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आंदोलन

किसानों ने पत्रकारिता को एक समाज दिया है, पत्रकारिता उनकी कर्ज़दार रहेगी- रवीश कुमार

Janjwar Desk
17 Dec 2021 6:32 AM GMT
किसानों ने पत्रकारिता को एक समाज दिया है, पत्रकारिता उनकी कर्ज़दार रहेगी- रवीश कुमार
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(पत्रकारिता हमेशा किसानों की कर्जदार रहेगी-रवीश कुमार)

शुक्रिया सर्वेश ताई। आपके कैमरे में उतर आने का अपना ही सुख है। हर क्लिक में जो प्यार होता है वो फ्रेम में भी झलक जाता है। उस दिन आप मिल गईं तो मैं दर्ज हो गया...

Ravish Kumar: शुक्रिया सर्वेश ताई। आपके कैमरे में उतर आने का अपना ही सुख है। हर क्लिक में जो प्यार होता है वो फ्रेम में भी झलक जाता है। उस दिन आप मिल गईं तो मैं दर्ज हो गया।

किसान आंदोलन में नहीं जाना, अपने आप में एक कठिन अभ्यास से गुज़रना रहा। यह अभ्यास है अपने श्रेष्ठ सहयोगियों को रास्ता देना। ऐंकरिंग में मैं मैं की बीमारी कब लग जाती है, पता नहीं चलता। चैनलों की दुनिया में इस बीमारी को बढ़ावा दिया जाता है। हर मौके पर रिपोर्टर को हटा कर ऐंकर को भेजा जाने लगता है। यही वो बीमारी है जिसकी वजह से ऐंकर अच्छा होते हुए भी हल्का लगने लगता है क्योंकि रिपोर्टर का विकल्प बनने की कोशिश करता है या उसे बनाया जाता है। मैंने सायास इस बीमारी से ख़ुद को बचाया है। कितना सफल हुआ ये तो दूसरे तय करेंगे लेकिन इस बात को लेकर सचेत रहा हूं कि मैं मैं न हो जाए।

आंदोलन में जाकर कवर न करने के कई कारण रहे हैं। उसमें अभी विस्तार से नहीं जाना चाहूंगा, लेकिन एक कारण था कि मेरे सहयोगी रवीश और सौरव शानदार काम कर रहे थे। जब ये दोनों नहीं होते तो शरद और मुकेश उनकी जगह तैनात हो जाया करते थे। मुख्य रुप से रवीश रंजन और सौरव ने लगातार कवर किया और तमाम गतिविधियों पर पकड़ बनाए रखी। इनकी मेहनत के सहारे ही प्राइम टाइम के 60 से अधिक एपिसोड किसान आंदोलन पर कर सका।

इनके ज़रिए मैदान से किसानों की प्रतिक्रियाएं मिल रही थीं तो इसका लाभ उठाकर हम सभी रिसर्च में जुट गए। एक जगह की तुलना में चारों तरफ से आ रहे बयान, घटनाओं को समेटने लगे। नीतियों का अध्ययन करने लगे। वृंदा और सुशील महापात्रा ने एक एक सवाल पर न जाने कितने लोगों से बातें की होगी। बाद में शुभांगी और एस पटेल ने इस काम को आगे बढ़ाया, हर टेक्स्ट को हमने ग़ौर से पढ़ा और हर एपिसोड में एक नए वृतांत को लेकर आए। एक नाम और है राजीव का। राजीव कौन हैं ये राजीव को पता है।

कभी आप एक साथ उन 64-65 एपिसोड को देखिएगा तो पता चलेगा कि किसान आंदोलन को कवर करना इस छोटी सी टीम के लिए भी अपने आप में आंदोलन था। अनुराग द्वारी से लेकर और भी लोगों का योगदान रहा। मनोज ठाकुर, मोहम्मद मुर्सलिन, सुधीश राम ये सब कैमरे से मोर्चा संभाल रहे थे। इन नामों से आप यह जान रहे हैं कि कितने लोगों का पसीना लगता है। अभी तो हमने विपुल, कुलदीप, संजय, विश्वा और सुशील बहुगुणा के बारे में बात ही नहीं की। तो हज़रात टीवी का काम टीम का होता है। ज़रूर मैं हर दिन कई हज़ार शब्द टाइप कर रहा था लेकिन जितने नाम मैंने लिए हैं, वे लोग भी कई हज़ार लीटर पसीना बहा रहे थे।

अब आते हैं इन तस्वीरों पर। ये कई लोगों के काम के बदले खुद को दिया गया इनाम है। इसमें बेशक मैं दिख रहा हूं लेकिन उन सभी की खुशियों को जी रहा हूं। इसमें आप करोड़ों दर्शक भी शामिल हैं जिन्होंने हर एपिसोड को देखकर अपनी जवाबदेही निभाई।आप दर्शकों ने सनसनी की ख़बरों को छोड़ खेती किसानी की ख़बरें देखी हैं। इस बात के लिए हम आप दर्शकों को याद रखेंगे।

ये सारी तस्वीरें अंतिम दिन की है। फोटो पत्रकार सर्वेश भी यहां लगातार आती रही हैं। तभी तो मैं उनसे टकरा गया। सर्वेश ताई शानदार फोटोग्राफर हैं। जब मैंने रवीश रंजन से कहा कि क्या हम सुबह सुबह चल सकते हैं, जब बहुत कम लोग हों। तो रवीश छुट्टी के दिन भी आ गए और हम सुबह आठ बजे पहुंच गए। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से ज़्यादातर लोग लौट चुके थे। सौ पचास लोग ही होंगे। किसान भाई मेरा इंतज़ार करते रहे उनसे माफी। जिनसे भी मिला, सभी किसानों के बदले मिला। किसी के गले लगा तो लगा कि सारे किसानों के सीने से मेरा सीना टकरा रहा है और जुताई के बाद की मिट्टी की तरह भरभरा रहा है।

आप किसानों से बहुत उम्मीदे हैं। गांवों में लौट कर भारत को अहिंसक आंदोलन का रास्ता दिखाते रहिए। हिन्दू मुस्लिम का झगड़ा मिटाते रहिए, जाति के भेद मिटाते रहिए, बच्चों को नागरिक बनाते रहिए और सरकार को बताते रहिए कि लोकतंत्र क्या होता है। इस एक साल में जो भी सीखा है उसकी फसल मुर्झाने मत दीजिएगा। अपने खेतों में ऐसे ही मुखर आवाज़ की बीज बिखरा दीजिए ताकि भारत का लोकतंत्र किसी तानाशाह की मूर्खता के आगे कुचला न जाए। हुकूमत को याद रहे कि करोड़ों के पैसे से मीडिया खरीदा जा सकता है, विपक्ष खरीदा जा सकता है लेकिन भारत का किसान नहीं खरीदा जा सकता है। इस उम्मीद को कोई रौंद दे तो रौंद दे लेकिन इस उम्मीद को हम इतनी आसानी से छोड़ने वाले नहीं हैं।

आप किसानों ने कानून वापस नहीं कराया बल्कि पत्रकारिता को उसकी ज़मीन भी वापस कराई जिस पर गोदी मीडिया और सरकार का कब्ज़ा हो गया है।आप किसानों ने गोदी मीडिया को अलग कर दिया। गेहूं से घुन को अलग करते ही साफ हो गया कि आंदोलन में वही बचेगा जो पत्रकार होगा। पिछले सात साल में समाज के किसी तबके से पत्रकारिता को ऐसा समर्थन नहीं मिला होगा। किसानों ने पत्रकारिता को समाज दिया है। किसानों ने पत्रकारिता को खेत दिया है।

आप किसानों ने कितने ही पत्रकारों को खड़ा कर दिया। उनमें हौसला भर दिया कि तुम सवाल करो सरकार से, देश का किसान सवाल कर रहा है और सवाल करने वालों के साथ है। मैं इसके लिए भारत के किसानों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। सलाम करता हूं।हम फिर मिलेंगे आपके सवालों के साथ, आपके सवालों के खिलाफ। लेकिन हमेशा आपके रहेंगे।

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