कोविड-19 के वैक्सीन का प्रचार चरम पर, लेकिन असर की पूछो तो किसी के पास नहीं कोई जवाब
प्रतीकात्मक फोटो
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
अब तक तो किसान और मानवाधिकार कार्यकर्ता ही मोदी जी और उनकी सरकार की विश्वनीयता पर सवाल उठाते थे, पर कोविड-19 के वैक्सीन के उपयोग को स्वीकृत किये जाने के बाद से तो विपक्षी नेता भी मोदी जी और बीजेपी के नेताओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करने लगे हैं। जाहिर है, सरकार के पास कभी किसी सवाल का जवाब नहीं रहता और इस बार भी नहीं है। जब अखिलेश यादव समेत दूसरे नेताओं ने मोदी जी के टीके पर अविश्वास जताया तब बीजेपी नेताओं के पास बस एक ही जवाब था, वैज्ञानिकों पर तो विश्वास कीजिये। हालांकि सरकार के मंत्री, प्रधानमंत्री और बीजेपी नेताओं ने कभी भी वैज्ञानिकों का नाम नहीं बताया है। हरेक बार वैक्सीन बनाने वाली कंपनी और कंपनी के प्रमुखों का नाम आता है। सीरम इंस्टिट्यूट की वैक्सीन कोविडशील्ड का विकास और अध्ययन तो ग्रेट ब्रिटेन के संस्थानों में किया गया है और केवल उत्पादन भारत में किया जा रहा है। पर, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का प्रचार तो स्वदेशी वैक्सीन के तौर पर किया जा रहा है। जाहिर है इस पर पूरा अनुसंधान यहीं किया गया होगा फिर भी किसी वैज्ञानिक का नाम कभी नहीं बताया गया। जाहिर है, विपक्ष किसी वैज्ञानिक की उपेक्षा नहीं कर रहा है, बल्कि वैज्ञानिकों की उपेक्षा तो भारत सरकार, भारत बायोटेक और आईसीएमआर कर रहा है।
शशि थरूर, जयराम रमेश समेत अनेक विपक्षी नेताओं ने बार-बार यह सवाल उठाया है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का अब तक तीसरे चरण का परीक्षण पूरा नहीं हुआ है, तब इसे कैसे उपयोग की अनुमति दी गई है। जब, सरकार के मंत्रियों के पास किसी सवाल का जवाब नहीं होता तब वे जोर-जोर से सवाल को विपक्ष की राजनीति बताना शुरू करते हैं। इस बार भी यही किया जा रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के इस सन्दर्भ में बार-बार बदलते बयान हैं। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री स्वयं पेशे से डॉक्टर रह चुके हैं और फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी जुड़े हैं। किसी भी वैक्सीन के तीसरे चरण तक सफलतापूर्वक परीक्षण के बाद ही उपयोग में लाने की वकालत अब तक स्वयं विश्व स्वास्थ्य संगठन ही करता रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने अंत में बताया है कि कोवैक्सीन को केवल परीक्षण की अनुमति मिली है। दूसरी तरफ ड्रग कंट्रोलर ऑफ़ इंडिया ने इसके उपयोग की अनुमति दी है। ड्रग कंट्रोलर ऑफ़ इंडिया का पेशेवर रवैया तो देखिये, जिस वैक्सीन के सफलता दर को इसे बनाने वाली कंपनी महज 70 प्रतिशत बता रही हैं, उसे उपयोग की अनुमति देते हुए यह संस्थान 110 प्रतिशत सफलता की गारंटी दे रहा है।
अभी तक की योजना के अनुसार पहले चरण में कुल तीन करोड़ लोगों को, जिसमें अधिकतर डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी और फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं, को वैक्सीन की खुराक मिलने वाली है। सरकार का अधिक जोर भारत बायोटेक की कोवैक्सीन पर है क्योंकि इसे स्वदेशी बताकर ज्यादा वाहवाही ली जा सकती है और चुनावों में इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है। हालांकि इसके परीक्षण पूरे नहीं हुए हैं। इन तथ्यों से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि जल्दी ही तीन करोड़ लोगों में से अधिकतर लोग जिन्हें कोवैक्सीन दी जायेगी, संभव है उन्हें ही परीक्षण का पात्र बना दिया जाए। यदि, तथाकथित परीक्षण सफल रहता है तो भारत बायोटेक इसे प्रचारित भी कर सकता है। दुनिया में कोविड-19 की वैक्सीन का सबसे बड़ा परीक्षण इस कंपनी ने किये जिसमें करोड़ों लोगों ने अपनी मर्जी से हिस्सा लिया।
भारत बायोटेक के कोवैक्सिंन पर केवल विपक्ष ही सवाल नहीं उठा रहा है। बल्कि सीरम इंस्टिट्यूट के मालिक पूनावाला ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि दुनिया में कोविड-19 की वैक्सीन केवल ऑक्सफ़ोर्ड-ऐस्त्राजेनिका, मोडर्ना और फाईजर ने बनाई है। शेष जो कम्पनियां जिसमें भारत बायोटेक भी सम्मिलित हैं वैक्सीन का दावा कर रहीं हैं वह सिर्फ पानी है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑक्सफ़ोर्ड-ऐस्त्राजेनिका के वैक्सीन का उत्पादन भारत में कोविडशील्ड के नाम से कर रही है, जिसे ड्रग कंट्रोलर ऑफ़ इंडिया ने उपयोग की अनुमति दी है। इसके जवाब में भारत बायोटेक ने वही पुराना स्वदेशी की उपेक्षा का राग अलापा है।
एक तरफ भारत में पिछले कुछ दिनों से सरकार और मीडिया कोविड-19 की वैक्सीन का मुद्दा दिन-रात उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ देश में कोविड-19 के नए स्ट्रेन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अभी बहुत समय नहीं बीता है, जब मीडिया, प्रधानमंत्री और मंत्री दिन भर समाचार चैनलों के माध्यम से आयुर्वेद, होमियोपैथी, योगए और काढा से कोविड-19 के उपचार और बचाव का दावा कर रहे थे। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी इन दावों में शामिल थे। प्रधानमंत्री समेत पूरी भाजपा इन दावों को दुहराती रही। बड़ी आबादी बड़ी शिद्दात से काढा पीती रही और देश में कोविड-'19 के मामले लगातार बढ़ते रहे। इस बीच रामदेव ने भी कोरोनिल नामक दवा इस दावे के साथ बाजार में उतार दी कि इससे कोविड-19 के मरीज ठीक हो जाते हैं। अब इतने दावों के बाद, आज के दौर में जब कोविड-19 के नए मामले बहुत कम हो चुके है,ं तब इसके वैक्सीन पर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है?
कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों के शरीर में इसके एंटीबडीज बनाते हैं, जो इस रोग का मुकाबला करने में सक्षम होते हैं। कोविड-19 के वैक्सीन से भी ऐसे ही एंटीबाडीज बनेंगे, जो इस रोग से बचायेंगें। अब तक जितने भी अनुसंधान किये गए हैं उससे यह स्पष्ट होता है कि कोविड-19 के बाद बने एंटीबाडीज तेजी से नष्ट भी होते हैं और इनके नष्ट होने की दर महिलाओं और पुरुषों में अलग हैं। फ्रांस के स्ट्रासबर्ग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किये गए अध्ययन के अनुसार कोविड-19 से संक्रमित होकर ठीक होने वाले पुरुषों के शरीर में स्त्रियों की अपेक्षा अधिक तेजी से एंटीबॉडीज नष्ट हो रहे हैं। यहाँ पर कोविड-19 से ग्रस्त होने वाले 308 मरीजों का 6 महीने तक गहन अध्ययन किया गया और एंटीबॉडीज के स्तर को 172 दिनों के अंतराल पर मापा गया। कोविड-19 के बारे में शुरू से बताया जा रहा है कि महिलाएं इससे अधिक ग्रस्त होती हैं, पर मृत्यु दर के संदर्भ में पुरुष बहुत आगे हैं। संक्रमण के शुरू में भी स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के शरीर में एंटीबॉडीज अधिक बनाते हैं और नए अध्ययन के अनुसार पुरुषों के एंटीबॉडीज अपेक्षाकृत अधिक तेजी से नष्ट भी होते हैं।
जाहिर है, पुरुषों और स्त्रियों का रोग-प्रतिरोधक तंत्र इस वायरस के सन्दर्भ में अगल व्यवहार करता है। ऐसे में एक ही टीके से सबको एक समान रोग से बचा पाना असंभव है। पर, किसी भी टीके के परीक्षण में ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है। कोविड-19 का टीका इस दौर में शुद्ध मुनाफे का सौदा है और पूंजीवाद में करोड़ों लोगों की जिन्दगी दांव पर लगाना कोई नई बात नहीं है। दूसरी तरफ सरकारों के लिए वैक्सीन एक वोट बैंक की तरह है।