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राष्ट्रीय

दिल्ली की यमुना के पानी में एंटीबायोटिक्स | Antibiotics in River Yamuna at Delhi

Janjwar Desk
2 March 2022 1:12 PM GMT
दिल्ली की यमुना के पानी में एंटीबायोटिक्स | Antibiotics in River Yamuna at Delhi
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दिल्ली की यमुना के पानी में एंटीबायोटिक्स | Antibiotics in River Yamuna at Delhi

Antibiotics in River Yamuna at Delhi| दिल्ली की यमुना नदी के पानी के नमूनों में एंटीबायोटिक्स मिल रहे हैं| तमाम बैक्टीरिया-जनित रोगों या फिर संक्रमण के इलाज के लिए व्यापक पैमाने पर एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Antibiotics in River Yamuna at Delhi| दिल्ली की यमुना नदी के पानी के नमूनों में एंटीबायोटिक्स मिल रहे हैं| तमाम बैक्टीरिया-जनित रोगों या फिर संक्रमण के इलाज के लिए व्यापक पैमाने पर एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है, पर यही एंटीबायोटिक्स जब नदियों में मिलते हैं तब जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बन जाते हैं| 25 फरवरी को टौक्सिक्स लिंक (Toxics Link) नामक गैर-सरकारी संगठन ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, Menace of Antibiotic Pollution in Indian Rivers|

इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की यमुना (Yamuna at Delhi), लखनऊ की गोमती (Gomti at Lucknow), गोवा की जुआरी (Zuari at Goa) और चेन्नई की कूम (Cooum at Chennai) नदियों के पानी के नमूनों में एंटीबायोटिक्स की सांद्रता निर्धारित सीमा की तुलना में 2 से 5 गुना तक अधिक है| इस अध्ययन के लिए नदियों से लिए गए नमूनों में एंटीबायोटिक्स के तीन वर्गों – ओफ्लोक्सासिन , नोर्फ्लोक्सासिन और सल्फामेथोक्साज़ोल (Ofloxacin, Noorfloxacin & Silfamethoxazole) – का विश्लेषण किया गया था| इस अध्ययन के दौरान यमुना, गोमती और कूम नदी में ओफ्लोक्सासिन की उपस्थिति, जुआरी नदी में नोर्फ्लोक्सासिन की उपस्थिति और यमुना ने सल्फामेथोक्साज़ोल की उपस्थिति दर्ज की गयी|

यह कोई पहला अध्ययन नहीं है, जिससे दिल्ली की यमुना में एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी का पता चलता है| वर्ष 2015 के नवम्बर महीने में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स (AIIMS), ने एक अध्ययन को सार्वजनिक किया था| यह अध्ययन दिल्ली में यमुना के 6 जगहों से लिए गए नमूनों के विश्लेषण पर आधारित था| इस अध्ययन के अनुसार भी यमुना के पानी के सभी नमूनों में फ़्लुरोक़ुइनोलोन, मक्रोलाइड और पेनसिलिन (Fluoroquinoline, Macrolid & Penicillin) जैसे प्रचलित एंटीबायोटिक्स मिले थे| इस अध्ययन के अनुसार नदी तक एंटीबायोटिक्स मानव मल और इसमें मिलाने वाले नालों के माध्यम से पहुंचते हैं| ये सभी बायोएक्टिव रसायन के तौर पर जाने जाते हैं – इसमें एंटीबायोटिक्स, दवाएं और खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के नाम पर मिलाये जाने वाले प्रीजर्वेटीव्स – सम्मिलित हैं|

एम्स के अध्ययन के अनुसार दिल्ली में हरेक सप्ताह प्रति व्यक्ति औसतन 2 से 34 ग्राम तक बायोएक्टिव रसायन (Bioactive Compounds) उत्सर्जित होते हैं, यानि हरेक वर्ष दिल्ली के पर्यावरण में 450 टन बायोएक्टिव रसायन पहुंचता है, और इसका अधिकाँश हिस्सा नालों के गंदे पानी के साथ यमुना तक पहुँच जाता है| फिर भी आश्चर्य यह है कि सरकारी विभागों में इस रिपोर्ट की चर्चा भी नहीं की गयी, और ना ही यमुना में इसका कभी विस्तृत अध्ययन कराया गया| ऐसा नहीं है कि सरकार को इस रिपोर्ट की जानकारी नहीं है – दिसम्बर 2015 में लोकसभा में तत्कालीन केन्द्रीय सरकार के जलशक्ति राज्य मंत्री संवरलाल जाट ने इस रिपोर्ट की जानकारी दी थी|

इसके बाद अगस्त 2020 में आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दिल्ली की यमुना में खतरनाक मल्टीड्रग रेसिस्टेंट बैक्टीरिया (Multi-drug resistant bacteria) मौजूद हैं| इनमें से कुछ बैक्टीरिया ऐसे हैं जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे खतरनाक करार दिया है और दुनिया से अनुरोध किया है कि ऐसे बैक्टीरिया से निपटने के लिए प्राथमिकता के आधार पर नए एंटीबायोटिक्स की खोज में तेजी लायें| इस अध्ययन के लिए दिल्ली में यमुना में मिलने वाले 20 नालों और यमुना नदी के पानी के नमूनों का विश्केशन किया गया था| इस अध्ययन को जर्नल ऑफ़ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया था|

पिछले कुछ वर्षों से दुनियाभर के विशेषज्ञ एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उभरते खतरों से आगाह कर रहे हैं, और बहुत शोधपत्र भी प्रकाशित किये गए हैं| हाल में ही स्वास्थ्य विज्ञान के प्रतिष्ठित जर्नल, लैंसेट, में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में हरेक दिन लगभग 3500 मौतें, या पूरे वर्ष में 12.7 लाख मौतें एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हो गयी| इसके अतिरिक्त लगभग 50 लाख मौतों का अप्रत्यक्ष कारण ऐसे बैक्टीरिया थे| प्रत्यक्ष कारणों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया सीधे शरीर में कोई समस्या खडी करते हैं, जो लाइलाज हो जाता है| अप्रत्यक्ष कारणों में जब शरीर में बैक्टीरिया से पनपने वाली बीमारी होती है, तब सामान्य तौर जिस एंटीबायोटिक से इलाज किया जाता है, वह अप्रभावी रहता है और फिर मरीज मर जाता है| एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण मरने वालों की संख्या एचआईवी-एड्स या मलेरिया से प्रतिवर्ष मरने वालों की संख्या से बहुत अधिक है| वर्ष 2019 में एचआईवी-एड्स से मरने वालों की संख्या लगभग 9 लाख थी, जबकि मलेरिया से लगभग 6 लाख मौतें दर्ज की गईं थीं|

यह समस्या इतनी गंभीर है कि दुनिया को इससे पार पाने के लिए अभी से नीतियाँ बनानी पड़ेंगीं| एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के पनपने के कारण अब सामान्य बीमारियों के कारण भी पहले से अधिक मौतें होने लगी हैं, क्योंकि परम्परागत एंटीबायोटिक अब बैक्टीरिया पर असर नहीं कर रहे हैं| ऐसे बैक्टीरिया की चपेट में वहां की आबादी सबसे अधिक होती है, जहां एंटीबायोटिक दवाएं दवा की दूकानों पर बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के ही आसानी से खरीदी जा सकती हैं और लोग अपनी मर्जी से इसका उपयोग करते हैं| दूसरा बड़ा कारण है ऐसी दवाएं जब बेकार हो जाती हैं तब उन्हें सामान्य कचरे के साथ या ऐसे ही खुले में फेंक देना| अफ्रीकी देशों में प्रति एक लाख आबादी पर 24 मौतें ऐसे बैक्टीरिया के कारण होती हैं, दक्षिण एशिया के लिए यह संख्या 22 है जबकि अमीर देशों के लिए इतनी ही आबादी में 13 मौतें ऐसे बैक्टीरिया के कारण होती हैं| हमारे देश में इस समस्या पर चर्चा नहीं की जाती पर अनेक विशेषज्ञों के अनुसार यहाँ समस्या बहुत गंभीर है| दुनियाभर में एंटीबायोटिक्स का उपयोग बढ़ रहा है| मानव उपयोग के साथ-साथ पशु उद्योग और मुर्गी-पालन उद्योग में भी इसका भारी मात्रा में उपयोग किया जा रहा है| बेकार पड़े एंटीबायोटिक्स को सीधे कचरे में फेंक दिया जाता है| घरों के कचरे, एंटीबायोटिक्स उद्योग, घरेलू मल-जल, पशु और मुर्गी-पालन उद्योग के कचरे के साथ-साथ एंटीबायोटिक्स नदियों तक पहुँच रहे हैं| इस सदी के आरम्भ से ही इस समस्या की तरफ तमाम वैज्ञानिक इशारा करते रहे हैं और अब तो यह पूरी तरह साबित हो चुका है कि नदियों तक एंटीबायोटिक्स के पहुँचने के कारण बड़ी संख्या में बैक्टेरिया, वाइरस और कवक इसकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं और हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं|

दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र ने एंटीबायोटिक्स की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने को वर्तमान में स्वास्थ्य संबंधी सबसे बड़ी 10 समस्याओं में से एक मान रहा है| विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2018 के आकलन के अनुसार बैक्टीरिया या वाइरस पर एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने के कारण दुनिया में प्रतिवर्ष 7 लाख से अधिक मौतें हो रही हैं और वर्ष 2030 तक यह संख्या 10 लाख से अधिक हो जायेगी, और वर्ष 2050 तक लगभग 1 करोड़ मौतें प्रतिवर्ष इनके कारण होने लगेंगी| यदि लांसेट में प्रकाशित नए अध्ययन को देखें तो 10 लाख मौतों का आंकड़ा हम 2019 में ही पार कर चुके थे|

इन सबके बाद भी हमारी सरकारें और तमाम सरकारी संस्थान जिनकी जिम्मेदारी प्रदूषण से निपटने की है, इस समस्या पर आँखें बंद किये बैठे हैं| दूसरी तरफ ऐसी रिपोर्ट लगातार प्रकाशित हो रही हैं, जिनसे पता चलता है कि हमारे देश में यह समस्या गंभीर है| फरवरी 2022 में यूनाइटेड किंगडम के यॉर्क यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र प्रकाशित किया है| इसमें दुनिया के 104 देशों की 258 नदियों के पानी में दवाओं और एंटीबायोटिक्स के उपस्थिति की जांच की गयी है| इन नदियों में दिल्ली की यमुना भी सम्मिलित थी और दवाओं के सन्दर्भ में यह दुनिया की चौथी सबसे प्रदूषित नदी है|

जाहिर है, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया एक वैश्विक खतरा हैं, और यह समस्या लगातार विकराल होती जा रही है| फिर भी, भारत सरकार के लिए यह कोई ऐसा विषय नहीं है जिससे निपटने के लिए कोई कार्य योजना बनाई जाए|

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