- Home
- /
- जनज्वार विशेष
- /
- विशेष लेख : गौरी लंकेश...
विशेष लेख : गौरी लंकेश की हत्या एक पूरी विचारधारा को खत्म करने की साजिश
(प्रखर व निर्भीक पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की 5 सितंबर 2017 को हत्या कर दी गई थी)
गौरी लंकेश की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहे हैं महेंद्र पांडेय
जनज्वार। 5 सितंबर 2017 में गौरी लंकेश को बंगलुरु में उनके घर के बाहर गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया गया था। यह महज एक ह्त्या नहीं थी बल्कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष विचारधारा की ह्त्या की साजिश थी, और सन्देश स्पष्ट था- जो भी हिन्दू कट्टरवाद और आतंकवाद के खिलाफ बोलेगा, उसे मार दिया जाएगा। धार्मिक कट्टरवाद और उन्माद जब छद्म राष्ट्रीयता का जामा पहन लेता है तब समाज हिंसक हो जाता है और ऐसे में हरेक समस्या का अंत अनेक हत्याओं से होता है।
गौरी लंकेश ने भी आरएसएस, बीजेपी और दूसरे धार्मिक उन्मादी संगठनों को अपने लेखों के माध्यम से लगातार चुनौती दी थी। वरिष्ठ पत्रकार और दक्षिणपंथियों की आलोचक रही गौरी लंकेश 'लंकेश पत्रिका' का संचालन कर रही थीं जो उनके पिता पी लंकेश ने शुरू की थी। इस पत्रिका के ज़रिए उन्होंने 'कम्युनल हार्मनी फ़ोरम' को काफी बढ़ावा दिया।
गौरी लंकेश की ह्त्या के बाद लेखक मंगलेश डबराल ने कहा था, "उनकी हत्या यक़ीनन विचारधारा के कारण हुई है। वो पिछले दो साल से दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं। और अंतत: वो उनकी हत्या करने में सफल हुए। गौरी ने बार-बार लिखा कि मैं एक सेकुलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ हूं। '
लंकेश पत्रिका' काफ़ी लोकप्रिय थी और उसका समाज पर एक असर था। उस असर को मिटाने के लिए उन ताकतों को गौरी लंकेश को ही मिटाना पड़ा। इससे पहले वहां कलबुर्गी की हत्या हुई थी। नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे जी की जो हत्या हुई, पता चल रहा है कि उनको मारने का तरीका भी एक जैसा ही है। कई संस्थाओं का नाम सामने आया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।"
गौरी लंकेश का लिखा आखरी सम्पादकीय लंकेश पत्रिका में प्रकाशित किया गया था, वह पूरी तरह फेक न्यूज़ पर आधारित था – इसमें बताया गया था कि किस तरह केंद्र सरकार के मंत्री और मेनस्ट्रीम मीडिया फेक न्यूज़ फैलाने की फैक्ट्री बन चुका है।
अपने सम्पादकीय में गौरी लंकेश ने लिखा था, "हाल ही में पश्चिम बंगाल में जब दंगे हुए तो आर एस एस के लोगों ने दो पोस्टर जारी किए। एक पोस्टर का कैप्शन था, बंगाल जल रहा है, उसमें प्रोपर्टी के जलने की तस्वीर थी। दूसरे फोटो में एक महिला की साड़ी खींची जा रही है और कैप्शन है बंगाल में हिन्दु महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है। बहुत जल्दी ही इस फोटो का सच सामने आ गया। पहली तस्वीर 2002 के गुजरात दंगों की थी जब मुख्यमंत्री मोदी ही सरकार में थे। दूसरी तस्वीर में भोजपुरी सिनेमा के एक सीन की थी। सिर्फ आर एस एस ही नहीं बीजेपी के केंद्रीय मंत्री भी ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में माहिर हैं।"
उन्होंने आगे लिखा था, "उदाहरण के लिए, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने फोटो शेयर किया कि जिसमें कुछ लोग तिरंगे में आग लगा रहे थे। फोटो के कैप्शन पर लिखा था गणतंत्र के दिवस हैदराबाद में तिरंगे को आग लगाया जा रहा है। अभी गूगल इमेज सर्च एक नया अप्लिकेशन आया है, उसमें आप किसी भी तस्वीर को डालकर जान सकते हैं कि ये कहां और कब की है। प्रतीक सिन्हा ने यही काम किया और उस अप्लिकेशन के ज़रिये गडकरी के शेयर किए गए फोटो की सच्चाई उजागर कर दी। पता चला कि ये फोटो हैदराबाद का नहीं है। पाकिस्तान का है जहां एक प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन भारत के विरोध में तिरंगे को जला रहा है।
"केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक तस्वीर साझा की। लिखा कि भारत 50,000 किलोमीटर रास्तों पर सरकार ने तीस लाख एल ई डी बल्ब लगा दिए हैं। मगर जो तस्वीर उन्होंने लगाई वो फेक निकली। भारत की नहीं, 2009 में जापान की तस्वीर की थी। इसी गोयल ने पहले भी एक ट्वीट किया था कि कोयले की आपूर्ति में सरकार ने 25,900 करोड़ की बचत की है। उस ट्वीट की तस्वीर भी झूठी निकली। छत्तीसगढ़ के पी डब्ल्यू डी मंत्री राजेश मूणत ने एक ब्रिज का फोटो शेयर किया। अपनी सरकार की कामयाबी बताई। उस ट्वीट को 2000 लाइक मिले। बाद में पता चला कि वो तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं, वियतनाम की है।"
"ऐसे फ़ेक न्यूज़ फैलाने में हमारे कर्नाटक के आर एस एस और बीजेपी लीडर भी कुछ कम नहीं हैं। कर्नाटक के सांसद प्रताप सिम्हा ने एक रिपोर्ट शेयर किया, कहा कि ये टाइम्स आफ इंडिय मे आया है। उसकी हेडलाइन ये थी कि हिन्दू लड़की को मुसलमान ने चाकू मारकर हत्या कर दी। दुनिया भर को नैतिकता का ज्ञान देने वाले प्रताप सिम्हा ने सच्चाई जानने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
किसी भी अखबार ने इस न्यूज को नहीं छापा था बल्कि फोटोशाप के ज़रिए किसी दूसरे न्यूज़ में हेडलाइन लगा दिया गया था और हिन्दू मुस्लिम रंग दिया गया। इसके लिए टाइम्स आफ इंडिया का नाम इस्तमाल किया गया। जब हंगामा हुआ कि ये तो फ़ेक न्यूज़ है तो सांसद ने डिलिट कर दिया मगर माफी नहीं मांगी। सांप्रादायिक झूठ फैलाने पर कोई पछतावा ज़ाहिर नहीं किया।"
गौरी लंकेश की ह्त्या के बाद किसी बीजेपी नेता ने कोई अफ़सोस नहीं जाहिर किया, अलबत्ता अनेक बीजेपी नेता के खुशी वाले बयान सामने जरूर आये। दूसरी तरफ सरकार के आगे नतमस्तक मेनस्ट्रीम मीडिया ने अपनी तरफ से गौरी लंकेश के चरित्र हनन की पुरजोर मुहीम चलाई और पूरा वाकया कुछ इस तरह प्रस्तुत किया मानो कट्टरवाद के विरोधी ऐसी ही सजा के हकदार हैं।
इस पूरी घटना को आप निष्पक्ष आवाज को खामोश करने की साजिश और प्रश्न करने वाले पत्रकारों को खामोश करने की सरकारी नीति से जोड़ कर देख सकते हैं। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स वर्ष 2001 से लगभग हरेक वर्ष प्रेस की आजादी के लुटेरों की गैलरी (press freedom predators gallery) प्रकाशित करता है। अंतिम गैलरी वर्ष 2016 में प्रकाशित की गयी थी, इसके बाद किन्हीं कारणों से इसे प्रकाशित नहीं किया गया था। इस वर्ष, यानि 2021 में इस गैलरी को फिर से प्रकाशित किया गया है।
इसमें हमारे देश के प्रधानमंत्री समेत दुनिया के कुल 37 राष्ट्राध्यक्षों के नाम हैं। इस गैलरी में मोदी जी का नाम उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान, ब्राज़ील, हंगरी, सीरिया, रूस, चीन, म्यांमार और यूगांडा जैसे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ लिखा गया है। इस गैलरी में भारत समेत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और चीन के राष्ट्राध्यक्ष भी शामिल हैं। हमारे प्रधानमंत्री का नाम इस गैलरी में वर्ष 2014 से 2016 तक भी रह चुका है।
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स ने वर्ष 2020 में प्रेस की आजादी के डिजिटल लुटेरों (press freedom digital predators 2020) की गैलरी को भी जारी किया था। इस गैलरी में ऐसे समूहों, मंत्रालयों या फिर डिजिटल कंपनियों के नाम शामिल थे जो किसी भी देश में सरकारों के इशारे पर किसी भी पत्रकार को सोशल मीडिया पर ट्रोल करते हैं, धमकियां देते हैं या फिर सोशल मीडिया पर किसी भी पत्रकार के खिलाफ अफवाह फैलाते हैं, या फिर किसी क्षेत्र के इन्टरनेट सेवा को बंद कर देते हैं।
इस गैलरी में कुल 20 नाम शामिल थे, जिसमें से दो नाम – मोदी ट्रोल आर्मी और भारत सरकार का गृह मंत्रालय – अकेले भारत से शामिल थे। इस गैलरी में राणा अयूब और बरखा दत्त को ट्रोल करने और देश में कभी भी और कहीं भी इन्टरनेट सेवा बंद करने का उदाहरण भी दिया गया है।
वर्ष 2020 में भारत में अपने काम के दौरान तीन पत्रकारों की हत्या कर दी गई, जबकि आतंक के साए से जूझ रहे अफ़ग़ानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी इतने ही पत्रकार मारे गए। काम के दौरान मारे गए पत्रकारों की संख्या के सन्दर्भ में भारत का स्थान तीसरा है। इन आंकड़ों को इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस यानि 10 अक्टूबर 2020 को जारी किया था।
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स नामक संस्था वर्ष 2008 से लगातार हरेक वर्ष ग्लोबल इम्पुनिटी इंडेक्स प्रकाशित करती है। इसमें पत्रकारों की हत्या या फिर हिंसा से जुड़े मामलों पर कार्यवाही के अनुसार देशों को क्रमवार रखती है। इस इंडेक्स में जो देश ऊपर के स्थान पर रहता है वह अपने यहाँ पत्रकारों की ह्त्या के बाद हत्यारों पर कोई कार्यवाही नहीं करता। ग्लोबल इम्पुनिटी इंडेक्स में भारत का स्थान 12वां था, जबकि 2019 में 13वां और 2018 में 14वां। इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे देश में पत्रकारों की हत्या या उनपर हिंसा के बाद हत्यारों पर सरकार या पुलिस की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
इन आंकड़ों से यह समझना आसान है कि देश में सरकार और पुलिस की मिलीभगत से पत्रकारों की ह्त्या की जाती है। दुनिया के केवल 7 देश ऐसे हैं जो वर्ष 2008 से लगातार इस इंडेक्स में शामिल किये जा रहे हैं और हमारा देश इसमें एक है। जाहिर है, वर्ष 2008 के बाद से देश में पत्रकारों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2021 में कुल 180 देशों की सूचि में भारत का स्थान 142वां था। हमारे देश की मेनस्ट्रीम मीडिया भले ही मोदी जी की भक्ति में डूबी हो, उनकी आरती उतार रही हो – पर इतना तो स्पष्ट है कि दुनिया सबकुछ देख रही है और समझ भी रही है। हमारे देश में गौरी लंकेश जैसी निष्पक्ष और निर्भीक कलम को कुचलने के लिए सरकार समर्थित कट्टरवादी संगठन गोला-बारूद और तोप-टैंकों के साथ सडकों पर उतर आये हैं, मेनस्ट्रीम मीडिया निर्भीक आवाजों का चरित्र हनन करेगा, पुलिस हत्यारों के समर्थन में उतरेगी, न्यायालय में न्यायाधीश आर्डर-आर्डर करते हथोडा बजायेंगे और सरकार जश्न और महोत्सव मनायेगी।