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हाशिये का समाज

Ground Report: सरकारी योजनाओं से वंचित उत्तराखंड का धारी जोशी गांव, दलितों के साथ घोर जातिगत भेदभाव

Janjwar Desk
8 Oct 2021 4:56 PM IST
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दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर भी पाबंदी है, इतना ही नहीं जब कोई दलित व्यक्ति मंदिर में पूजा करने जाता है तो उससे पूजा का सामान लेकर पुजारी या सवर्ण वर्ग का कोई व्यक्ति मंदिर में चढ़ाता है, दलितों को भगवान की प्रतिमा के आसपास भी नहीं फटकने दिया जाता...

किशोर कुमार की रिपोर्ट

Dalit live matter, जनज्वार। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) देश की जनता को बुलेट ट्रेन और डिजिटल इंडिया (digital India) के सपने दिखाते है, लेकिन देश के आजाद होने के 75 साल बाद भी भारत में ऐसे कई गांव और कस्बे है जहां लोग तथाकथित विकास और मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं। बीजेपी शासित उत्तराखंड (Uttarakhand) राज्य के पिथौरागढ़ जिले के पिथौरागढ़ तहसील अंतर्गत धारी जोशी गांव में भी लोग सड़क, पक्के मकान, शौचालय और पानी जैसे जरूरी सुविधाओं के लाभ से वंचित हैं, इनमें से भी दलितों की हालत बद से बदतर है। गौरतलब है पिथौरागढ़ वर्तमान भाजपा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धाम का गृह जनपद भी है।

पिथौरागढ तहसील स्थित धारी जोशी गांव में करीब 40 परिवार (2011 जनगणना के अनुसार) रहता हैं। 161 लोगों की जनसंख्या वाले इस गांव की करीब 40.99 फीसदी आबादी दलितों की है, मगर आजादी के दशकों बीत जाने बाद भी इस गांव के दलित और पिछड़े समुदाय के लोग छूआछूत और भेदभाव के शिकार होते आ रहे हैं। समस्त सरकारी योजनाओं से वंचित धारी जोशी गांव के लोग बदहाली की जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।

यहां पक्के छत की मकान, साफ पीने का पानी और शौचालय केवल सपने जैसा है। वर्षों पुराने घरों की ढहती दीवारें इस बात का गवाह हैं कि विकास के नाम पर धारी जोशी के दलित वर्ग के परिवारों को दिलासे के सिवाय कुछ और हासिल नहीं हुआ। 2019 में प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि भारत के 90 फीसदी घरों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण कराया गया, लेकिन, धारी जोशी गांव के लोग इस वात से इत्तेफाक नहीं रखते।

प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ हर घर को के दावे के बावजूद धारी जोशी गांव में दलितों के घरों की छतें और दीवार ढहने को कगार पर हैं। सालों पुराने घर किसी भी वक्त बड़ी दुर्घटना को कारण बन सकते हैं। जंगल के बीचोंबीच बसे इस गांव को लोगों में जानवरों की दहशत भी हमेशा बनी रहती है, लेकिन जिन दलित परिवारों के लोगों के पास खाने को दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से होता है, ऐसे में उनके लिए पक्की छत एक सपने जैसा है।

उत्तराखण्ड सरकार की तरफ से गरीबों को पक्के घर बनाने के लिए कई योजनाएं भी शुरु की जा रही हैं, लेकिन उन योजनाओं का धरातल से कोई वास्ता नहीं है। धारी जोशी गांव में रहने वाले दलित समुदाय के लगभग सभी घरों का यही हश्र है।

इन ढहते घरों में रहने वाले लोगों में से एक भुवन राम का अरोप है कि गांव में जिनके पास पहले से पक्के घर हैं, उन्हें सरकारी योजना के तहत घर का पैसा दे दिया गया। लेकिन जो पानी टपकते छत के नीचे रहने को मजबूर हैं, उनकी कोई सुध लेने वाला नहीं है। मजदूरी करके अपने परिवार को पालन पोषण करने वाले भुवन बताते हैं कि रात को सोते वक्त हमेशा छत गिरने का डर बना रहता है। बच्चों को किसी तरह सुला देते हैं, और खुद जागकर पहरेदारी करते हैं, ताकि कोई हादसा न हो जाए। बरसात में तो यहां के हालात और ज्यादा खराब होते हैं, जो किसी भी वक्त दुर्घटना को आमंत्रण देते प्रतीत होते हैं।

छत गिरने पर लाभ देने की दलील देते हैं पटवारी

पीड़ित लोगों का कहना है कि ढहते मकान की शिकायत कई बार की गई, लेकिन पटवारी का कहना है कि जब तक घर की छत नहीं गिर जाती तब तक योजना का लाभ नहीं मिल सकता। सरकारी योजना के नाम पर बजट न होने का हवाला देकर भी बात को टाल दिया जाता है। धारी जोशी गांव में रहने वाले लोगों के पास समस्याओं की पूरी लंबी लिस्ट है, पर उसे देखने और सुनने वाला कोई नहीं है। कच्चे मकानों में जिदंगी काट रहे लोगों का कहना है कि बारिश के मौसम में परेशानी दोगुनी हो जाती है।

गर्मी के मौसम में किसी तरह गुजारा कर लेते हैं, पर बारिश में घर की छत से पानी टपकता है। मूसलाधार बारिश के कारण दीवार भी ढहने लगती है, पर जब पटवारी सरकार के लोग निरीक्षण करने आते हैं तो कहते हैं कि छत गिरवा दो तो पैसे मिल जाएंगे। पीड़ित परिवार के लोगों का कहना है कि अगर छत भी गिरा देंगे तो रहेंगे कहां? ऐसे में मजबूरन वे खुद ही मकान की मरम्मत कर लेते हैं।

धारी जोशी गांव में रहने वाले दलित सिर्फ सरकारी योजनाओं से वंचित नहीं हैं, बल्कि सामान्य जाति द्वारा भेदभाव के भी शिकार हैं। दलित वर्ग के लोगों का कहना है कि उच्च वर्ग के नई पीढ़ी तो कोई भेदभाव नहीं करती, पर पुराने लोग आज भी दलित वर्ग के लोगों को हीन दृष्टि की भावना से ही देखते हैं। गांव में किसी भी समुदाय के यहां भोज भात में निमंत्रण का आदान प्रदान होता है। उच्च वर्ग के लोग जब निचले समुदाय के घर आते हैं तो उन्हें बेहद सम्मान दिया जाता हैं, लेकिन निचले जाति समुदाय के लोगों को उच्च वर्ग के यहां वो सम्मान नहीं मिलता। दलित और पिछड़ा लोगों के लिए अलग पंक्ति में बैठने की व्यवस्था की जाती है, जो बेहद अमानजनक लगता है।

अनुसूचित जाति (Dalit) को लोगों को आरोप है कि उच्च वर्गों द्वारा उनके घर के अलावा धार्मिक स्थलों पर जाने से भी रोक टोक की जाती है। दलित वर्ग को गांव के मंदिरों में प्रवेश करने पर पाबंदी है। इतना ही नहीं, जब निचली जाति का कोई व्यक्ति मंदिर में पूजा करने जाता है तो उससे पूजा का सामान लेकर उच्च वर्ग का कोई व्यक्ति भगवान को चढ़ाता है। दलित समुदाय के लोगों को भगवान की प्रतिमा के आसपास भी नहीं फटकने दिया जाता।

गौरतलब है कि हमारे देश में उच्च वर्ग द्वारा दलित और पिछड़े जाति के लोगों के साथ भेदभाव की कुप्रथा सालों से चली आ रही है। इसे रोकने के लिए देश में कई भेदभाव विरोधी कानूनों और समाज-सुधार अभियानों शुरू किए गए। बावजूद इसके वर्षों पुरानी भेदभाव की परंपरा आज भी देश के कुछ हिस्सों से खत्म नहीं हो पाई है। जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ भारतीय संविधान में कई कानून हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 जाति, धर्म, नस्ल, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर किसी से भी भेदभाव को वर्जित करता है। निचले जाति के लिए अनुच्छेद 16 में समान अवसरों की बात भी कही गई है। 1989 का SC-ST कानून भी जाति आधारित अत्याचारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करता है। इसके बावजूद भारत के समाज में जाति आधारित भेदभाव और प्रताड़ना अब भी एक कड़वा सच है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।

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