JNU VC Santishree Dhulipudi Pandit का बड़ा खुलासा, जानें, ट्विटर विवाद को क्यों बताया खुद के खिलाफ साजिश?

JNU की नई कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी गोडसे भक्त निकलीं।
JNU VC Santishree Dhulipudi Pandit : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के एक दिन बाद से शांतिश्री धूलिपुडी पंडित सोशल मीडिया में सुर्खियों में हैं। इसके पीछे मुख्य वजह उनके ट्विटर हैंडल पर तरह-तरह के विवादित पोस्ट हैं, लेकिन इसको लेकर उन्होंने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने तथाकथित असत्यापित ट्विटर हैंडल (@SantishreeD) से ट्वीट को लेकर जारी विवाद को खाजिर करते हुए कहा कि उनका ट्विटर अकाउंट "कभी नहीं" था। ट्विटर विवाद से उनका कोई लेना देना नहीं है। मुझे जानकारी मिली है कि जेएनयू के कुछ लोगों ने ऐसा किया है। मेरे खिलाफ यह एक साजिश है।
कुछ लोगों को हजम नहीं हो रहा, मैं JNU की VC कैसे बन गई?
जामिया मिलिया इस्लामिया और सेंट स्टीफंस कॉलेज को "सांप्रदायिक परिसर" कहने, भारतीय ईसाइयों के लिए गालियों का इस्तेमाल करने और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को "मानसिक रूप से बीमार जिहादी" कहने वाले जिस पुराने टिृवट को लेकर उन पर तरह तरह के आरोप लगाए गए वो ट्विटर हैंडल उनके नहीं हैं। उक्त हैंडल को सोमवार को हंगामे के बाद हटा दिया है।
द इंडियन एक्सप्रेस से मंगलवार को बातचीत में शांतिश्री धूलिपुडी पंडित ने कहा कि मेरे पास ट्विटर अकाउंट नहीं था... यह पता चला है कि इसे हैक कर लिया गया है। जेएनयू से किसी ने आंतरिक रूप से ऐसा किया है। मुद्दा यह है कि बहुत से लोग इस बात से नाखुश हैं कि मैं पहली महिला वी-सी हूं। उसने कहा कि उसे जेएनयू के लोगों की कथित संलिप्तता के बारे में विश्वसनीय स्रोतों से पता चला था।
ट्विटर हैंडल जिसमें जामिया मिलिया इस्लामिया और सेंट स्टीफंस कॉलेज को "सांप्रदायिक परिसर" कहने, भारतीय ईसाइयों के लिए गालियों का इस्तेमाल करने और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को "मानसिक रूप से बीमार जिहादी" के रूप में जिक्र है उसे सोमवार को हंगामे के बाद हटा दिया गया था।
वामपंथियों ने किसी महिला को अभी तक VC क्यों नहीं बनाया
यह पूछे जाने पर कि क्या वह वीसी के रूप में अपनी नियुक्ति का जिक्र कर रही हैं, उन्होंने कहा कि "हां, मैं हाशिए के तबके की और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की महिला हूं। इतने सालों में वामपंथियों ने ऐसा क्यों नहीं किया? वे लोग सत्तर साल वे सत्ता में थे। यह उनका अड्डा (हब ) है।
पूछा - चोल, मराठा, विजयनगर साम्राज्य, चेर, पांड्य का इतिहास कहा हैं?
उन्होंने आरोप लगाया है कि उन पर हमला किया जा रहा था क्योंकि उन्होंने अपने शोध में "भारतीय परिप्रेक्ष्य" पर ध्यान केंद्रित किया था। "चोल, मराठा, विजयनगर साम्राज्य, चेर, पांड्य - का इतिहास में क्यों नहीं? इतिहास में कितना प्रतिशत लिखा है? इतिहास को आप देखिए, पूरा इतिहास एजेंडा सेटिंग है। मैं इसके लिए उन्हें दोष नहीं देता। मैं इसमें नहीं जाना चाहता। तो अगर वे एक एजेंडा तय कर सकते हैं, तो इतिहास को सुधारने में क्या गलत है? मैं एक दक्षिण भारतीय हूं, मुझे लगता है कि राजेंद्र चोल भारत के सबसे महान सम्राट हैं। उसने इंडो-पैसिफिक पर विजय प्राप्त की जिसमें चीनी शामिल थे। उसका जिक्र क्यों नहीं है? उन्होंने कहा कि अगर मैं इस तरह के सवाल पूछती हूं, तो मैं दुश्मन बन जाती हूं। ऐसा क्यों हैं?
क्या मेरे खिलाफ कहीं कोई FIR है
शिक्षा मंत्रालय को सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय की सतर्कता रिपोर्ट पर जिसमें कहा गया था कि पीआईओ ( भारतीय मूल के व्यक्ति ) छात्रों को प्रवेश देते समय नियमों का पालन नहीं करने का दोषी पाए जाने के बाद उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि मेरा पक्ष कहां है? कहानी? क्या मेरे खिलाफ एक भी एफआईआर है? मुझे दिखाओ कि आपके पास किस पुलिस स्टेशन में है (एक प्राथमिकी दर्ज)। पुणे विश्वविद्यालय ने पहचान की राजनीति की क्योंकि मैं एक गैर-महाराष्ट्रियन था जिसने प्रबंधन परिषद का चुनाव जीता था। फिर यह देखने की साजिश थी कि मुझे कोई पद न मिले। अगर वास्तव में कोई मामला था तो विश्वविद्यालय ने मेरे खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की? उन्होंने कहा कि ऐसा "परेशान" करने के लिए किया गया था, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वह वीसी बने। उन्होंने कहा कि मैंने प्रबंधन परिषद का चुनाव दक्षिणपंथ से जीता था और 2001 से मैं दक्षिणपंथ से अकेली थी।
अपनी प्रेस विज्ञप्ति में व्याकरण संबंधी त्रुटियों पर भाजपा सांसद वरुण गांधी की आलोचना पर पंडित ने कहा कि मैंने निर्देश दिया है कि आप कितना निगरानी कर सकते हैं? मेरे पास अभी भी एक टीम नहीं है। आज मैंने कार्यालय के कर्मचारियों से कहा कि यदि आप अंग्रेजी नहीं जानते हैं तो आपको मुझे बताना चाहिए था कि आप अंग्रेजी नहीं जानते हैं। लेकिन कोई नहीं कहता कि वे नहीं जानते हैं। मैंने आज खुद बैठकर इसे फिर से टाइप किया और फिर से लिखा और इसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया।
मैं, हमेशा से लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पक्षधर रही हूं
अपनी कार्यशैली के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह "लोकतांत्रिक प्रक्रिया" के पक्ष में हैं। मैं इस विश्वविद्यालय का छात्र हूं। यह मेरी मातृ संस्था है। यह मेरी मां की तरह है। आज मैं जो कुछ भी हूं, जेएनयू की वजह से हूं। क्या विभिन्न विचारधाराएं मौजूद नहीं हो सकतीं?











