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संस्कृति

आज़मगढ़ के सिधारी में सालों से बंद पड़े सिंगल स्क्रीन थिएटर शारदा टॉकीज में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का सफल आयोजन

Janjwar Desk
29 March 2023 10:26 PM IST
आज़मगढ़ के सिधारी में सालों से बंद पड़े सिंगल स्क्रीन थिएटर शारदा टॉकीज में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का सफल आयोजन
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आज़मगढ़ के सिधारी में स्थित कई सालों से बंद पड़ा सिंगल स्क्रीन थिएटर शारदा टॉकीज अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन स्थल है। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के बड़े बड़े होर्डिंग्स लगे हुए हैं। हरे-भरे पेड़ों के बीच से गुजरती सड़क से करीब 10 सीढियां नीचे की तरफ जाती हैं...

धर्मेंद्र नाथ ओझा की रिपोर्ट

"दुनिया की सारी फिल्मों का आइडिया भारतीय धर्मग्रंथों से लिया गया है ।" लेखक और निर्देशक अमित राय ने तीन दिवसीय आज़मगढ़ फिल्म फेस्टिवल 23 के अपनी मास्टर क्लास में यह बात दावे के साथ कही आज़मगढ़ की आबोहवा थोड़ी पुरुषवादी है। वैसी जगह पर पिछले चार सालों से सिनेमा और संस्कृति का जो अलख अभिषेक और ममता पण्डित ने जगाया है वो काबिलेतारीफ़ है, क्योंकि हर रचनात्मक लेखन या कलाकर्म करने वाले को स्त्री होना पड़ता है। एक पुरुषवादी राजनीतिक सोच वाली जगह पर सिनेमा, साहित्य और थिएटर जैसे रचनात्मक आयोजन इतना आसान काम नहीं है।

आज़मगढ़ के जिस विरासत को शिबली नोमानी, सांस्कृत्यायन और कैफ़ी आज़मी ने संवारा और सींचा उसी विरासत का प्रतिनिधित्व अभिषेक पण्डित और ममता पण्डित जैसे युवा कर रहे हैं। अभिषेक फिल्म फेस्टिवल का क्रेडिट हमेशा अपने आचार्य अजित राय को देते हैं। फिल्म समीक्षक और लेखक अजित राय का कहना है कि मालवीय जी ने भिक्षा मांगकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी खड़ा कर दिया। फिर हम ऐसे श्रेष्ठ काम के लिए चंदा क्यों नहीं ले सकते? अजित जी ने इस साल आज़मगढ़ फिल्म फेस्टिवल के संरक्षक के रूप में भारत एक्सप्रेस न्यूज के मैनेजिंग डायरेक्टर उपेंद्र राय, फिल्म प्रोड्यूसर कैप्टन गुलाब सिंह और गोल्डन रेसीओ प्रोडक्शन हाऊस के सह संस्थापक पीयूष सिंह को जोड़ा।

अजित राय ने सार्थक देशी और विदेशी सिनेमा को जिस तरह से भारत के छोटे छोटे शहरों में फिल्म फेस्टिवल आयोजित कराके वहाँ के समाज और युवाओं को अच्छी फिल्में, मास्टर क्लास और संवाद से जोड़ा है यह मुहिम धीरे-धीरे एक सांस्कृतिक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है।

आज़मगढ़ के सिधारी में स्थित कई सालों से बंद पड़ा सिंगल स्क्रीन थिएटर शारदा टॉकीज अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन स्थल है। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के बड़े बड़े होर्डिंग्स लगे हुए है। हरे-भरे पेड़ों के बीच से गुजरती सड़क से करीब दस सीढियां नीचे की तरफ जाती है। जहाँ आगे के परिसर में रेड कारपेट बिछा है। चुनी हुई फिल्मों के बड़े पोस्टर , फिल्मी मेहमानों के होर्डिंग्स दीवार से लगे हुए हैं। फेस्टिवल देखने वाले होर्डिंग्स के पास खड़े होकर तस्वीरें उतार रहे हैं। जैसे ही आप शारदा टॉकीज में दाखिल होते हैं आपको एहसास होता है कि यह एक भग्नावशेष इमारत है, लेकिन सूत्रधार टीम के नवयुवकों ने अपनी प्रतिभा और आर्ट से उस भग्नावशेष को एक कलाकृति का रूप दे दिया है, जहाँ आपको बैठकर अतीत और वर्तमान के संगम का बोध होता है।

सुबह दस बजे के कार्यक्रम में होटल से शारदा टॉकीज़ आनेवाले मेहमान होते थे फ्रेंच अभिनेत्री मारियाना बोर्गो और जर्मन इंडियन एक्ट्रेस सुज़ैन बर्नेट। मास्टर क्लास, फिल्म शो, संवाद, परिचर्चा में मेहमान और दर्शक ऐसे डूब जाते कि सुबह दस बजे से रात का नौ कब बज जाता किसी को पता ही नहीं चलता ।

अभिनेता यशपाल शर्मा की दो फिल्में 'छिपकली 'और 'दादा लखमी' से फेस्टिवल का आगाज़ हुआ। उसके बाद पंकज कपूर की सहर, अमित राय की आईपैड, संजय सिंह चौहान की लाहौर और 72 हूरें से फेस्टिवल का समापन हुआ। आख़िरी दिन फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी का फेस्टिवल में आना और दर्शकों द्वारा कैफ़ी आज़मी पर एक बेहतरीन डॉक्यूमेंट्री देखना एक रोमांचक पल था।

इस फेस्टिवल की सबसे ख़ास बात है आज़मगढ़ी युवा और दर्शक। उनमें सीखने और जानने की ललक और उत्साह अदभुत है। हर मास्टर क्लास और परिचर्चा के बाद उन नौजवानों के पास सवाल होते थे। यह प्रश्नाकुल मानसिकता हमें जड़ होने से बचाता है और आधुनिक बनाए रखता है।

फिल्मकार अमित राय का मास्टर क्लास नया और प्रयोगात्मक था। जब किसी ने पूछा कि 'इन्सेप्शन' जैसी फिल्म भी भारत के ग्रन्थों से ली गई है क्या ? उन्होंने कहा कि जी हाँ, इन्सेप्शन भी हमारा आईडिया है। सुभद्रा के गर्भ में जब अभिमन्यु था तो अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की रणनीति बताया था। अभिमन्यु ने छह चक्र भेदने की पूरी कहानी गर्भ में सुन ली। जब चक्रव्यूह भेदने का वक़्त आया तो अभिमन्यु अपने सपने में जाकर अर्जुन की बात को याद किया। इन्सेप्शन फिल्म का आइडिया हमारे धर्मग्रंथों में पहले से है। फिल्म शोले की कॉपी कुछ लोग मैगनीफिसेन्ट सेवेन और सेवेन समुराई से मानते हैं जबकि राक्षसों से परेशान होकर विश्वामित्र राजा दशरथ के यहाँ जाते हैं कि मुझे आपके राम लक्ष्मण चाहिए । राक्षसों का विनाश करना है। दशरथ से सेना नहीं मांगे जैसाकि ठाकुर बलदेव सिंह ने गब्बर को खत्म करने के लिए अपनी पुलिस डिपार्टमेंट से पुलिस का दस्ता नहीं मांगा, बल्कि जय और वीरू को चुना ।

आज़मगढ़ फिल्म फेस्टिवल स्थल शारदा टॉकीज महज एक हॉल नहीं, बल्कि एक प्रतीक है। ऊपरी सड़क से शारदा टॉकीज के लिए सीढ़ियां उतरना दर्शकों के लिए एक अंतर्यात्रा का अनुभव है जहाँ समाज को और बेहतर और खूबसूरत बनाने के सपने देखने और उसे पूरा करने का संकल्प दोहराए जाते हैं।

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