JIO के खिलाफ किसानों के गुस्से का लाभ Airtel और Vodafone Idea को मिल रहा है
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
देश में आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब ऐतिहासिक किसान आंदोलन में भाग लेने वाले लाखों किसान अपने मूल शत्रु के रूप में अंबानी-अडानी की पहचान कर सीधे तौर पर उनका विरोध कर रहे हैं। वे समझ गए हैं कि नए किसान कानून के पीछे यही दो कारपोरेट घराने हैं और मोदी सरकार तो इनके लिए महज कठपुतली की भूमिका निभा रही है। किसानों ने इन दोनों पूंजीपतियों के उत्पादों के बहिष्कार की रणनीति अपनाकर दोनों के मुनाफे पर प्रहार करना शुरू कर दिया है। स्वाभाविक रूप से इसका फायदा दूसरे पूंजीपतियों को मिलने लगा है। इसका उदाहरण दूरसंचार क्षेत्र में जियो बनाम एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के बीच शुरू हुई जंग को हम देख सकते हैं। लाखों लोगों ने जियो सिम पोर्ट करवा कर अब एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया की सेवा ले ली है।
पिछले डेढ़ महीने से दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में अब टेलिकॉम कंपनियां भी कूद गई हैं। केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानून, 2020 के विरोध में दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर किसान पिछले डेढ़ महीने से आंदोलन कर रहे हैं। विरोध कर रहे किसानों का मानना है कि सरकार बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए ये कृषि कानून लेकर आई है। आंदोलन कर रहे किसानों ने रिलायंस के सभी प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने का फैसला किया है। इसी क्रम में पिछले दिनों बॉयकाट रिलायंस जियो भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा है।
रिलायंस जियो के इस विरोध को देखते हुए कंपनी ने आरोप लगाया है कि उसकी प्रतिद्वंदी कंपनियां एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया उसके खिलाफ ये नकारात्मक अभियान चला रही है। जियो ने इन प्रतिद्वंदी कंपनियों पर आरोप लगाया है कि ये किसानों को उनके नंबर एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया में पोर्ट कराने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जियो के नंबर को अन्य ऑपरेटर में पोर्ट कराना भी जारी किसान आंदोलन को समर्थन होगा।
जियो ने इसके संबंध में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) एक पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई है। जियो ने एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग की है। जियो ने कहा है कि प्रतिद्वंदी कंपनियों के इस रवैये से उनके कर्मचारियों की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। जियो ने ये भी आरोप लगाए हैं कि इससे पहले भी एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने कई बार इस तरह की अनैतिक और प्रतिस्पर्धा रोधी मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) अभियान चलाया है। जियो का कहना है कि ये दोनों कंपनियां मौजूदा किसान आंदोलन का लाभ उठाना चाह रही है।
वहीं एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया ने जियो के इन आरोपों को 'आधारहीन' बताते हुए इन्हें खारिज किया है। भारती एयरटेल ने ट्राई को लिखे पत्र में इन आरोपों को आधारहीन बताया है। पत्र में कहा गया है, 'कुछ प्रतिद्वंद्वी आधारहीन आरोप लगाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। हमने हमेशा अपना कारोबार पारदर्शिता से किया है। हम जिसके लिए जाने जाते हैं, उस पर हमें गर्व है।' वोडाफोन-आइडिया के प्रवक्ता ने भी इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि कंपनी पूरी नैतिकता के साथ कारोबार करने में विश्वास करती है।
दरअसल, 2016 में रिलायंस जियो के भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में कदम रखने के बाद कई टेलिकॉम कंपनियां या तो बंद हो गई हैं या फिर अन्य कंपनियों में विलय हो गई है। जियो के लॉन्च होने के बाद से अन्य टेलिकॉम कंपनियों के यूजर्स की संख्या में गिरावट देखने को मिली है। अपनी सस्ती सर्विस देने की वजह से जियो के यूजर्स लगातार बढ़ रहे हैं, जिसका नुकसान अन्य टेलिकॉम कंपनियों को उठाना पड़ा है। 2016 से भारतीय टेलिकॉम सेक्टर में जारी इस प्रतिस्पर्धा से अब किसान आंदोलन भी अछूता नहीं रहा है।
साफ है कि कृषि आंदोलन ने मुकेश अंबानी के रिलायंस जियो की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दरअसल सोशल मीडिया पर किसानों द्वारा रिलायंस जियो का बॉयकॉट करते हुए तस्वीरें शेयर की गई थी। जिसके बाद बड़ी तादाद में आम जनता ने जियो के कनेक्शन बॉयकॉट करना शुरू कर दिया है। इससे रिलायंस ग्रुप तिलमिला गया है।
वोडाफोन-आईडिया और एयरटेल फायदे के लिए रिलायंस जियो को किसानों के खिलाफ बता रही है। खुद को किसान हितैषी के रूप में पेश कर रही हैं। रिलायंस जियो के साथ-साथ केंद्र सरकार के विरोध को भी इन कंपनियों द्वारा हवा दी जा रही है। किसानों ने सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध के साथ-साथ जियो के प्रोडक्ट्स को भी बायकाट करने का ऐलान कर दिया है। किसानों द्वारा उठाए गए इस कदम ने रिलायंस जियो को नुक्सान पहुंचाया है।
गौरतलब है कि किसान आंदोलन के चले अब देश की कई बड़ी कंपनियों के बीच टेलीकॉम वॉर शुरू हो गई है। किसानों की रोजी-रोटी छीनने वाले पूंजीपतियों की अपनी कंपनियों को नुकसान पहुंचा है तो उन्होंने दूसरी कंपनियों पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं।
पंजाब के अलग-अलग इलाकों से सोशल मीडिया पर जियो के मोबाइल टावरों के बिजली कनेक्शन काटने, डीजल जनरेटर हटाने और टावरों पर चढ़कर किसान आंदोलन के समर्थन में झंडे लगाने की तस्वीरें तेजी से वायरल हुईं। टावरों को नुकसान पहुंचाने वालों का दावा है कि केंद्र सरकार बड़े उद्योग घारानों के दबाव में नए कृषि कानून लागू कर रही है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि राज्य में आंदोलन के दौरान रिलायंस जियो के 1,600 से अधिक टावरों को नुकसान पहुंचाया गया है।
टावर को नुकसान पहुंचाने वालों का कहना है कि वे आंदोलन के समर्थन में हैं और इस तरह नए कानूनों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। हालांकि किसान संगठनों ने इस तरह के नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं का समर्थन नहीं किया है।
राज्य में अपने टावरों को निशाना बनाने को लेकर रिलायंस जियो इंफोकॉम गंभीर है और उसने पंजाब के मुख्यमंत्री और डीजीपी को पत्र लिखकर अज्ञात लोगों द्वारा "जियो के टावरों में तोड़फोड़ के मामले में दखल देने की मांग की है।" 27 दिसंबर को रिलायंस जियो के पंजाब सर्किल के प्रमुख तजिंदर पाल सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ऐसी घटनाओ को रोकने और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने का आग्रह किया था।