महिलाओं के बेघर होने की घटनाएं बढ़ जाएंगी। ये वृद्ध महिलाएं ऑस्ट्रेलिया में बेघर लोगों और एकल माताओं के सबसे तेजी से बढ़ने वाले समूह का निर्माण करती हैं। ऑस्ट्रेलिया की महिलाओं और लड़कियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमारे राष्ट्रीय विमर्श से पूरी तरह गायब हैं और हमें जलवायु नीतियों में लैंगिक पहलू को जोड़ने की दिशा में फौरी कदम उठाने की सख्त जरूरत है। जैसा कि सरकारें जलवायु परिवर्तन के पहलू पर एक दशक तक निष्क्रियता के बाद कुछ कर रही हैं, उन्हें महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा को ध्यान में रखने की जरूरत है।'