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वाहनों में हाई सिक्योरिटी ​रजिस्ट्रेशन प्लेट के नाम पर आम जनता को प्रताड़ित करने का खेल शुरू

Janjwar Desk
17 Jan 2021 4:58 AM GMT
वाहनों में हाई सिक्योरिटी ​रजिस्ट्रेशन प्लेट के नाम पर आम जनता को प्रताड़ित करने का खेल शुरू
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photo : social media

मोदी सरकार जिस तरह नतीजे की परवाह किए बगैर रातोंरात फरमान जारी करना पसंद करती है, उसी आदत के तहत उसने गाड़ियों में हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट को लागू करते हुए आम लोगों को प्रताड़ित करने का खेल कर दिया है शुरू....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी

जनज्वार। केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने अप्रैल 2019 से पहले खरीदी गईं सभी गाड़ियों पर हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (एचएसआरपी) लगाना अनिवार्य कर दिया है। इस फैसले के बाद से ही दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों के लोग भी परेशान हैं। जब से हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट और कलर कोडेड स्टीकर की बात सरकार ने वाहन मालिकों से कही है, वह काफी संशय में हैं।

आजकल देशभर में एचएसआरपी प्लेट न लगाने पर पांच हज़ार से लेकर दस हज़ार रुपए तक के चालान काटे जा रहे हैं। मोदी सरकार जिस तरह नतीजे की परवाह किए बगैर रातोंरात फरमान जारी करना पसंद करती है, उसी आदत के तहत उसने एचएसआरपी को लागू करते हुए आम लोगों को प्रताड़ित करने का खेल शुरू किया है। इसके बहाने निहित स्वार्थी तत्वों को लाभ पहुंचाने की साजिश रची गई है। आम लोगों की जेब काटकर पूंजीपतियों को मालामाल करना ही इस स्कीम का मूल उद्देश्य नजर आता है।

इससे पहले केंद्र सरकार ने 2001 में भी हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेटें लगाना अनिवार्य किया था। सरकार तर्क देती है कि इसकी मदद से देश के किसी भी हिस्से में वाहन जाने पर यूनिक कोड को स्कैन करने से वाहन की सारी जानकारी अधिकारियों को पता चल जाती है। हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट से वारदातों और हादसों पर लगाम लगेगी।

सरकार तर्क देती है कि क्रोमियम होलोग्राम वाले हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट में सात डिजिट का लेजर कोड यूनीक रजिस्ट्रेशन नंबर होता है। इस नंबर के जरिए किसी भी हादसे या आपराधिक वारदात होने की स्थिति में वाहन और इसके मालिक के बारे में तमाम जानकारियां उपलब्ध हो जाएंगी। नंबर प्लेट पर आईएनडी लिखा होता है। कई बार अपराधी वाहनों के रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ छेड़छाड़ कर भी फायदा उठा लेते हैं, लेकिन हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट पर ऐसा करना संभव नहीं रहता। इस तर्क पर गौर करते हुए सवाल पैदा होता है कि क्या इसकी मदद से अपराध को कम करने में कोई प्रगति हुई है?

हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट एक नए तरीके की नंबर प्लेट है, जिसका निर्माण एल्यूमिनियम से किया जाता है। ये प्लेट टेंपर प्रूफ होती हैं यानी इनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। साथ ही इनके साथ दो नॉन-रीयूजेबल लॉक्स मिलते हैं। नंबर प्लेट को हटाने के लिए इन लॉक को तोड़ना पड़ता है। लॉक टूट जाने के बाद इस नंबर प्लेट को दोबारा नहीं लगाया जा सकता। लिहाजा वाहन मालिक को एक अन्य नई नंबर प्लेट खरीदनी पड़ती है।

नंबर प्लेट की बाईं तरफ क्रोमियम आधारित अशोक चक्र अंकित होता है और आईएनडी लिखा होता है। इसके साथ ही वाहन की पहचान के लिए दिया गया 'व्हीकल आईडेंटिफिकेशन नंबर' लेजर एनकोडेड होता है जिससे इसे स्कैन करना बहुत ही आसान हो जाता है। इससे किसी भी तरह की छेड़छाड़ संभव नहीं।

कलर कोडेड स्टिकर में कार का फ्यूल टाइप और भारत स्टेज यानी इमिशन नॉर्म्स की जानकारी होती है। पेट्रोल और सीएनजी कारों के लिए नीले रंग का स्टिकर दिया जाता है, वहीं डीजल कारों के लिए नारंगी और इलेक्ट्रिक कारों के लिए हरे रंग का का स्टिकर मिलता है। बीएस-6 कारों में स्टिकर के ऊपरी हिस्से में अलग से ग्रीन कलर की स्ट्रिप भी दी गई है। आपको गाड़ी की विंडस्क्रीन पर अंदर की ओर से इसे चिपकाना होता है।

इनकी कीमत कैटेगरी के हिसाब से तय होती है। चार पहिया और दोपहिया वाहन के मुताबिक कीमत तय होती है। बाइक की हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट के लिए लगभग 400 रुपये और चार पहिया वाहन के लिए अधिकतम 1100 रुपये चुकाने होते हैं। वहीं कलर-कोडेड स्टिकर के लिए 140-150 रुपये चुकाने होते हैं।

एचएसआरपी के लिए आवेदन करने के लिए मात्र एक ही पोर्टल है। यदि हम दिल्ली और यूपी के नागरिकों की गणना करते हैं जो वाहनों के मालिक हैं तो यह 50 मिलियन से अधिक लोगों का अनुमान लगा सकता है। तो प्रत्येक व्यक्ति को एक ही पोर्टल के माध्यम से आवेदन करना होगा। जब कोई व्यक्ति इसके लिए आवेदन करता है, तो बिलिंग की तारीख तीन महीने बाद की होती है।

तो, एक व्यक्ति को आवेदन करने के तीन महीने के बाद यह प्रदान किया जाएगा। क्या यह हास्यास्पद नहीं है? इतना बड़ा फासला क्यों है? यदि कोई व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन करता है और 4-5 दिनों की अवधि में प्राप्त करने में सक्षम नहीं होता है तो उस स्थिति में, ऐसा करने में विफल रहने वाले व्यक्ति पर 5,500 रुपए का जुर्माना लगाया जाता है, तो क्या यह अन्यायपूर्ण नहीं है? लेकिन सरकार के पास प्लेटें प्रदान करने के लिए पर्याप्त आधारभूत संरचना नहीं है, फिर सरकार इसे अपरिहार्य बनाने के लिए क्यों जिद कर रही है? जब अभी प्लेटों की उपलब्धता नहीं है, तो नागरिकों पर इसके लिए जुर्माना क्यों लगाया जा रहा है?

जो लोग एक वाहन के मालिक हैं वे इसे आवाजाही के लिए उपयोग करते हैं। वे रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए अपने वाहनों पर भरोसा करते हैं। वाहन उनकी अपनी आवश्यकता है, लेकिन सरकार ने अचानक प्लेटों को बदलने की योजना बनाई और जुर्माना लगाना शुरू कर दिया। जबकि उसके पास हर नागरिक के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है, फिर ऐसी हड़बड़ी क्यों? अगर सरकार इसके लिए तैयार नहीं है तो ऐसी आपात स्थिति क्यों है?

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