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Marital Rape: मैरिटल रेप पर अब होगी सुप्रीम सुनवाई, हाई कोर्ट के जजों की अलग-अलग राय के बाद मामला पहुंचा है सर्वोच्च अदालत में

Janjwar Desk
9 Sept 2022 9:04 PM IST
Marital Rape: मैरिटल रेप पर अब होगी सुप्रीम सुनवाई, हाई कोर्ट के जजों की अलग-अलग राय के बाद मामला पहुंचा है सर्वोच्च अदालत में
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Marital Rape: मैरिटल रेप पर अब होगी सुप्रीम सुनवाई, हाई कोर्ट के जजों की अलग-अलग राय के बाद मामला पहुंचा है सर्वोच्च अदालत में

Marital Rape: पत्नी की सहमति के बिना उससे संबंध कायम करना अर्थात मैरिटल रेप के मुद्दे पर बीते लंबे समय से चली आ रही बहस देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गई। दिल्ली हाई कोर्ट में इसको लेकर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान पीठ के दोनो जजों की राय अलग-अलग होने के बाद यह मामला सुप्रीम सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय में आया है।

Marital Rape: पत्नी की सहमति के बिना उससे संबंध कायम करना अर्थात मैरिटल रेप के मुद्दे पर बीते लंबे समय से चली आ रही बहस देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गई। दिल्ली हाई कोर्ट में इसको लेकर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान पीठ के दोनो जजों की राय अलग-अलग होने के बाद यह मामला सुप्रीम सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय में आया है।

मालूम हो कि भारत में करोड़ों महिलाएं ऐसी हैं। जिन्हें आए दिन मैरिटल रेप झेलना पड़ता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS-5) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 24% महिलाओं को घरेलू हिंसा या यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। इन मामलों में विशेषज्ञों का मानना है कि मैरिटल रेप के अधिकतर मामले समाज या परिवार के डर से सामने ही नहीं आ पाते। इस सर्वे (2019-20) के मुताबिक पंजाब के 67% पुरुषों ने कहा कि पत्नी के साथ जबरन सेक्स करना पति का अधिकार है। यही नहीं यौन उत्पीड़न की शिकार शादीशुदा महिलाओं से जब पूछा गया कि पहला अपराधी कौन था तो 93% ने अपने पति का नाम लिया।

पत्नियों के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में बिहार (98.1%), जम्मू-कश्मीर (97.9%) , आंध्र प्रदेश (96.6%), मध्य प्रदेश (96.1%), उत्तर प्रदेश (95.9%) और हिमाचल प्रदेश (80.2%) के पति सबसे आगे निकले थे। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) का सर्वे बताता है कि देश में करीब 99% यौन उत्पीड़न के मामले दर्ज ही नहीं होते तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो बताता है कि भारत में हर दिन औसतन 88 रेप होते हैं। इनमें 94% रेप केस में अपराधी पीड़िता का परिचित होता है। महिलाओं के इस बुरे हालात पर समाज में आए दिन चर्चाएं और बहस होती रहती हैं। इन्हीं बहसों के बीच मैरिटल रेप, यानी पत्नी की सहमति के बिना उससे संबंध बनाने के मामले में महिलाओं के हितों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन के साथ दो और व्यक्तियों ने 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 का अपवाद 2 मैरिटल रेप को अपराध से मुक्त रखता है। यह कहता है कि पति का पत्नी के साथ संबंध बनाना रेप नहीं है। याचिका में इस आधार पर अपवाद को खत्म करने की मांग की गई थी कि यह उस तथ्य के साथ भेदभाव करता है, जिसमें विवाहित महिलाओं का उनके पति यौन शोषण करते हैं। लेकिन न्यायालय में दायर इस याचिका का निपटारा तो क्या ही होता, खुद न्यायाधीश इस मुद्दे पर एक राय न हो सके। दिल्ली हाईकोर्ट में 11 मई को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस शकधर ने इसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 व संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताते हुए पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर पति को सजा दिए जाने की बात कही थी। वहीं जस्टिस सी हरिशंकर की टिप्पणी थी कि मैरिटल रेप को किसी कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। इस महत्त्वपूर्ण मामले में जजों के अलग-अलग बयान आने के बाद बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं।

हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई में जजों के अलग-अलग बयान आने के बाद याचिकार्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकार्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और बी वी नागरत्ना की बेंच में सुनवाई के लिए याचिका दायर की। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को मैरिटल रेप पर दायर इस याचिका की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। जिसके बाद इस मामले की सुनवाई अब 16 सितंबर को होगी।

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