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सिद्दीकी कप्पन का जमानतदार बनना छोटी बात है, जरूरत लोकतंत्र को बचाने के लिए एकजुट होने की है : Roop Rekha Verma

Janjwar Desk
22 Sept 2022 2:32 PM IST
सिद्दीकी कप्पन का जमानतदार बनना छोटी बात है, जरूरत लोकतंत्र को बचाने के लिए एकजुट होने की है : रूपरेखा वर्मा
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सिद्दीकी कप्पन का जमानतदार बनना छोटी बात है, जरूरत लोकतंत्र को बचाने के लिए एकजुट होने की है : रूपरेखा वर्मा

Siddiqui Kappan News : लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया है। अदालतों में गैर कानूनी फैसले लिए जा रहे हैं। अब मिलकर हल्ला मचाने से ही देश बचेगा। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि अब देश में कोई सुरक्षित नहीं है।

सिद्दीकी कप्पन का जमानतदार क्यों बनीं फेमिनिस्ट रूपरेखा वर्मा : धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

Siddiqui Kappan News : लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कार्यवाहक वाइस चांसलर और 79 वर्षीय फेमिनिस्ट कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ( Roop Rekha Verma ) इन दिनों बहुत खिन्न रहती हैं। खिन्न, इसलिए नहीं कि सरकार से कोई सुविधा न मिलने से असंतुष्ट हैं। उनकी नाराजगी इस बात को लेकर है कि जिस भारतीय लोकतंत्र ( Indian Democracy ) के महान होने को लेकर ढिंढोरा पीटा जाता है, उसी देश में केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) पर झूठे मुकदमे ठोककर उसे जेल में बंद रखने की साजिश जारी है। सरकार की इस नीति से परेशान रूप रेखा वर्मा ( Feminist Roop Rekha Verma ) ने कप्पन का जमानतदार बनने का फैसला लिया है। उनका कहना है कि एक नागरिक होने के नाते यह मेरी न्यूनतम जिम्मेदारी है। जमानतदार (surety) बनना छोटी सी बात है। असल, जरूरत तो देश में लोकतंत्र को बचाने की है।

जनज्वार डॉट कॉम ( https://janjwar.com/ ) से बातचीत में उन्होंने बताया कि इस फैसले पर पहुंचने में 10 दिन लेट हो गया। इसका मुझे हमेशा अफसोस रहेगा। दरअसल, मुझे इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि पत्रकार सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) की जेल से रिहाई केवल इस बात के लिए रुकी है कि उन्हें यूपी ( UP ) के दो जमानतदार नहीं मिल रहे हैं। मैं तो, शुक्रगुजार हूं, केरल की अपनी एक दोस्त की, जिसने तीन दिन पहले बातचीत के दौरान बताया कि यूपी से गवाह न मिलने की वजह से कप्पन जेल से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। मैं किसी भी तरह से कप्पन की मदद नहीं कर रही हूं। उसे अभी भी अपना केस लड़ना है। सरकार उन्हें उनके आरोपों से मुक्त नहीं करने जा रही है, क्योंकि मैं जमानतदार के सामने आई हूं, लेकिन यह कहना होगा कि अगर एक व्यक्ति की जमानत के लिए जमानतदार (surety) के रूप में खड़े होना साहस के कार्य के रूप में देखा जाता है, तो क्या यह दौर एक नागरिक को डराने वाला नहीं है।

जमानतदार की जरूरत क्यों पड़ी

प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ( Professor Roop Rekha Verma ) का कहना है कि यहां पर अहम सवाल यह है कि पत्रकार सिद्दीक कप्पन ( Siddiqui Kappan ) को जमानतदार की जरूरत किसलिए पड़ी, इसलिए न कि वह अपने पेशे की जिम्मेदारी को पूरा करने में जुटा था, जो सरकार को पसंद नहीं था। बस, इसी बात को लेकर आप किसी को जेल में डाल देंगे। उस पर बेवजह कई धाराओं में मुकदमे ठोकेंगे। यूएपीए और मनी लॉन्ड्रिंग तक के मामले ठोक दिए जाएंगे। मैंने, कप्पन को जमानत देने का फैसला लिया है। अदालत में केस चलेगा। अगर जांच एजेंसियां आरोप साबित कर पाईं तो कप्पन सजा के हकदार होंगे।

पेशागत कर्तव्य का पालन गलत कैसे हो सकता है

यह तो वही बात हो गई कि कोई प्रोफेसर अपने क्लास में पढ़ाने के लिए जा रहा हो, उसी वक्त पुलिस आ जाए और कहे कि आपके क्लास लेने से शांति भग होने की आंशका है। इसे आप हजम करेंगे क्या, तो फिर एक प्रोफेसर कैसे हजम कर सकता है। प्रोफेसर और शिक्षक का काम ही होता है बच्चों को पढ़ाना। यह उसका पेशागत धर्म है। इसमें शांतिभंग का सवाल ही नहीं उठता है। अगर, शांति भंग की आशंका है तो पुलिस समस्या की जड़ पर चोट करे। प्रोफेसर तो केवल अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है। ऐसे में उसकी गिरफ्तारी क्यों? मान लीजिए कि पुलिस की आशंका सही है, तो भी नियम यही है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चले। अदालत फैसला करे कि कौन सही है और कौन गलत। यहां तो सरकार, उसकी पुलिस और जांच एजेंसियां अदालत में ट्रायल ही नहीं शुरू होने दे रही हैं।

कप्पन के साथ क्या हुआ

बातचीत के क्रम में रूप रेखा वर्मा कहती हैं - दो साल पहले कप्पन ( Siddiqui Kappan ) के साथ भी यही हुआ। वह पत्रकार है। जन सरोकार से जुड़े मुद्दे को उठाना उसका पेशागत धर्म और कर्तव्य है। इसके बावजूद उसकी गिरफ्तारी हुई। ऐसे में तो यही सवाल उठता है न कि देश में लोकतंत्र है ही नहीं। लोकतंत्र का कमजोर या मजबूत होना तो तब बहस का विषय हो सकता है जब लोकतांत्रिक मूल्य अस्तित्व में हों।

मामला शुरू से ही डाउटफुल है

भीमा कोरेगांव मामले में वरवरा राव, गौतम नवलखा, आनंत तेलदुम्बडे, हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गईचोर, ज्योती जगताप, फादर स्टैन स्वामी और मिलिंद तेलतुम्बडे को इसी सरकार ने गिरफ्तार किया। इसी तरह एनआईए, ईडी, सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों की आड़ में सैकड़ों लोग जेल में हैं। उनकी गलती क्या है, यही न कि वो सभी को साथ लेकर चलने की बात करते हैं। वो हिंदू राष्ट्रवाद की बात नहीं करते। ये कार्रवाई किसके खिलाफ जारी है, उन्हीं के खिलाफ न जो फेमिनिस्ट हैं या एक्टिविस्ट हैं। सिद्दीक कप्प्पन तो शुरू से ही डाउटफुल केस है।

विभाजनकारी नीतियों से देश का भला नहीं होता

वर्तमान में देश से लोकतंत्र गायब है। अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ मुहिम जारी है। सरकार धर्म के नाम पर लोगों को बांटने में जुटी है। हिंदू का एक तबका यह मानता है कि इसमें उनकी भलाई है। मैं, पूछती हूं, अगर भारत हिंदू राष्ट्र बन भी गया तो विभाजनकारी नीतियों पर शासन करने वाले लोग धर्म के बाद जाति, वर्ग और समुदाय के आधार पर राजनीति करेंगे। वो सुशासन के आधार पर राजनीति तो कर ही नहीं सकते। यानि सरकार की वर्तमान नीतियों से हिंदुओं का भी भला होने से रहा। इस बात की जरूरत है कि लोकतंत्र को मजबूत किया जाए। सभी लोग एक साथ घर से बाहर निकलें और अपनी आवाज बुलंद करें। यही अलोकतांत्रिक सरकार की नीतियों का जवाब है। तभी हमारा लोकतंत्र भी बचेगा।

लोकतंत्र के साथ भद्दा मजाक न करे सरकार

वर्तमान में जो हो रहा है वो लोकतंत्र के साथ मजाक है। भला, कोई ये कैसे हजम कर सकता है कि पत्रकार कप्पन को हजारों रूपए के आय स्रोत को लेकर उसे मनी लॉन्ड्रिंग में फंसा दिया जाए। आप ही बताइए महंगाई, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति के इस दौर में 44 हजार के कितने मायने होते हैं। फिर, मोदी सरकार के कार्यकाल में ही हजारों करोड़ रुपए गबन करने वाले लोग फरार हो चुके हैं। डाउट तो यहां भी है कि मोदी सरकार ने ही उन्हें भगाया है। विजल माल्या, नीरव मोदी व अन्य मामलों में क्या हुआ। सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है जो देश के खिलाफ या अहित में काम कर रहे हैं। वो अपनी छवि को बचाने के लिए उन लोगों पर दमन कर रही है जो पेशागत जिम्मेदारियों को पूरा करने में जुटे हैं। प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा यहीं पर नहीं रुकीं, उन्होंने कहा कि अब तो अदालतों के फैसले भी उसी के अनुरूप आने लगे हैं। लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया है। अदालतों में गैर कानूनी फैसले लिए जा रहे हैं। अब मिलकर हल्ला मचाने से ही देश बचेगा। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि अब देश में कोई सुरक्षित नहीं है।

कौन हैं प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा


लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ( Professor Roop Rekha Verma ) का जन्म 1942 में एटा में हुआ थां। वह मूलतः उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं। उनके पिता जी ब्रिटिश शासन के दौरान से ही डॉक्टर थ। अलग-अलग शहरों में वो रहीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मैनपुरी में हुईं। उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़ी और वहां पर की वाइस चांसलर भी बनीं। जुलाई 2022 में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें लखनऊ की सड़कों पर एक बुजुर्ग महिला को स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पर्चे बांटते हुए दिखाया गया था। वह लोगों में क्रांति और स्वतंत्रता की भावना को जीवित रखना चाहती थी।

दर्शनशास्त्र की प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ( Professor Roop Rekha Verma ) 1964 से 2003 तक लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। प्रोफेसर वर्मा आज भी एक फेमिनिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। योगी और मोदी सरकार काल में उनके खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए हैं। उन्हें 2006 में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए बेगम हजरत महल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह साझी नामक एक संगठन भी चलाती हैं। ।

क्या है कप्पन का मामला


Siddiqui Kappan News : केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन ( Siddiqui Kappan ) को अक्टूबर 2020 में यूएपीए अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था और यूपी स्पेशल टास्क फोर्स ने मामले में 5,000 पेज का चार्जशीट दायर किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उन्होंने ष्केवल मुसलमानों के बारे में रिपोर्ट की और दंगों पर रिपोर्टिंग भी सांप्रदायिक है। उन पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रावधानों के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानि देशद्रोह, 153ए यानि शत्रुता को बढ़ावा देना, और 295ए यानि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण काम करने का आरोप है। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर को कप्पन को जमानत दी जिसके बाद उन्हें 12 सितंबर को लखनऊ में ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किया गया जहां उन्हें जमानत की शर्तों के बारे में बताया गया। जमानत की शर्त में यूपी निवासी दो जमानतदार होना जरूरी है। जमानतदार के खाते एक लाख रुपए या उसके पास उतनी की संपत्ति होनी चाहिए। इसके अलावा उनके खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम पीएमएलए सुनवाई जारी है। पीएमएलए की जमानत और आरोपमुक्त करने की अर्जी पर 23 सितंबर को फिर से सुनवाई होगी।

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