Subramanyam Swami की याचिका के खिलाफ मैदान में उतरी CPI, कहा - संविधान से समाजवाद-धर्मनिरपेक्ष शब्द हटा तो धर्म के नाम पर वोट मांगने की मिल जाएगी छूट
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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ( Subramanyam Swami ) की ओर से सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) में एक याचिका दायर कर भारत के संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता ( secularisn ) और समाजवादी ( Socialism ) शब्द को हटाने की मांग की है। याचिका पर 23 सितंबर को सुनवाई होनी है। अब स्वामी की इस याचिका का विरोध शुरू हो गया है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ( CPI ) के सांसद बिनॉय विश्वम ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की मांग से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है। अपने आवेदन में भाकपा सांसद ने कहा है कि संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिकाएं राजनीतिक दलों को धर्म ( Religion ) के नाम पर वोट ( Vote ) मांगने के लिए सक्षम बनाती है।
भाकपा ( CPI ) राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य बिनॉय विश्वम ( Binoy Vishwam ) ने अपने आवेदन में कहा है कि यह 42वें संविधान संशोधन को समाप्त करने की साजिश है। स्वामी की याचिका मकसद एक राजनीतिक दल को धर्म के नाम पर वोट मांगने के लिए सक्षम बनाना है।
भाजपा सांसद की याचिका में क्या है
दरअसल, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ( Subramanyam Swami ) की याचिका में संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा संविधान की प्रस्तावना में पेश किए गए समाजवाद ( Socialism ) और धर्मनिरपेक्षता ( secularism ) शब्दों को हटाने के लिए अदालत से एक आदेश की मांग की गई है। इसके साथ याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के सब सेक्शन 5 को रद्द करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है। यानि स्वामी ने संविधान से उस प्रावधान को हटाने की मांग की है जिसमें राजनीतिक दल को समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति निष्ठा रखने की आवश्यकता की बात कही गई है।
बिनॉय विश्वम का दावा - स्वामी की याचिका संवैधानिक लोकाचार के खिलाफ
सुब्रमण्यम स्वामी ( Subramanyam Swami ) के इस पहल का विरोध करते हुए सीपीआई सांसद विश्वम ने अधिवक्ता श्रीराम परकट के जरिए शीर्ष अदालत के सामने पेश अपने आवेदन में कहा कि हर पार्टी चुनाव लड़ रही है और अपने सभी उम्मीदवारों के लिए एक समान चुनाव चिन्ह की मांग कर रही हैं। ऐसा आवेदन करते समय संघ या निकाय को दूसरों के बीच समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति अपनी आस्था और निष्ठा की पुष्टि करनी होती है। विश्वम ने अपने आवेदन में कहा है धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद संविधान की अंतर्निहित और बुनियादी विशेषताएं हैं। याचिकाकर्ता की मंशा धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को पीछे छोड़ते हुए भारतीय राजनीति पर एक स्वतंत्र शासन करना है। उन्होंने कोर्ट से राष्ट्र के संवैधानिक लोकाचार को फिर से लिखने की इस तरह की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग की।