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Petrol ka Dam: एक साल में पेट्रोल के 78 बार और डीजल के 76 बार दाम बढ़े, लेकिन देश में नहीं है बड़ी बहस का मुद्दा

Janjwar Desk
25 July 2022 3:51 PM GMT
Petrol ka Dam: एक साल में पेट्रोल के 78 बार और डीजल का 76 बार दाम बढ़े, लेकिन देश में नहीं है बड़ी बहस का मुद्दा
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Petrol ka Dam: एक साल में पेट्रोल के 78 बार और डीजल का 76 बार दाम बढ़े, लेकिन देश में नहीं है बड़ी बहस का मुद्दा

Petrol ka Dam: एक वक्त था जब केंद्र की सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी विपक्ष का किरदार अदा किया करती थी. उस वक्त जब पेट्रोल, डीज़ल या फिर गैस की कीमतों में इज़ाफा हुआ करता था तो भाजपा के दिग्गज नेता सड़कों पर उतर आते थे...

Petrol ka Dam : एक वक्त था जब केंद्र की सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी विपक्ष का किरदार अदा किया करती थी. उस वक्त जब पेट्रोल, डीज़ल या फिर गैस की कीमतों में इज़ाफा हुआ करता था तो भाजपा के दिग्गज नेता सड़कों पर उतर आते थे. डिजिटल जमाने में वो सबूत आज भी जिंदा हैं. आपको सोशल मीडिया पर एक केंद्रीय मंत्री की तस्वीर कहीं ना कहीं दिख ही जाती होगी, जिसमें वो गैस सिलेंडर लेकर धरने पर बैठी हैं. वो मंत्री कोई नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल का जाना पहचाना चेहरा स्मृति ईरानी हैं. आज जब पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ते हैं तो उनकी वो तस्वीर वायरल हो ही जाती है.

ये सब आपको इसलिए बताया जा रहा क्योंकि हाल ही में आंकड़ा सामने आया है, जिसमें बताया गया है कि पिछले एक वर्ष में कितनी बार पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़े हैं. दरअसल आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद राघव चड्ढा ने सरकार से सवाल पूछा था कि पिछले वित्तीय वर्ष में कितनी बार पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में इज़ाफा हुआ है? सरकार की तरफ से आये जवाब में आंकड़े देखकर सभी को हैरानी हो रही है. क्योंकि पिछले एक वर्ष में पेट्रोल के दाम 78 तो डीजल के दाम 76 बार बढ़े हैं. वहीं अगर दाम कम होने की बात करें तो पेट्रोल के दाम सिर्फ 7 बार कम हुए जबकि डीजल के कीमतों में 10 बार कमी की गई है.

क्या बोले पेट्रोलियम मंत्री

राघव चड्ढा के ज़रिए पूछे गए सवालों के जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने लिखा," पेट्रोल की कीमतें 26 जून -2010 और 19 अक्टूबर 2014 से बाजार तय किया गया है. तभी से पब्लिक सेक्टर वाली ऑयल मार्केटिंग कंपनियां ही पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर मुनासिब फैसला लेती हैं. 16 जून 2017 से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने ही पेट्रोल-डीज़ल के खुदरा बिक्री मूल्य में हर रोज़ होने वाली तब्दीली को लागू किया है.

"आम आदमी की जेब पर डाका"

राघव चड्ढा ने अपने ट्विटर हैंडल से भी इसकी जानकारी दी है. इसके अलावा उन्होंने न्यूज एजेंसी ANI से बात करते हुए कहा,"एक वित्तीय वर्ष में भारत सरकार ने 78 बार पेट्रोल और 76 बार डीज़ल के दाम बढ़ाए हैं. इतनी बार ईंधन के दाम बढ़ाकर केवल एक साल में सरकार ने देश के आम आदमी की जेब पर डाका डाला है. आज से पहले कभी भारत के इतिहास में 70-78 बार पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाए गए." राघव चड्ढा ने इसको आम आदमी की जेब पर डाका करार दिया है.

6 साल में कमाए 16 लाख करोड़

इतना ही नहीं आफ सांसद ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार ने 6 वर्षों में यानी 2016 से लेकर साल 2022 के बीच ईंधन पर लगाए गए उत्पाद शुल्क से 16 लाख करोड़ रुपये कमाए हैं. लेकिन केंद्र सरकार मुद्रास्फीति के बारे में बात नहीं करना चाहती है. उन्होंने आगे बताया कि एक वर्ष में जितना पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में इज़ाफा हुआ है उसको लेकर आम आदमी के खरीदने वाली हर दूसरी चीज की कीमत पर सीधा फर्क पड़ता है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार आम आदमी के पैसे का इस्तेमाल बड़े उद्योगपतियों का कर्ज चुकाने के लिए करती है.

इस तरह तय होती हैं तेल की कीमतें

ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की रेट, एक्सचेंज रेट, टैक्स, ट्रांसपोर्टेशन को ध्यान में रखते हुए कीमतें तय करती हैं. हालांकि पहले यह काम सरकार का था लेकिन साल 2014 के बाद सरकार ने इस जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ लिया और जून 2014 के बाद ये काम तेल कंपनियों के हाथों में दे दिया गया. हालांकि सरकार चाहे तो पेट्रोल डीजल पर टैक्स कम करदे और कीमतों पर लगाम लगा दे लेकिन ऐसा करना सरकार के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. क्योंकि उसके राजस्व में भारी कमी आएगी.

कहीं ना कहीं गलती हमारी है?

अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में इतना इज़ाफा होना देश लिए यह कोई मुद्दा है या नहीं? हमारे खयाल से ये बहुत बड़ा मुद्दा है. लेकिन इन नेताओं के ज़रिए हम लोगों पर सिर्फ उनकी गंदी राजनीति थोपी जा रही है. इसके कहीं ना कहीं कुसूरवार हम ही हैं. क्योंकि हम उनके बहकावे में आते हैं. हम मज़हब के ना पर लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं. इतना ही नहीं हम लोग अपने देश की तुलना अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से करने लगते हैं. जो हिंदुस्तान से बराबरी करने की सोचना तो दूर फिलहाल खुद को भुखमरी से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है. हम इन सांप्रदायिक बातों में आकर अपने देश के बुनियादी मसलों को भूल जाते हैं, जिनसे हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी पर असर पड़ता है.

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