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जनज्वार विशेष

Adam Gondvi Brithday Special : हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा का चित्रण करने वाले कवि थे अदम गोंडवी

Janjwar Desk
22 Oct 2021 2:24 PM IST
Adam Gondvi Brithday Special : हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा का चित्रण करने वाले कवि थे अदम गोंडवी
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Adam Gondvi Brithday Special : अडम गोंडवी की रचनायें एक ऐसा आईना है जो हर किसी के दिलों को झकझोर कर रख देती है। अदम की कविता दुनिया में अचरज की तरह है। इसको समझना भी बहुत ही आसान है।

Adam Gondvi Brithday Special। हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा का चित्रण करने वाले कवि अदम गोंडवी (Adam Gondvi) का आज जन्मदिन (Birthday) है। शायरों की दुनिया में अदम गोंडवी की अपनी अलग ही जगह है। वे नज़ाकत से बातों को रखना पसंद नहीं करते। उनकी शायरी में चोट है, तीखापन है और साफगोई है। वे सीधे अंदाज में बातों को इस कदर रखते हैं कि शब्द आकर नश्तर की तरह चुभ जाते हैं। गोंडवी को इसी वजह से कई शायर पसंद नहीं करते। वे उन्हें शायर तक मानने से कतराते रहते हैं, लेकिन अवाम को गोंडवी की गजलों में ऐसी कड़वी सच्चाई दिखती है गोया वे उनकी ज़िंदगी के आस-पास की घटना की रिपोर्ताज हो। इसलिए गोंडवी जनता के शायर कहे गए। उनके दुख दर्द को इबारतों में उकेरा। उन्होंने व्यवस्था पर करारा तंज किया। उनकी गजलें समाज के रसूखदारों को भी चुभती हैं और देश चलाने वाले राजनेताओं को भी।

अदम गोंडवी गोंडा के ग्राम आंटा के गजराज पुरवा के रहने वाले थे। 'मानवता का दर्द लिखेंगे, माटी की बू- बास लिखेंगे, हम अपने इस काल खण्ड का एक नया इतिहास लिखेंगे...' ये पंक्तियां निर्बलों के लिये हर किसी की जुबा पर आज भी गूंजती है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न सिर्फ मानवता के दर्द को बयां किया, बल्कि अपने अवध की माटी की बू- बास से भी लोगों को बखूबी रूबरू कराया।

उनकी रचनायें एक ऐसा आईना है जो हर किसी के दिलों को झकझोर कर रख देती है। अदम की कविता दुनिया में अचरज की तरह है। इसको समझना भी बहुत ही आसान है। जहां हिन्दी की समकालीन कविता अभिजन भाषा व जटिल बिम्बों व प्रतीकों में उलझी करीब- करीब अपठनीय सी हो गयी हो वहां अदम की कविता जनता की अवधी गंवई भाषा में जनता के दुःख दर्द की बात करती है।

अदम की रचनायें जड़ता को तोड़ती है और उसे नई चेतना से भर देती है। भले ही उनको गुजरे दस साल से अधिक का समय बीत गया हो लेकिन उनकी गजलों की गरमाहट आज भी समाज में बरकरार है। गवईं लहजे में आम आदमी का दर्द उकेरने वाले अदम गोण्डवी की रचनाओं में कुछ ऐसा जादू है कि उनकी शख्सियत की चर्चा सात समन्दर पार तक होती है।

18 दिसम्बर 2011 को दुनिया से अलविदा कहने वाले अदम गोण्डवी गजलों (Adam Gondvi Gazal) के जरिये खद्दरधारियों व जन प्रतिनिधि यों को उनकी जिम्मेदारियों का कुछ इस तरह एहसास कराते थे " काजू भुनी प्लेट में विहस्की गिलास मे , उतरा है रामराज विधायक निवास में।" 22 अक्टूबर 1947 को परसपुर के आटा ग्राम पंचायत के पूरे गजराज सिंह पुरवा गांव में जन्में अदम ने अपना जीवन दूसरों के लिये जिया। मुफलिसी का किरदार ओढ़कर उन्होने अपनी रचनाओं के जरिये समाज के दर्द को नुमाया किया। गांव में प्राइमरी तक शिक्षा तालीम करने वाले के बाद अदम जी ने शुरूआती जिन्दगी खेत खलिहानों में बिताई। इसमें किसानों के पैरों की फटी बेंवाई भी उनके शायरी में उतर आयी।

सामन्तवादी प्रथा (Feudal System) के खिलाफ आवाज बुलन्द करते हुये उन्होने खेत और खलिहानों में इन्कलाब की ऐसी फसल बोई कि आज बदलाव समाज के सामने है। बाढ़ पीड़ितों (Flood Victims) का दर्द हो या जुम्मन की रकाबी की बात , उन्होंने रचनाओं से ऐसी तस्वीर खींची कि हर कोई पढ़ने वाला गरीबों से आंख मिलाने की ताब नही ला सका। वो कहते थे कि घाघरा की बाढ़ में जब गांव सारे बह गये , बस यहां उस दिन से उनके बंगलों में त्यौहार है।

साम्प्रदायिक हालातों (Communal Forces) पर भी गहरा चोट करते हुये उन्होंने अपनी रचनाओं में लिखा था गलतियां बाबर की थी , जुम्मन का घर फिर क्यों जले। इस शख्सियत ने अपने परिवार के ऐशोआरम के लिये साजो सामान तो नही जुटाए। नतीजा यह हुआ कि उनकी मृत्योपरान्त गिरवीं रखे खेत को तत्कालीन डीएम रामबहादुर के सहयोग से छुड़ाया गया था।

अदम गोण्डवी की कुछ प्रख्यात रचनाएं:

खुदी सुकरात की हो या हो रूदाद गांधी की,

सदाकत जिंदगी के मोर्चे पर हार जाती है,

जुल्फ – अंगडाई – तबस्सुम – चाँद – आईना - गुलाब

भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब,

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी,

इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब,

'आप आएं तो कभी गावों की चौपालों में,

मैं रहूँ या न रहूँ, भूख मेजबाँ होगी। '

फटे कपड़ों में तन ढांके गुज़रता हो जहाँ कोई,

समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती है।

बजाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है,

कोई रूसो, कोई हिट्लर कोई ख़य्याम होता है।

मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की,

यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की।

इस व्यवस्था ने नयी पीढ़ी को आख़िर क्या दिया,

सेक्स की रंगिनियां या गोलियाँ सल्फ़ास की।

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए,

दफन है जो बात उस बात को मत छेड़िए।

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं, जुम्मन का ग़र फिर क्यूँ जले,

ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालत को मत छेड़िए।

तुम्हारी फ़ाइलो में गाँव का मौसम गुलाबी है,

मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।

काजू भूनी प्लेट में व्हिस्की भरी गिलास में,

उतारा है राम राज्य विधायक निवास में।

पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत,

इतना असर है खादी के उजले लिबास में।

भूख के अहसास को शेरोसुखन तक ले चलो,

या अदब को मुफ़लिसों की अंज़ूमन तक ले चलो।

जो ग़ज़ल माशूक़ के जलवों से वाक़िफ़ हो गयी,

उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो।

विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का सन्यास लिखा है,

बूढ़े बरगद के वल्कल पर सदियों का इतिहास लिखा है।

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी,

जिसने जिस्म गिरवी रखकर क़ीमत चुकायी है।

जिस्म क्या है रूह क्या सब कुछ ख़ुलासा कीजिए

आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए

आप कहते हैं सर्राफ़ा गुलमोहर है ज़िंदगी

हम ग़रीबों की नज़र में एक क़हर है ज़िंदगी

चोरी ना करें झूठ ना बोलें तो क्या करें

चूल्हे पर क्या उसूल पकाएंगे शाम को।

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