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आंदोलन

प्राइवेटाइजेशन और लेबर कोड के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर उतरे हजारों मजदूर

Janjwar Desk
14 Nov 2022 11:59 AM IST
प्राइवेटाइजेशन और लेबर कोड के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर उतरे हजारों मजदूर
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भारी पुलिस बल के बीच रामलीला मैदान से बैरिकेट तोड़कर मज़दूर आक्रोश रैली निकली और मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड को वापस लेने, देश की सरकारी-सार्वजनिक उद्योगों-संपत्तियों को बेचने पर रोक लगाने आदि माँगों को उठाया...

अपनी आवाज़ सरकार तक पहुँचने के लिए रामलीला मैदान में कल 13 नवंबर को देशव्यापी प्रदर्शन व मज़दूर आक्रोश रैली में हजारों मज़दूरों ने भागीदारी की और राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत 13 नवंबर को राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में देश के कोने-कोने से आए हजारों मज़दूरों पहुंचे थे।

भारी पुलिस बल के बीच रामलीला मैदान से बैरिकेट तोड़कर मज़दूर आक्रोश रैली निकली और मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड को वापस लेने, देश की सरकारी-सार्वजनिक उद्योगों-संपत्तियों को बेचने पर रोक लगाने आदि माँगों को उठाया।

पुलिस ने दो बार लगाई बैरिकेट, पर नहीं रुक मज़दूरों का कारवां

सभा के बाद जैसे ही रैली निकली रामलीला मैदान के मुख्य गेट पर पुलिस ने बैरिकेट लगाकर रोक दिया, जहाँ पुलिस को मज़दूरों के भारी आक्रोश का सामान्य करना पड़ा। मज़दूरों द्वारा बैरिकेट को लगातार धक्के के बाद पुलिस को पीछे हटाना पड़ा।

इसके बाद राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़ रही रैली जब ज़ाकिर हुसैन कॉलेज पहुंची तो पुलिस ने फिर से बैरिकेट लगाकर रोक दिया, जिससे भारी प्रतिवाद हुआ। हजारों मज़दूर नारे लगाते, नगाड़े, ढोल और डफाली बजाते, गीत गाते हुए सड़क पर ही बैठ गए। उधर वाहनों की लंबी कतार से जाम भी लग गया।

इस बीच लगातार रस्साकसी के बीच पुलिस प्रशासन ने अंततः परिवर्तित रास्ते से रैली की अनुमति दी, साथ ही वह मासा के एक प्रतिनिधि मण्डल को देश के राष्ट्रपति को ज्ञापन देने रायसीना हिल्स, राष्ट्रपति भवन ले गया। इस प्रतिनिधि मण्डल में कॉमरेड एस बी राव, कॉमरेड सुषमा, कॉमरेड कन्हाई बर्नवाल, कॉमरेड सोमनाथ व कॉमरेड मुकुल शामिल थे।


उधर रैली परिवर्तित मार्ग से निकालकर मज़दूर लंबा चक्कर लगाकर वापस ज़ाकिर हुसैन कॉलेज पहुंचे, जहाँ भारी पुलिस बल और बैरिकेटिंग के बीच मुख्य मार्ग पर पुनः जोशीले अंदाज में बैठ गए। इस बीच प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति को 6 सूत्रीय माँगों का ज्ञापन देकर वापस लौटा और प्रदर्शनकारी मज़दूरों को संबोधित कर रैली और प्रतिरोध कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की, तब मज़दूर सड़क से उठे और वापस लौटे।

आक्रोश रैली में देश के कोने-कोने से पहुंचे थे मज़दूर

प्रदर्शन व 'मज़दूर आक्रोश रैली' का आह्वान देश के 16 संग्रामी मज़दूर संगठनों के साझा मंच मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने किया था। रैली में दिल्ली एनसीआर के साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, बिहार, बंगाल, असम, हिमाचल, छत्तीसगढ़ से लेकर कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात आदि 18 राज्यों से करीब 8 हजार मज़दूर, छात्र व मज़दूर पक्षधर लोग पहुंचे थे। कार्यक्रम में भारी पैमाने पर महिलाओं ने भागीदारी की।

लेबर कोड-निजीकरण के खिलाफ़ आवाज़ हुई बुलंद

शुरुआत में रामलीला मैदान में हुई सभा को विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। मोदी सरकार द्वारा थोपे जा रहे नए लेबर कोड्स को मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाला बताया। सरकार के देश बेचो अभियान पर हल्ला बोला। भयावह स्थितियों में जी रहे संगठित व असंगठित मज़दूरों, मानरेगा व खेतिहर मज़दूरों, घरेलू कामगारों, स्वीजी, जोमैटो, ओला-उबर जैसे गिग व प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आईटी-आइटीएस वर्कर आदि के बुनियादी अधिकारों और महँगाई-बेरोजगारी, छँटनी-बंदी पर लगाम लगाने आदि माँगें उठीं।

वक्ताओं ने मज़दूरों के हालत और संघर्षों की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान कानूनों के मौजूद रहते मज़दूरों के हालात बेहद खराब बन गए हैं। कोरोना-पाबंदियों के दौर में सारा कहर मज़दूरों ने झेला। साफ है कि नए कानून मज़दूरों के शोषण के लिए मालिकों को खुली छूट देंगे। ऐसे में मज़दूरों की व्यापक गोलबंदी के साथ बड़ी लड़ाई में जुटाना होगा। यह नव उदारवादी नीतियों और फासीवाद के खिलाफ लड़ाई है।

लड़ाई सिर्फ श्रम क़ानूनों तक नहीं है

वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान संघर्ष केवल श्रम कानून तक ही नहीं, नया समाज बनाने का भी है। श्रम कोड के ख़िलाफ़ संघर्ष को राजनीतिक आंदोलन के तहत लड़ना होगा। मज़दूर वर्ग पर व्यापक असर डालने वाली विचारहीनता के खिलाफ वैचारिक काम को रचनात्मक ढंग से पूर्ण करना और मज़दूरों को वर्ग के रूप में संगठित करना होगा। भाजपा-आरएसएस ने धर्म-जाति-राष्ट्र का घातक माहौल बनाकर मज़दूर अधिकारों पर हमले तेज किए हैं। ऐसे में फासीवादी और नवउदारवादी कॉरपोरेट पूँजी के संयुक्त हमले के खिलाफ व्यापक संग्रामी एकता बनाना होगा।

निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष का आह्वान

केंद्र की मोदी सरकार सहित तमाम राज्य सरकारों द्वारा मज़दूर वर्ग पर बड़े हमले के खिलाफ कुछ एक सालाना हड़तालों और प्रदर्शनों की रस्मी कवायद से बाहर निकलकर मज़दूर आंदोलन को निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की दिशा में बढ़ाने का आह्वान हुआ।

प्रदर्शन के दौरान मज़दूर विरोधी चारों श्रम संहिताएं रद्द करके मज़दूर हित में श्रम कानूनों में संशोधन करने, सार्वजनिक व सरकारी कंपनियों-संपत्तियों पर रोक लगाने व बुनियादी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने, महँगाई पर रोक लगाने; ठेका प्रथा, नीम ट्रेनी-फिक्स टर्म जैसे धोखाधड़ी वाले रोजगार को समाप्तकर सबको स्थायी रोजगार देने, छँटनी-बंदी पर क़ानूनन रोक लगाने, सभी श्रेणी के मज़दूरों को यूनियन बनाने, आंदोलन करने आदि अधिकारों को बहाल करने; मज़दूर आंदोलनों व जनवादी शक्तियों का दमन बंद करने, एक हजार रुपये न्यूनतम दैनिक मज़दूरी और सभी बेरोजगारों को रुपए पंद्रह हजार मासिक भत्ता देने, नीम ट्रेनी, स्कीम, गिग, प्लेटफ़ॉर्म, घरेलू आदि समस्त मज़दूरों को कामगार का दर्ज देने, कार्यस्थल व सामाजिक सुरक्षा मजबूत करने, समान काम पर समान वेतन देने, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य व खाद्य सुरक्षा मजबूत करने और जाति-धर्म, लिंग आधारित भेदभाव व नफरत की राजनीति बंद करने आदि की मांग बुलंद हुई।

इस दौरान विरदारना संगठन आइएफटीयू व मज़दूर अधिकार संगठन के साथी, मारुति सुजुकी मज़दूर संघ और मारुति के बर्खास्त व संघर्षरत मज़दूर, आंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर यूनियन हरियाणा, मनरेगा एवं सर्व कामगार यूनियन हिमाचल, पंजाब से स्टील एण्ड मोल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने भी भागीदारी की।

इस दौरान विभिन्न संगठनों की सांस्कृतिक टोलियों ने क्रांतिकारी गीत और नृत्य प्रस्तुत कर सभा व रैली में जोश भरा। संचालन कॉमरेड अमिताभ भट्टाचार्य, कॉमरेड सुषमा व कॉमरेड श्यामबीर ने की।


चला व्यापक प्रचार अभियान

गौरतलब है कि कि दिल्ली रैली मुहिम के तहत कोलकाता, हैदराबाद व दिल्ली में तीन कन्वेन्शन हुए; देश के विभिन्न हिस्सों में मासा के घटक संगठनों द्वारा और संयुक्त रूप से फैक्ट्री गेटों, मज़दूर बस्तियों और खेतों-खदानों आदि में व्यापक प्रचार अभियान चलाया गया। इसी के साथ सोशल मीडिया पर भी लगातार प्रचार के साथ माहौल बनाने का काम काफी आवेग और ऊर्जा के साथ हुआ।

मासा द्वारा राष्ट्रपति को दिए गए ज्ञापन की माँग की गयी कि मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताएं तत्काल रद्द हों! श्रम कानूनों में मज़दूर-पक्षीय सुधार हो! बैंक, बीमा, कोयला, गैस-तेल, परिवहन, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्त सार्वजनिक क्षेत्र-उद्योगों-संपत्तियों का किसी भी तरह का निजीकरण बंद हो!

इसके अलावा बिना शर्त सभी श्रमिकों को यूनियन गठन व हड़ताल-प्रदर्शन का मौलिक व जनवादी अधिकार मिले! छंटनी-बंदी-ले ऑफ गैरकानूनी घोषित किया जाए। ठेका प्रथा ख़त्म हो! फिक्स्ड टर्म-नीम ट्रेनी आदि संविदा आधारित रोजगार बंदकिया जाए – सभी मज़दूरों के लिए 60 साल तक स्थायी नौकरी, पेंशन-मातृत्व अवकाश सहित सभी सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थल पर सुरक्षा की गारंटी हो! गिग-प्लेटफ़ॉर्म वर्कर, आशा-आंगनवाड़ी-मिड डे मिल आदि स्कीम वर्कर, आई टी, घरेलू कामगार आदि को 'कर्मकार' का दर्जा व समस्त अधिकार दिया जाए!

मासा ने मांग की है कि देश के सभी मज़दूरों के लिए दैनिक न्यूनतम मजदूरी ₹1000 (मासिक ₹26000) और बेरोजगारी भत्ता महीने में ₹15000 लागू करो! समस्त ग्रामीण मज़दूरों को पूरे साल कार्य की उपलब्धता की गारंटी हो! प्रवासी व ग्रामीण मज़दूर सहित सभी मज़दूरों के लिए कार्य स्थल से नजदीक पक्का आवास-पानी-शिक्षा-स्वास्थ्य-क्रेच की सुविधा और सार्वजनिक राशन सुविधा सुनिश्चित किया जाए!

घटक व सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधियों ने किया सम्बोधन

सभा को आइएफटीयू (सर्वहारा) से कॉमरेड कन्हाई बर्नवाल, जन संघर्ष मंच हरियाणा से कॉमरेड पाल सिंह, कर्नाटक श्रमिक शक्ति व एफटीयू से कॉमरेड बालन, ग्रामीण मज़दूर यूनियन (बिहार) से कॉमरेड भोला शंकर, एनडीएलएफ (स्टेट कोऑर्डिनेशन कमिटी) तमिलनाडु से कॉमरेड अमृता, मज़दूर सहयोग केंद्र से कॉमरेड मुकुल, इंकलाबी मज़दूर केंद्र पंजाब से कॉमरेड सुरिंदर, लाल झंडा मज़दूर यूनियन (समन्वय समिति) से कॉमरेड सोमेन्दु गांगोली, आइएफटीयू से कॉमरेड एस वेंकटेश्वर राव, इंकलाबी मज़दूर केंद्र से कॉमरेड खीमानन्द, आईसीटीयू से कॉमरेड शिव मंगल सिद्धांतकर, सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर तमिलनाडु से कॉमरेड श्रीराम, मज़दूर सहायता समिति से कॉमरेड विक्रम, ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल से कॉमरेड शिवाजी राव ने संबोधित किया। स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोआर्डिनेशन सेंटर (एसडब्लूसीसी, पश्चिम बंगाल) व टीयूसीआई से भी कॉमरेडों ने शिरकत की।

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