चमोली के थराली में स्टोन क्रशर के खिलाफ 3 माह से चल रहे आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस एक्शन में, 6 महिलाओं के खिलाफ भेज दिया काम में व्यावधान डालने का नोटिस
Chamolil news : शास्त्रों में लिखे जिस "त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम; देवो न जानाति कुतो मनुष्यः।।" श्लोक का अर्थ राजा का चित्त, कंजूस का धन, दुर्जनों का मनोरथ, पुरुष का भाग्य और स्त्रियों का चरित्र देवता तक नहीं जान पाते तो मनुष्यों की तो बात ही क्या है? बताया गया है उसे यदि पुलिस के सन्दर्भ में अभिव्यक्त किया जाए तो "पुलिस्यम चरित्रं, देवो न जानाति कुतो मनुष्य:।।" से बेहतर शायद ही कोई शब्द हों। हालिया हुए दो प्रकरणों में पुलिस ने जैसे एक ही क्षेत्र की जैसे मनमाफिक व्याख्या की है, वह बताता है कि पुलिस के लिए असम्भव कोई शब्द नहीं है। किसी मामले में पुलिस की दिलचस्पी हो तो वह अपने अधिकार क्षेत्र से आगे जाकर भी काम कर सकती है तो जिस मामले में उसने रुचि नहीं दिखानी तो उस मामले को वह बखूबी टाल देती है।
बात करें पहले प्रकरण की तो अल्मोड़ा जिले के जिस जगदीश हत्याकांड की जो आवाज इन दिनों पूरे उत्तराखंड में गूंज रही है, उससे बचा जा सकता था अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता। दरअसल, अपनी मौत से कुछ दिन पहले ही जगदीश चंद्र ने अल्मोड़ा एसएसपी के दरबार में गुहार लगाते हुए अपनी सुरक्षा की मांग की थी। अल्मोड़ा जिले सहित पहाड़ों के ग्रामीण इलाकों का अधिकांश हिस्सा पुलिस के कार्यक्षेत्र से बाहर रहता है। इन इलाकों में राजस्व विभाग का पटवारी ही गांव की छोटी-मोटी समस्याओं का निराकरण करता है।
अल्मोड़ा पुलिस जगदीश की शिकायत पर क्षेत्र राजस्व होने के कारण कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं कर सकी। 27 अगस्त को दी गई जगदीश की शिकायत का यह कागज पांच दिन तक पुलिस की फाइल में इसलिए पड़ा रहा कि जिस क्षेत्र में कार्यवाही होनी थी, वह पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर का क्षेत्र बताया जा रहा था। इतने गंभीर मामले में भी पुलिस ने अधिकार क्षेत्र को लेकर जो गफलत पाली, उसी की दुखद परिणीति के रूप में जगदीश हत्याकांड सामने आया। यह तो था वह प्रकरण जिसको लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई।
इसके उलट चमोली जिले का एक और प्रकरण है। इस मामले में राजस्व क्षेत्र होने के बाद भी पुलिस जबरन इसमें घुसपैठ करने पर तुली है। जानकारी के लिए बता दें कि चमोली जिले के थराली तहसील के ककरतोली इलाके में एक स्टोन क्रेशर लगाया जा रहा है। लग रहे इस स्टोन क्रेशर के खिलाफ जबरकोट गांव की महिलाएं पिछले चार महीने से आंदोलन कर रही हैं। महिलाएं अपने घर के विभिन्न कामों के साथ साथ इस आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए मजबूती के साथ इस आंदोलन में खड़ी हैं।
ग्रामीण महिलाएं अपने क्षेत्र में खनन माफिया की इस घुसपैठ से अपने खेत खलिहान, अपने जंगल और अपने बच्चो के स्कूल को बचाने की कोशिश में है। दिन के साथ-साथ ही रातों को भी महिलाएं आंदोलनरत है। आरोप यह भी है कि स्टोन क्रेशर लॉबी इस आंदोलन को खत्म करने के लिए आंदोलन में शामिल इन महिलाओं को डरा-धमका रही है। आंदोलन के तीन महीने बीतने के बाद और प्रशासनिक अमले का झुकाव स्टोन क्रशर लगाने वाले के पक्ष में होने के बावजूद, इस इलाके में स्टोन क्रशर लगा पाना संभव नहीं हुआ, तो पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर के इस मामले में पुलिस की ड्रामेटिक एंट्री करवाई गई।
एक भू माफिया द्वारा झूठा केस दर्ज कराकर पुलिस को गाँव में भेजते हुए गाँव में पुलिस के जरिये डर का माहौल बनाने की कोशिश की गयी। जिस गांव में पुलिस की यह दस्तक हुई वह गांव पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर राजस्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन इस सबके बाद भी जबरकोट गांव की महिलाओ ने गांव में पहुंचे पुलिसकर्मियों का जोरदार स्वागत कर उन्हें चाय पिलाई। गांव पहुंची पुलिस के हर सवाल का महिलाओं ने मजबूती के साथ जवाब देते हुए इसे पटवारी क्षेत्र में उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुए जो कहा, वह वीडियो में पाठक खुद देख सकते हैं।
महिलाओं का साफ कहना है कि जिस क्षेत्र में स्टोन क्रेशर लग रहा है वह हमारा पूरा क्षेत्र पटवारी क्षेत्र में आता है। जो पटवारी क्षेत्र होता है वहां रेगुलर पुलिस नही जाती है। वह क्षेत्र पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है। अधिकार क्षेत्र न होने के बाद भी पुलिस यहां आई है तो इससे साफ पता चलता है कि पुलिस की यहां आने की मंशा क्या है?
थराली तहसील में चल रहे इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेता कपूर रावत भी आंदोलन की वजह से खनन कारोबारियों के निशाने पर हैं। कपूर का कहना है कि जब इतने भर से उस भू माफिया का मन नहीं भरा तो उसने कुछ युवाओं पर फिर से केस किया और पुलिस के जरिये उन युवाओ को थाना बुलाकर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए उनको 2 घंटे तक खड़ा रखा। मैं और मेरे दो साथी नीरज कंडारी, प्रधुमन कंडारी और छोटे भाई गोविंद थाना गये और उन युवाओ को लेकर आये। मेरे सामने एक पुलिस वाला दूसरे पुलिस वाले से कहा रहा था कि जो महिला ज्यादा बोल रही थी उसको गाड़ी में डालकर यहाँ थाने में लाकर बताते हैं कि पुलिस से सवाल करना क्या होता है।
कपूर का कहना है कि इस तरह की मानसिकता वाला अधिकारी वहाँ बैठकर बच्चों को धमकी देने पर आमादा किसकी शह पर हो रहा है, जबकि वह क्षेत्र ही पुलिस के अधिकार से बाहर का है। ऐसा नहीं है कि इस प्रकरण में अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर छुटभए पुलिसकर्मी ही गलती से शामिल हो गए हों। 7 सितंबर को कर्णप्रयाग के पुलिस क्षेत्राधिकारी की ओर से छह महिलाओं और कुछ पुरुषों को नोटिस भेजकर यह बताया गया कि उनके खिलाफ स्टोन क्रेशर लगाने के काम में व्यावधान पैदा करने की शिकायत है। इसलिए वह नोटिस मिलने के तीन दिन के अंदर क्षेत्राधिकारी कार्यालय कर्णप्रयाग आकर अपना बयान दर्ज करवाएं।
यानी निचले स्तर के पुलिसकर्मी जो काम बिना स्टोन क्रेशर का नाम लिए कर रहे थे, वह कर्णप्रयाग के पुलिस क्षेत्राधिकारी ने खुलेआम स्टोन क्रेशर पर केंद्रित करते हुए ही किया। तीन दिन में चालीस किमी. दूर आकर बयान दर्ज करने वाले नोटिस की कानूनी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नोटिस पर कोई तारीख तक दर्ज नहीं है। आंदोलन कर रही महिलाओं को हैरान परेशान करने वाले इस नोटिस को भेजने वाले पुलिस अधिकारी के क्षेत्राधिकार में वह इलाका ही नहीं है, लेकिन इसके बाद भी राजस्व पुलिस के अधीन आने वाले इस ग्रामीण इलाके में क्रेशर लॉबी को फायदा पहुंचाने की गरज से पुलिस क्षेत्राधिकारी ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर गाड़ी से पुलिस भेजकर महिलाओं को नोटिस तामील करा दिया।
मामला संज्ञान में आने के बाद में भाकपा माले के फायर ब्रांड युवा तुर्क नेता इंद्रेश मैखुरी ने जब इस सिलसिले में जिले की पुलिस अधीक्षक और प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से शिकायत की तो दोनों ने मामले को दिखवाने की बात कही। बकौल इंद्रेश पुलिस अधीक्षक ने बाद में यह भी कहा कि उन्होंने सीओ को समझा दिया है।
इस प्रकरण में इंद्रेश मैखुरी ने पुलिस के पटवारी क्षेत्र से असीम प्रेम करने को शक के दायरे में रखते हुए कहा कि बड़ा सवाल तो यह है कि थराली पुलिस और कर्णप्रयाग के क्षेत्राधिकारी को राजस्व पुलिस के क्षेत्र में पड़ने वाले इलाके में इतनी रुचि क्यों है? क्यों वह अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जा कर स्टोन क्रेशर के विरुद्ध आंदोलन करने वालों को डराने-धमकाने पर उतारू हो गए ? क्या क्रेशर वाले का दबाव इतना भारी है कि वह पुलिस से अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण भी करवा सकता है? दूसरे को कानून का पाठ पढ़ाने वाली पुलिस खुद खुलेआम कानून की सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है।
पुलिस विभाग के डीजीपी और एसएसपी के हस्तक्षेप से तो गांव के युवा पुलिस द्वारा किसी अवांछित घटना का शिकार होने से बच गए, लेकिन एक बार पटवारी क्षेत्र में घुसने वाली थराली पुलिस, फिर वहां घुस सकती है। इसलिए विभाग के जिम्मेदार बड़े अधिकारी थराली पुलिस को ताकीद करें कि क्रेशर वाला कितना ही बड़ा क्यों न हो, कानून और संविधान से बड़ा नहीं है। जो ग्रामीण क्रेशर के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं, वह भी भारत के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का उपयोग कर रहे हैं। क्रेशर लॉबी के पास दौलत का पहाड़ हो और वह उस दौलत के पहाड़ की चोटी पर भी बैठा हो तो भी वह देश के कानून और भारत के संविधान से बड़ा नहीं हो जाएगा।
कुल मिलाकर उत्तराखंड पुलिस के यह दोनो कारनामे बताते हैं कि पुलिस को कुछ करना है तो वह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी सब कुछ करने पर आमादा हो सकती है, और अगर उसने कुछ नहीं करने की ठान हो ली हो तो उसके पास जायज हो या नाजायज, बहाने हजार हैं। पुलिस का यह चरित्र किसी की भी समझ से बाहर है।