ट्रांसपोर्टरों ने बढ़ते कर्ज से परेशान होकर लौटाए ट्रक, अचानक लॉकडाउन के बाद चौपट हो गया धंधा
मुंबई। असंगठित सड़क परिवहन क्षेत्र से जुड़े ट्रांसपोर्टर फेरों में कमी, उच्च परिचालन लागत और माल में कमी के चलते परेशान चल रहे हैं, इसके चलते वह या तो अपने ट्रक लौटा रहे हैं या तो उन्हें बेच दे रहे हैं। 31 अगस्त को ऋण की किस्त चुकाने पर लगा स्थगन समाप्त होने के बाद ट्रक परिचालक अपने ऋण के दोबारा भुगतान की समस्या का सामना कर रहे हैं।
आईएटीआरटी (इंडियन फाउंडेशन ऑप ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग) के वरिष्ठ फेलो एसपी सिंह बताते हैं कि फाइनैंसरों ने करीब तीस हजार ट्रकों को या तो जब्त कर लिया है या उन्हें वापस लौटा दिए हैं। इनमें से चालीस फीसदी की खरीद केवल 2019 में की गई है।
इस स्थिति को लेकर बॉम्बे गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बलमलकीत सिंह कहते हैं, स्थिति वास्तव में खराब है और चीजें तेजी से बदतर होती जा रही हैं। इसकी जद में आने वाले ज्यादातर छोटे परिचालक हैं जिनकी परिवहन क्षेत्र में 85 फीसदी हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि गोदाम और पार्किंग लॉ़ड ट्रकों से भरे हुए हैं। इन्हें या तो वापस लौटाया गया है या बेचने के लिए जब्त किए गए हैं।
एक ओर जहां ई-कामर्स कंपनियों और कृषि क्षेत्र द्वारा इस्तेमाल होने वाले छोटे और हल्के वाणिज्यिक वाहनों में तेजी से वापसी हो रही है, वहीं मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहनों की मांग खासकर ढुलाई में इस्तेमाल होने वाले वाहनों की मांग में भारी कमी बरकरार है। इन वाहनों की अत्यधिक क्षमता, माल की कम उपलब्धता और इनपुट लागतों में वृद्घि से परिचालकों की व्यवहार्यता कठिनाई में पड़ गई है। ऋणस्थगन के दौरान वे ज्यादा नहीं बचा पाए और अब वे ईएमआई का भुगतान करने में असमर्थ हैं। सिंह ने कहा, 'फाइनैंसर इन चूककर्ताओं के पीछे पड़ गए हैं।'
बिजनेस स्टैंडर्ड की एकर रिपोर्ट के मुताबिक, नवी मुंबई स्थित ट्रांसपोर्टर मीत इंद्रप्रीत सिंह भाटिया के ट्रक भारी संख्या में एलपीजी सिलिंडरों के परिवहन में इस्तेमाल हो रहे हैं। गत महीने भाटिया को अपने 23 ट्रकों में से 16 ट्रकों को उन बैंकों को वापस लौटाना पड़ा जहां से उन्होंने ऋण लिया था। बैंकों ने भाटिया की देनदारी निकालने के लिए उन ट्रकों को बेच दिया।
वह कहते हैं, 'अचानक से लॉकडाउन लागू होने के कारण ड्राइवर ट्रकों को महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में छोड़कर अपने घर चले गए। बहुत मुश्किल से मैंने उन ट्रकों को वापस मंगाया लेकिन उन्हें चालू रखने के लिए काम धंधा नहीं है। ऋण चुकाने के लिए मुझ पर बैंकों का बहुत अधिक दबाव था।'
ऐसे उदाहरणों की भरमार है। नई दिल्ली में ड्राइवर से ट्रांसपोर्टर बने गुंजीत सिंह सांघा के पास 40 ट्रकों का बेड़ा था। वे पहले ही इनमें से 22 ट्रकों को लौटा चुके हैं और बेच चुके हैं। इसके बाद वे बचे हुए ट्रकों से भी मुक्त होकर ट्रांसपोर्ट के कारोबार से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे हैं। वह कहते हैं, 'यह व्यवहारिक धंधा नहीं रह गया है।'