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समस्या देश की हो या फिर विदेश की 'साहेब' हर बार जनता को पैदल कर देते हैं! देखें तस्वीरें...

Janjwar Desk
2 March 2022 11:47 AM IST
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(यूक्रेन के रोमानियां बॉर्डर पर फंसे भारतीय छात्रों की एक टुकड़ी)

image/social media

यह सवाल उस माता-पिता के मन में भी होगा जिसने कल खारकीव में अपने 21 साल के लड़के को खोया। यह सवाल हर उस मन में भी होगा जिसने लॉकडाउन में पैदल, भूखे चलते अपनों को खोया होगा...

Indian Government: भारत सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में हर बार देर क्यों कर देती है? यह सवाल हर उस मन में होगा जिसके बच्चे इस वक्त यूक्रेन (Ukraine) बॉर्डर पर फंसे हैं। यह सवाल हर उस मन में भी होगा जिसने कोरोना लॉकडाउन में हजारों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय किया। यह सवाल उस माता-पिता के मन में भी होगा जिसने कल खारकीव (Kharkiv) में अपने 21 साल के लड़के को खोया। यह सवाल हर उस मन में होगा जिसने लॉकडाउन में पैदल, भूखे चलते अपनों को खोया होगा।

21 वर्षीय नवीन शेखरप्पा (File Photo)

सवाल बस एक कि क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं? कोरोना मृतकों का आंकड़ा नहीं दिया गया। कितने लोगों ने कितने किलोमीटर सफर तय किया कोई डाटा नहीं है। सरकार में सुख भोग रहे लोग आम जनता पर ही कुठाराघात करते रहे। ठीक उसी तरह जैसे अब यूक्रेन (Ukraine) में फंसे बच्चों के लिए देश का एक वर्ग सरकार का पक्ष ले रहा है। और तो देश का मीडिया (Media) तक सरकारी प्रवक्ता सरीखा नजर आ रहा है। ऐसे में वो कौन होगा जो सवाल करेगा, वो कौन होगा जो जवाब दोगा, और वो कौन होगा जिसकी जिम्मेदारी तय हो। हालांकि, अब तक यह सबकुछ सिफर है।

मृतक नवीन शेखरप्पा

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, यूक्रेन में फंसे नवीन शेखरप्पा (Naveen Shekharappa) की मौत पर मोदी समर्थकों द्वारा कहा जा रहा है कि, और करो एंबेसी की गाइडलाइंस को इग्नोर। जबकि सच ये है कि बाकी देशों ने 11 फरवरी गाइडलाइंस जारी कर मदद शुरू कर दी थी। और भारत ने 15 फरवरी को गाइडलाइन जारी की। और तो युद्ध शुरू होने से पहले एयर इंडिया (Air India) का मात्र एक विमान पहुँच सका। जिसका किराया भी 60 हजार, नॉर्मल किराया 25 हजार। जिसके पास रूपये थे वो एक-एक लाख देकर कुवैत और दुबई के जहाजों से निकल आए।

लॉकडाउन का एक सीन (File Photo/janjwar)

बाकी इंतजार में रहे कि एयर इंडिया (Air India) आएगी, लेकिन सरकार से जरा भी मदद नहीं मिली। भारतीय छात्र फरवरी के शुरूआत में ही एंबेसी और सरकार को ई-मेल्स-ट्वीट्स के जरिए कहते रहे कि यहां से निकालो। लेकिन यूपी चुनाव की वजह से शायद सरकार ध्यान नहीं दे सकी। बाकी देशों ने यूक्रेन (Ukraine) से अपने बच्चे निकाल लिए। हमारी सरकार अभी कोशिश कर रही है। क्योंकि युद्ध के बाद 'ऑपरेशन गंगा' चलाया जा रहा है।

कोरोना त्रासदी के दौरान एक फाइल फोटो

यूएसए (USA) ने अपने नागरिकों को 11 फरवरी को ही कह दिया था कि 48 घंटे के भीतर यूक्रेन खाली कर दें। इंडिया ने 15 फरवरी को सिर्फ सलाह दी। जो छोड़ना चाहे छोड़ दे। 22 फरवरी को पहला और एकमात्र जहाज भेजा गया। 24 को युद्ध शुरू हो गया। ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga) अब चल रहा है। ऑपरेशन गंगा के बारे में बताना सरकार की प्रचार एजेंसी का काम है, फंसे हुए बच्चों को दिखाना मीडिया का काम। ऐसे ऑपरेशन से भला मां गंगा का क्या संबंध है? वो इसलिए की आपदा में अवसर और यूपी में चुनाव (UP Election) हैं।

युद्ध के बीच तकलीफें साझा करती छात्राएं

युद्ध की संभावनाओं पर व्हाइट हाउस ने 11 फरवरी को ही चेतावनी दे दी थी की रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) पर हमला करेगा। सभी खूफिया एजेंसी इस बात की पुष्टी करती रहीं। अमेरिका (America) ने अपने लोगों को 11 फरवरी को ही 48 घंटे का अल्टीमेटम देकर निकाल लिया। लेकिन हमारे जहाज तब पहुँचे जब वो बिक चुके थे। अब मोदी समर्थक कह रहे कि सरकार ने पहले ही चेतावनी दे दी थी, लेकिन क्या सरकार ने कोई मदद भेजी? क्या सरकार ने कोई जहाज भेजे थे? क्या सरकार ने किराए में मदद की थी? क्या सरकार ने कोई हेल्पलाइन जारी की थी?

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र

आज कर्नाटक (Karnataka) का 21 वर्षीय छात्र नवीन शेखरप्पा (Naveen Shekharappa) जो खाना लेने गया था, हमले में मारा गया। कल को कई और मारे जा सकते हैं, कोई भरोसा नहीं। इनपुट यह भी है की कई छात्र-छात्राएं लापता भी हो गये हैं। उन मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी, जिनकी औलादें इस भयानकता के मुँह में हैं? नवीन चौथे वर्ष का छात्र था। उसके अपने क्या सपने होंगे? एक बाप जिसने उसे भेजा होगा उसके क्या सपने होंगे। लेकिन यह सभी सपने अब एक कभी ना भूल पाने वाला डरावना ख्वाब बनकर रह जाएगा। और हम सब किसी नई घटना का इंतजार करते दिख रहे होंगे।

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