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राष्ट्रीय

18 घंटे वाले पीएम मोदी का काम रह गया है सिर्फ इंडिया पर कटाक्ष करना, वास्तविक समस्याओं से नहीं कोई वास्ता

Janjwar Desk
28 July 2023 8:19 AM GMT
18 घंटे वाले पीएम मोदी का काम रह गया है सिर्फ इंडिया पर कटाक्ष करना, वास्तविक समस्याओं से नहीं कोई वास्ता
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file photo

समस्या यह है कि अभी देश की जनता सो रही है, राम मंदिर में विकास देख रही है। यदि जनता की नींद जल्दी नहीं खुली, तो निश्चित तौर पर देश बर्बाद हो चुका होगा और हमारे प्रधानमंत्री जी विपक्ष को कोस रहे होंगे...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Our PM never touches any topic that is really relevant to our country. कुछ समय पहले देश और कुछ राज्यों की सरकारों को “आजादी” शब्द से नफरत थी। इसे नारे के तौर पर इस्तेमाल करने वालों को कम से कम उत्तर प्रदेश में पुलिस जेल में डाल देती थी। अब देश की सत्ता को देश के नाम, यानी इंडिया से ही चिढ हो गयी है।

नफरत का आलम यह है कि हमारे प्रधानमंत्री जी किसी विकास परियोजना का शिलान्यास करते हुए भी इंडिया पर भड़ास निकालते हैं, हवाई अड्डे के उद्घाटन के समय भी यही करते हैं, किसानों को सहायता राशि देते समय भी इंडिया पर कटाक्ष करते हैं। आजकल इंडिया पर कटाक्ष करना ही उनके 18 घंटे वाले पूरे दिन का काम रह गया है।

हमारे प्रधानमंत्री जी को लगता है कि दुनिया में श्रेष्ठ मनुष्य केवल वही हैं, शेष सभी उनसे कमतर हैं। जबकि सच यह है कि लगातार चुनावी मोड में रहने के बाद भी और राज्यों को तथाकथित सौगात देने के बाद भी उनके पास अपनी श्रेष्ठता बताने का एक भी मुद्दा नहीं होता। हरेक समय उनके भाषण और वक्तव्य महज विपक्ष को कोसने में ही सिमट जाते हैं। प्रधानमंत्री जी के नीचे तमाम मंत्रियों की फ़ौज है, जिनसे अपने मंत्रालय से सम्बंधित वक्तव्य देते शायद ही किसी ने सुना होगा। यदि कोई ऐसा मौक़ा आता भी है तब हरेक मंत्री यह बता देते हैं कि वे कुछ नहीं करते बल्कि महज प्रधानमंत्री जी के आदेशों का पालन करते हैं।

इन मंत्रियों का काम हमारे प्रधानमंत्री जी के तमाम गैर-जिम्मेदार वक्तव्यों को हास्यास्पद तरीके से आगे बढ़ाना है। पूरी दुनिया में महिला राजनीतिज्ञों को शालीनता के लिए जाना जाता है और कहा जाता है यदि महिलायें राजनीति में बड़ी संख्या में आयें तो दुनिया की बहुत समस्याएं आसानी से हल की जा सकती हैं। पर, हमारे देश में सत्ता से जुडी महिलायें ही देश की सबसे बड़ी समस्याएं बन चुकी हैं, जिनका काम बस विपक्ष को कोसना ही है। सत्ता से जुडी महिलायों ने हमेशा महिला उत्पीडन और महिलाओं पर अत्याचार के सन्दर्भ में या तो कुछ भी नहीं कहा है, या फिर प्रधानमंत्री के घिसे-पिटे वक्तव्यों को आगे बढाया है। हालत यह है कि देश की सत्ता में बैठी महिला सांसद मणिपुर में सामूहिक और नृशंस सामूहिक बलात्कार को भी यह कहते हुए जायज ठहरा रही हैं कि ऐसे मामले तो विपक्ष शासित राज्यों में भी देखे गए हैं।

विपक्षी दलों ने जब से गठबंधन की कवायद शुरू की है तबसे प्रधानमंत्री जी को देश की बस यही समस्या नजर आ रही है। कभी इसे भ्रष्टाचारियों का गठबंधन बता रहे हैं, कभी देश डुबोने वाला बता रहे हैं, कभी परिवारवाद बता रहे हैं तो कभी इसे दिशाहीन बता रहे हैं। प्रधानमंत्री जी विपक्ष को कोसना एक बात है, पर इतना तो तय है कि भ्रष्टाचारी दिशाहीन नहीं होते। प्रधानमंत्री जी जिसे आप भ्रष्टाचारी बताते हैं, उसी का दिल खोलकर अपनी पार्टी में स्वागत करते हैं और उनके साथ लगातार मंच साझा भी करते हैं।

मणिपुर पर एक बार संसद के अधिवेशन के दिन संसद के बाहर प्रेस के सामने दुखी होने का अभिनय करते हुए उन्होंने मरे हुए मीडिया के सामने बहुत कुछ साधने का प्रयास किया था – तीन महीने की मणिपुर हिंसा को महज एक विडियो में समेट दिया था और सैकड़ों महिलाओं के उत्पीडन को महज दो महिलाओं पर केन्द्रित कर दिया। खैर, प्रधानमंत्री जी से इससे अधिक संवेदना की उम्मीद करना भी व्यर्थ है।

प्रधानमंत्री जी समेत पूरी सत्ता और तमाम हिंसक समर्थक लगातार जनता को और मीडिया में यह प्रचारित करते हैं कि विपक्ष संसद के अधिवेशनों में व्यवधान डालता है, पर यदि आप संसद के अधिवेशनों से ठीक पहले के घटनाक्रम को देखें तो स्पष्ट होगा कि संसद में गतिरोध पैदा करने का काम सत्ता पक्ष खुद करती है। पहले प्रधानमंत्री जी ने समान नागरिक संहिता का राग छेड़ा – विपक्ष में कुछ सुगबुगाहट तो हुई पर बड़े विरोध में तब्दील नहीं हुई। संभावना बनी की पूरे संसद सत्र में विपक्ष अपनी भूमिका निभाएगा – जाहिर है सत्ता कके बहुत सारे अनकहे कारनामे पूरे नहीं हो पाते और सत्ता को तमाम जवाब देना पड़ता।

सत्र शुरू होने से ठीक पहले कभी पेगासस का मुद्दा सामने आता है, कभी अडानी का मुद्दा आता है तो कभी मणिपुर हिंसा का मसला सामने किया जाता है। वर्ना मई की बर्बरता का विडियो सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले सामने आने का कोई मतलब ही नहीं था। संसद सत्र शुरू होने से पहले तक जिसने इसे नहीं देखा होगा उसे प्रधानमंत्री जी ने संसद के बाहर ही बता दिया। जाहिर है, विपक्ष को भड़काने का एक मुद्दा सामने रख दिया गया। अब विपक्ष लगातार आक्रामक रहेगा और संसद का बहिष्कार करेगा और सत्ता बिना बहस कराये तमाम बिल पास कर लेगी। मणिपुर जलता रहेगा और प्रधानमंत्री जी मणिपुर को छोड़कर भौंडे अंदाज में विपक्ष पर हमले करते रहेंगे।

प्रधानमंत्री जी ने शायद ही कभी देश की वास्तविक समस्याओं पर कोई वक्तव्य दिया हो। देश में नाटकीय अंदाज में चीते मंगाए गए। प्रधानमंत्री जी ने अपनी तारीफ़ खूब की, चीतों का मसीहा बताया – तमाम होर्डिंग्स लगाए गए, मीडिया कई दिनों तक इसे देश के वन्यजीव का अद्भुत कारनामा साबित करता रहा। मीडिया ने तो प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने पर भी टाइगर से ज्यादा चीतों के विडियो दिखाए। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंचे 20 चीतों में से 25 प्रतिशत यानि 5 चीतों की मृत्यु हो चुकी है। इन 20 चीतों में से एक मादा के 4 शावक पैदा हुए, जिनमें से 75 प्रतिशत यानी 3 की मौत हो चुकी है। अब प्रधानमंत्री जी चुप हैं।

प्रधानमंत्री जी के तमाम स्मार्ट शहर इन दिनों डूब रहे हैं, तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं ध्वस्त हो रही हैं – प्रधानमंत्री जी चुप हैं। हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में तमाम चट्टानों को काटकर हाईवे बना दिए गए, प्रचार किया गया अब किसी भी मौसम में बद्रीनाथ और केदारनाथ पहुंचा जा सकता है – हालत यह है कि हरेक बारिश में इसे बंद करना पड़ता है, इसके हिस्से बाढ़ में बह जाते हैं और चट्टाने दरककर सडकों पर और नदियों में पहुँच जाती हैं। अब तो मौसम की मार से मरने वालों की संख्या भी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है – पर प्रधानमंत्री जी चुप हैं।

पिछले कुछ वर्षों से हमारे प्रधानमंत्री देश की अर्थव्यवस्था को कभी सातवीं कभी पांचवीं और कभी तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं। दूसरी तरफ देश के 140 करोड़ लोगों में से 80 करोड़ लोगों को महीने में 5 किलो मुफ्त अनाज दिया जाता है। अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होती है देश में आर्थिक असमानता उतनी ही विकराल होती जा रही है – हमारे देश में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में अधिक आर्थिक असमानता है – एक तरफ अडानी-अम्बानी है तो दूसरी तरफ भूख और बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या करने वालों की फ़ौज है। प्रधानमंत्री जी ने आजतक आर्थिक असमानता पर कुछ भी नहीं कहा।

हमारे प्रधानमंत्री जी देश के युवाओं की खूब बातें करते हैं, पर वही युवा हताश हैं, बेरोजगार हैं और दिशाहीन हैं। युवाओं की हताशा का आलम यह है कि देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थानों में वर्ष 2018 से अबतक लगभग 100 छात्र आत्महत्याएं कर चुके हैं – यह जान्क्कारी संसद में दी गयी है। वर्ष 2023 में ही अबतक 20 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। दूसरी तरफ संसद में यह भी बताया गया है कि वर्ष 2019 से अब तक 34000 से अधिक छात्र अपने अध्ययन को पूरा किये बिना ही चले गए। प्रधानमंत्री जी युवाओं की समस्या पर कभी कुछ नहीं कहते।

पूरे देश के आदिवासी संकट में हैं। मणिपुर की समस्या मौलिक तौर पर आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई है। तथाकथित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में भी आदिवासियों के हक़ की लड़ाई है। आदिवासियों को प्राकृतिक संसाधनों से पूरे देश में बेदखल किया जा रहा है और इस लूट में सबसे आगे सत्ता के गलियारों में डेरा जमाये उद्योगपति ही हैं। प्रधानमंत्री जी ने इस समस्या पर कभी कुछ नहीं कहा।

देश पिछले कुछ वर्षों के दौरान हरेक स्तर पर समस्याओं से घिरा है और हमारे प्रधानमंत्री जी इन समस्याओं के बदले सतही चकाचौंध दिखाते हैं। इस काम में अपना काम भूल चुका मीडिया सत्ता का पूरा साथ निभाता है। जब, मणिपुर जलता है तब मीडिया दिल्ली की सामान्य तौर पर बहती यमुना को भी बाढ़ के तौर पर प्रचारित करता है, दिनभर सीमा हैदर की पूरी जानकारी दिखाता है और यूक्रेन युद्ध की फुटेज दिखाता है। पर, समस्या यह है कि अभी देश की जनता सो रही है, राम मंदिर में विकास देख रही है। यदि जनता की नींद जल्दी नहीं खुली, तो निश्चित तौर पर देश बर्बाद हो चुका होगा और हमारे प्रधानमंत्री जी विपक्ष को कोस रहे होंगे।

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