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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जताया रोष, कहा रेप के मामलों में महिला पुलिस क्यों नहीं लेती पीड़िता का बयान

Janjwar Desk
15 Aug 2021 7:54 AM GMT
Allahabad High Court : दुष्कर्म के मामले में पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति से तय नहीं होता सजा का पैमाना
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दुष्कर्म के मामले में पीड़िता या आरोपी की सामाजिक स्थिति से तय नहीं होता सजा का पैमाना

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध की निष्पक्ष पारदर्शी विवेचना करना न केवल पुलिस बल्कि कोर्ट की भी जिम्मेदारी है, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, विवेचक को गलत उद्देश्य से विवेचना नहीं करनी चाहिए....

जनज्वार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि ज्यादातर रेप के मामलों में महिला पुलिस के द्वारा पीड़ितों के बयान दर्ज क्यों नहीं किए जाते हैं। कोर्ट ने रेप पीड़िता का बिना ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के दोबारा बयान लेने को कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करार दिया। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक को दो हफ्ते में सभी पुलिस अधीक्षकों को धारा 161 (3) की प्रक्रिया का पालन करने की गाइडलाइंस जारी करने का निर्देश दिया है।

दरअसल एक बार रेप पीड़िता का बयान दर्ज होने के बाद पुलिस विवेचक ने आरोपी की मिलीभगत से बिना ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के दोबारा बयान लिया। जिस पर कोर्ट ने पुलिस को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने गाइडलाइंस 2 सितंबर को पेश करने को कहा है। साथ ही कहा है कि दो महीने में इस आशय का सर्कुलर भी जारी किया जाए।

यह आदेश जस्टिस संजय कुमार सिंह ने फूलपुर प्रयागराज के बुल्ले की जमानत अर्जी पर दिया है। याची का कहना था कि केस की विवेचना ठीक से नहीं की गई ती। पीड़िता का दोबारा बयान लेकर सहर अभियुक्त को रेप के आरोप से पुलिस ने अलग कर दिया इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाए।

कोर्ट ने विवेचक को तलब किया तो उसने कहा कि दोबारा बयान लेने पर रोक नहीं है। विवेचक ने स्वीकार किया कि बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की गई। प्रक्रिया की खामियों पर बिना शर्त माफी मांगी। कोर्ट ने एसएसपी प्रयागराज को उचित कार्रवाई करने को कहा है।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध की निष्पक्ष पारदर्शी विवेचना करना न केवल पुलिस बल्कि कोर्ट की भी जिम्मेदारी है। कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। विवेचक को गलत उद्देश्य से विवेचना नहीं करनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष पारदर्शी विवेचना कराना आपराधिक न्याय व्यवस्था का जरूरी हिस्सा है। धारा 164 का बयान धारा 161 के दर्ज बयान पर हमेशा प्रभावी होता है। हाईकोर्ट की जिम्मेदारी है कि हर नागरिक के अधिकार सुरक्षित रहे।

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