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Women Help Desk Reality : सिर्फ उन पुलिस स्टेशनों में घरेलू हिंसा के अधिकतर मामले दर्ज, जहां महिला हेल्प डेस्क संचालित कर रहीं महिलायें
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Women Help Desk Reality : सिर्फ उन पुलिस स्टेशनों में घरेलू हिंसा के अधिकतर मामले दर्ज, जहां महिला हेल्प डेस्क संचालित कर रहीं महिलायें
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
स्थानीय पुलिस स्टेशन में महिला हेल्प डेस्क (Women Help Desk) स्थापित करने पर घरेलू हिंसा की शिकार महिलायें आसानी से शिकायत दर्ज करा लेती हैं, और यदि यह हेल्प देश महिला पुलिसकर्मियों द्वारा संचालित किया जाता है तब ऐसी दर्ज शिकायतों की संख्या बढ़ जाती है| यह एक नए प्रकाशित अध्ययन का निष्कर्ष है और इस अध्ययन को मध्य प्रदेश के 180 पुलिस स्टेशन में वर्ष 2018 से 2020 के बीच किया गया था| इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जिनिया के समाजशास्त्री संदीप सुख्तान्कुर (Sandip Sukhtankur) की अगुवाई में किया गया था और इस अध्ययन के लिए आर्थिक सहायता अब्दुल लतीफ़ जमील पावर्टी एक्शन लैब (J-PAL), वर्ल्ड बैंक, यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जिनिया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड ने किया था| इस अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जिनिया की गब्रिएल्ले क्रुक्स विस्नेर (Gabrielle Kruks Wisner) और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के अक्षय मोंगिया (Akshay Mongia) भी शामिल थे| इस अध्ययन को वैज्ञानिक जर्नल साइंस (Science) के 8 जुलाई 2022 के अंक में प्रकाशित किया गया है|
इस अध्ययन के लिए मध्य प्रदेश पुलिस का सहयोग भी लिए गया था, जिसने वर्ष 2017 से पुलिस स्टेशनों में महिला सहायता डेस्क को स्थापित करने का काम शुरू किया था और अब इस राज्य के 700 से अधिक पुलिस स्टेशनों में इसे स्थापित किया जा चुका है| वर्ष 2018 के अंत में, जब इस अध्ययन को शुरू किया गया था, तब लगभग 180 पुलिस स्टेशनों में ऐसे डेस्क थे| इन डेस्क में से कुछ केवल महिलाओं द्वारा चलाये जाते थे, जबकि शेष डेस्क पुरुष और महिला पुलिस द्वारा चलाये जाते थे| इन 180 पुलिस स्टेशन के अंतर्गत लगभग 2.3 करोड़ आबादी है| महिला सहायता डेस्क एक ऐसी व्यवस्था है जहां पर महिलायें आसानी से और गोपनीय तरीके से अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं| इस अध्ययन के लिए पुलिस स्टेशनों को तीन वर्गों में बांटा गया – पहला वर्ग जहां सहायता डेस्क नहीं स्थापित थे, दूसरा वर्ग जहां सहायता डेस्क केवल महिला पुलिसकर्मी संभालती थी, और तीसरा वर्ग ऐसा था जहां हेल्प डेस्क को पुरुष पुलिसकर्मी भी संभालते थे|
पूरे अध्ययन के दौरान जहां महिला सहायता डेस्क स्थापित थे, उन पुलिस स्टेशनों पर घरेलू हिंसा के 1905 अधिक मामले दर्ज किये गए, जिन पर सिविल कोर्ट में मामले आगे बढाए जा सकते थे, जबकि घरेलू हिंसा से सम्बंधित 3360 अधिक FIR दर्ज की गई| अध्ययन से यह भी खुलासा हुआ कि ऐसी सभी FIR केवल उन पुलिस स्टेशनों में दर्ज की गयी जहां पर महिला सहायता डेस्क को केवल महिला पुलिस कर्मी संचालित करती थीं| अध्ययन के नतीजे स्पष्ट हैं कि स्थानीय पुलिस स्टेशनों में महिला सहायता डेस्क स्थापित करने पर पीड़ित महिलायें यहाँ शिकायत करने पहुँचती हैं और ऐसे डेस्क कारगर तभी होते हैं जब इन्हें केवल महिलायें संचालित करती हैं|
अध्ययन के अनुसार इसके निष्कर्षों से हम बहुत खुश नहीं हो सकते हैं और ना ही लैंगिक समानता से जोड़ सकते हैं क्योंकि न्यायिक समानता की दिशा में यह केवल पहला कदम है| सहायता डेस्क को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि इनका संचालन केवल महिलायें करें और जिन्हें इससे सम्बंधित पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए| ऐसे प्रशिक्षण के लिए केवल पुलिस के उच्च अधिकारी ही ना देते हों बल्कि समाज विज्ञान, लैंगिक समानता और मनोविज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ भी हों| ऐसे डेस्क स्थापित कर दर्ज शिकायतों की संख्या तो बढ़ जाती है, पर पीड़ित महिलाओं को लम्बी कानूनी प्रक्रिया में कोई मदद नहीं मिलती| इस दिशा में भी महिलाओं को पर्याप्त मदद की जरूरत है, तभी हम लैंगिक समानता की तरफ आगे बढ़ सकते हैं|
हमारे देश के लिए ऐसे अध्ययन बहुत आवश्यक हैं क्योंकि सरकार के तमाम दावों के बाद भी लैंगिक समानता में हम सबसे पिछड़े देशों में शामिल हैं| वर्ष 2018 में एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश था| लैंगिक समानता के वैश्विक इंडेक्स में हमारा स्थान कुल 156 देशों में 140वां है| हमारे देश में घरेलू हिंसा की दर विश्व में सबसे अधिक है| एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें अपने पूरे जीवन में कभी ना कभी घरेलू हिंसा का सामना करती हैं|
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