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Ground Report : कागजी 'स्मार्ट सिटी' कानपुर के ये हजारों बाढ़ग्रस्त लोग इस बार करेंगे वोटों का बहिष्कार
कानपुर दक्षिण के बर्रा-8 वरूण विहार व आस-पास नदी का जलस्तर बढ़ने से दिक्कत में हजारों परिवार.
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार, कानपुर। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तकरीबन दर्जनो जिलों को स्मार्ट सिटी घोषित कर दिया है। कानपुर भी इसमें शामिल एक जिला है, जो कथित स्मार्ट सिटी का दर्जा पा चुका है। अब जिस पार्टी के सांसदों को सौ-डेढ़ सौ तक की गिनती भी ना आती हो वहां की स्मार्ट सिटी का मतलब क्या होता है शायद पार्टी और पार्टी के नेताओं को अहसास भी ना हो।
नेशनल हाइवे से तकरीबन डेढ़ से दो किलोमीटर टूटू-फूटी और गड्ढामय सड़क को पार करते हुए आप रामगोपाल चौराहे से जैसे ही आगे बढ़ेंगे तो आधा किलोमीटर के अंतराल में पांडु नदी मिलेगी। लगातार चार दिनो की बरसात के बाद इस नदी ने विकराल रूप ले लिया है। जिसके चलते अगल-बगल के तमाम मुहल्ले और सैंकड़ों की तादाद में घर पानी से लबालब हो गये हैं।
बर्रा-8, आर के पुरम, महरबान सिंह का पुरवा के कई घर जलमग्न हैं। इन सबमें सबसे अधिक खराब जो हालत है वह वरूण विहार कच्ची बस्ती की है। इस कच्ची बस्ती की आबादी 800 के तकरीबन बताई जाती है। यहां अधिकतर दिहाड़ी मजदूर और रोजेदार लोग रहते हैं। बस्ती के अंदर तक पहुँचने के लिए हमें भी खासी मशक्कतों का सामना करना पड़ा। चारोें तरफ काई-कूड़ा, जलभराव, कीड़े-मकोड़े और मच्छरों से भरी गलियों में समस्याएं लेकर हमारे पास इकट्ठा होने लगे।
बस्ती के अंदर पहुँचते ही चारों तरफ से पानी में घिरे मकान के दरवाजे पर खड़ी महिला तारा हमसे मुखातिब होते हुए बताती है कि, 'हम लोग पिछले 15 सालों से यहां रह रहे हैं। कानपुर से लगाकर लखनऊ सीएम आवास तक अपनी समस्याएं लेकर गये, लेकिन कभी भगवान झूठ ना बुलाए जो एक बात की सुनाई की गई हो। खुद योगी ने कहा था इन लोगों के लिए कालोनी की व्यवस्था करो, लेकिन उसके बाद फिर सब ज्यों का त्यों हो जाता है।'
हमारे साथ चल रहे धनंजय गौतम काफी गुस्से में लग रहे थे, कहते हैं 'भइया, ये बताओ क्या हम लोग पाकिस्तान से आए हैं, या फिर बांग्लादेशी हैं। हम सभी यहीं के रहने वाले हैं, यूपी के हैं। तब भी कोई नहीं सुनता। बरसात में मकान खाली कर देने का आदेश अलग से आ जाता है। कहां मरें जाकर हम लोग। कोई व्यवस्था हो, सुविधा हो तो खाली करें। इतनी गंदगी में हमें कुत्ते ने काटा है, जो यहां रहते हैं।'
बगल में खड़ी गीता रानी हालात पूछने पर झल्ला जाती है। कहती है, नेता लोग तब आते हैं, जब वोट मांगने का समय आता है। आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड सब है हमारे पास लेकिन यह सब काम आता है तो सिर्फ और सिर्फ वोट डालने के लिए। सांप तक यहां धूम रहे हैं, हमारे बाल-बच्चे तक यहां सुखी नहीं हैं। हर समय डर लगा रहता है, देखिए 5 मकान गिर चुके हैं, बरसात में। मरते-मरते बचे हैं यहां कई लोग।'
यहां के निवासी जितेंद्र कहते हैं, 'भाई साहब इतनी दिक्कत है कि, हम लोगों को टट्टी-पेशाब तक का रास्ता नहीं बचा है। इतनी दिक्कत हो रही की बस हमीं लोग जानते हैं कि कैसे रह रहे और जी रहे हैं। सभासद हैं इस समय यहां की आरती गौतम, उनके पास जाओ तो कहती हैं हां-हां करा देंगे, हो जाएगा, फिर सब बात निकल जाती है। किसी विधायक, सांसद, अफसर के यहां जाओ तो उनके गार्ड धक्के देकर भगा देते हैं।'
बुजुर्ग बासुदेव गुप्ता का कहना है कि, 'यहां नेताजी सिर्फ चुनाव के समय झलक दिखाते हैं, बाद बाकी लापता हो जाते हैं। आते हैं पैर छूते हैं, वोट डलवाते हैं, कुर्सी हथिया लेते हैं बाद बाकी आप देख ही रहे हैं। हमने पूछा नेताजी पैर छूते हैं तो छाती चौड़ी होती है कि नहीं? जिसपर बासुदेव कहते हैं, हां छाती तो चौड़ाती है, लेकिन उस छाती के चौड़ाने का फायदा ही क्या है, जब हम लेग दिक्कत के बीच रहें।'
आगे हम उन लोगों के यहां भी गये, जिनके मकान इस बारिश के बाद जमींदोज हो गये हैं। इनमें से एक रानी गौतम का मकान गिरा है। रानी इस समय अपने चार बच्चों के साथ गिरे हुए घर के बाहर अस्थाई तौर पर पन्नी डालकर रह रही हैं। रानी कहता हैं, 'अब क्या करें भइया। सांप-बीछी (बिच्छू) भी कभी कभार पानी में निकलकर चढ़ आते हैं, बड़ा देखकर रहना पड़ रहा है, छोटे-छोटे बाल-बच्चे हैं।'
रानी के पड़ोस में ही रहने वाली गीता का मकान तीन दिन पहले बरसात और नदी का जलस्तर बढ़ने से गिर गया था। हम गीता के घर के अंदर गये तो गिरे हुए हिस्से की तरफ हमें आगे बढ़ने से रोक दिया गया। बताया गया कि आगे मत जाइये, बाकी का हिस्सा भी गिरने का खतरा है। गीता के दो बच्चे हैं। गीता ने घर गिरने के बाद सामने किराए पर मकान लिया है। वह कहती हैं, 'अब क्या करें, खाना खाने पकाने तक की जगह नहीं बची थी, घर में। एक बेटी है, एक बेटा है, सोने खाने के लिए मकान किराए पर लेना पड़ा।'
इस बीच जीतेंद्र सहित कई लोग वोट ना देने की बात भी कहते हैं। लेकिन जब हमने पूछा कि आपके वोट ना देने से क्या होता है, बाकी लोग तो वोट देंगे ही। जिसके बाद लगभग सभी लोग एक सुर में सुर मिलाकर वोट ना देने की बात कहते हैं। यहां की सैंकड़ों की तादाद में महिलाएं, वयस्क और पुरूष एक साथ आगामी चुनाव में वोटों का बहिष्कार कर देने की बात कहते नजर आए।
जितेंद्र कहते हैं कि, 'अबकी बार चाहें जो नेता आए, विधायक आए, सांसद आए या खुद मुख्यमंत्री चले आएं हम वोट नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे। जितेंद्र के सुर में कई लोगों ने सुर मिलाया। इन सभी का कहना है कि वोट बिल्कुल नहीं देंगे। या तो यहां के गरीबों की मांग पूरी की जाए, रहने के लिए मकान दिए जाएं। जब सरकार अपना वादा पूरा कर देगी तब हम सोचेंगे की वोट देना है, और किसे देना है।'