ट्रोलर्स के दबाव में आईं कुलपति ने रजनी मुर्मू को भेजा छुट्टी पर, महिला प्रोफेसर ने कहा अब अदालत से लडूंगी न्याय की लड़ाई
(प्रोफेसर रजनी मुर्मू को जबरन लीव पर भेजा गया)
Rajni Murmu: देश के माहौल में हाल के कुछ सालों में संघी गिरोह ने नफरत और वैमनष्य का ऐसा जहर घोला है जिसका असर अब हर समुदाय की मानसिकता में झलकने लगा है। जिस आदिवासी समाज (Tribal Community) को उदारता और खुले विचारों के लिए जाना जाता रहा है वही समाज एक महिला आदिवासी प्रोफेसर के सटीक बयान के खिलाफ आक्रामक हो उठा है।
प्रोफेसर रजनी मुर्मू भी इन दिनों इसी तरह की नफरत का शिकार हो रही हैं। रजनी ने आदिवासी त्योहार सोहराय पर्व को लेकर भी आवाज उठाई थी। 7 जनवरी को उन्होने गोड्डा कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर प्रो.रजनी मुर्मू (Asstt Prof Rajni Murmu) ने एसपी कॉलेज में मनाए जाने वाले सोहराय को लेकर फेसबुक एक पोस्ट किया था जिसे लेकर खूब विवाद हुआ। प्रो.रजनी मुर्मू के पोस्ट से एसपी कॉलेज के आदिवासी (Adiwasi) छात्र-छात्राएं आक्रोशित हो गए है। छात्रों के लिखित बयान पर दुमका नगर थाना में आईटी एक्ट के तहत प्रो रजनी मुर्मू के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
आज फिर से रजनी मुर्मू ने एक पोस्ट शेयर की है जिसमें लिखा गया है कि, 'सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की आदिवासी कुलपति सोना झरिया मिंज, जिन्होंने सालों जेएनयू जैसे संस्थान में अध्यापन किया..जहाँ जेंडर जस्टिस के लिए शिक्षक से लेकर छात्र व छात्राएं जोरदार आवाज उठाते हैं.. ने मुझे आदिवासी महिलाओं के पक्ष में आवाज उठाने की सजा सुनाई है...जहाँ उपद्रवी छात्र विश्वविद्यालय केंपस में ही मेरा मौब लिंच कर रहे थे... उनके खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उन अपराधी छात्रों के साथ हो कर मेरा आर्थिक बहिष्कार( मौब लिंचिंग) में शामिल हो गई है....'
अपनी पोस्ट के साथ ही रजनी मुर्मू ने एक दस्तावेज भी शेयर किया है। इस दस्तावेज के मुताबिक प्रोफेसर रजनी को फोर्सली लीव पर भेज दिया गया है। यानी जबरिया तौर पर छुट्टी पर भेजा गया है। जनज्वार ने रजनी से बात की तो उन्होने कहा कि, इस देश में सच की हिमायत करने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। मीडिया से लेकर तमाम वर्ग में नफरत भरी जा रही है। जो इस नफरत के खिलाफ खड़ा होगा वह या तो तोड़ दिया जाएगा या मानसिक प्रताड़ना झेलेगा। यही अब के समय का यानी न्यू इंडिया का दस्तूर और चलन चल पड़ा है। साथ ही प्रोफेसर ने साथ देने की अपील भी की है। प्रोफेसर ने कहा है कि वह अब न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी।
प्रोफेसर कहती हैं, 'हम जिस समाज में रहते हैं उसका ट्रेंड यही है कि यदि उसकी खामियों और खास कर लड़कियों/औरतों की समस्याओं पर मुखर होकर बात की जाए तो लोग बोलने वाले मुँह पर कैसे भी एक टेप चढ़ा देना चाहते हैं। वह टेप कभी उसके सामाजिक बहिष्कार के रूप में तो कभी आर्थिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है। इसी कड़ी का नवीन उदाहरण है कॉलेज में छात्रों द्वारा मेरे निलंबन की माँग करना।
हर विक्टिम के पास वह मानसिक और आर्थिक सपोर्ट सिस्टम नहीं होता कि वह अपनी कहानी खुले तौर पर साझा कर सके। लड़कियों की बुली होने को लेकर, हाशियाकरण को लेकर, इतनी इनसिक्योरिटीज हैं कि उन पर अपने अनुभव साझा किए जाने का जबरन दबाव नहीं बनाया जा सकता। ऐसे में उनके आगे आने हेतु एक स्वस्थ स्पेस के निर्माण की बजाय छात्र-नेता यह कैसा संदेश देना चाह रहे हैं? क्या कोई पीड़िता विरोध और निरस्त करने के ऐसे माहौल में खुद को अभिव्यक्त करने में कभी सुरक्षित महसूस कर पाएगी?
बोलती महिला तक समाज को कभी भी अच्छी नहीं लगती। सवाल करती, जवाबदेही माँगती महिला पर अंकुश लगाना कोई विस्मय की बात नहीं है। मैंने बहुत सोच-समझ कर, दृढ़ संकल्प हो कर त्योहार के नाम पर होती अभद्रता के विषय में लिखने का फैसला लिया था। मुझे हल्का भान इस बात का भी था कि तादाद में लोग मेरी बात नहीं मानेंगे क्योंकि उत्पीड़क को क्लीन-चिट देने की आदत जो लग गई है। लेकिन यह याद रखा जाए कि प्रमाण की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का प्रमाण नहीं होता।
लोग कह रहे हैं मैं सोहराय जैसे पुनीत त्योहार की छवि खराब करने की कोशिश कर रही हूँ। जबकि मैं अपने समुदाय और उसके पर्वों की हितैषी के रूप में उसे और सुरक्षित व मजबूत बनाने की माँग कर रही हूँ। इस विषय में छात्र नेताओं का बात न करना और तिलमिला जाना यह बताता है कि वे अपने त्योहार का सम्मान नहीं करते और उसमें व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन नहीं चाहते। कोई भी व्यवस्था आदर्श नहीं होती और उसमें हमेशा बेहतरी की गुंजाइश होती है।
कई लोग मेरे पक्ष में भी लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, मुझे मेसेज कर रहे हैं। मुझे खुशी है कि मैंने उन्हें वह प्रेरणा और स्पेस प्रदान किया कि जहाँ से वे भी अपनी दुविधाओं के बारे में बात कर सकें। मुझे गाहे-बगाहे तनिक डर भी लगता है पर आपका साथ मुझे बल देता है। जो भी यह पोस्ट पढ़ रहे हों उनसे अपील है कि सच के लिए और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों। एक महिला की नौकरी छीनने की साजिश के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। दिनकर की पंक्ति के माध्यम से यही कहूँगी कि "जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध"। अब मेरी जीत और हार सिर्फ मेरी नहीं होगी।
त्योहार वाली पोस्ट पर क्या कहा?
गौरतलब है कि रजनी मुर्मू ने फेसबुक पर पहले टिप्पणी की थी, 'संताल परगना में संतालों का सबसे बड़ा पर्व सोहराय बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है... जिसमें हर गांव अपनी सुविधानुसार 5 से 15 जनवरी के बीच अपना दिन तय करते हैं... ये त्योहार लगातार 5 दिनों तक चलता है..... इस त्यौहार की सबसे बड़ी खासियत स्त्री और पुरूषों का सामुहिक नृत्य होता है.... इस नृत्य में गाँव के लगभग सभी लोग शामिल होते हैं.... मां बाप से साथ बच्चे मिलकर नाचते हैं...
पर जब से संताल शहरों में बसने लगे तो यहाँ भी लोगों ने एक दिवसीय सोहराय मनाना आरंभ किया...खासकर के सोहराय मनाने की जिम्मेदारी सरकारी कॉलेज में पढने वाले बच्चों ने उठाई... मैंने दो बार एसपी कॉलेज दुमका का सोहराय अटेंड किया है.... जहाँ मैं देख रही थी कि लड़के शालिनता से नृत्य करने के बजाय लड़कियों के सामने बत्तमीजी से ' सोगोय' करते हैं... सोगोय करते करते लड़कियों के इतने करीब आ जाते हैं कि लड़कियों के लिए नाचना बहुत मुश्किल हो जाता है.. सुनने को तो ये भी आता है कि अंधेरा हो जाने के बाद सिनियर लड़के कॉलेज में नयी आई लड़कियों को झाड़ियों की तरफ जबरजस्ती खींच कर ले जाते हैं... और आयोजक मंडल इन सब बातों को नजरअंदाज कर चलते हैं...'