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सरकार के पास आंकड़ों का अभाव, सूचना के अधिकार पर सबसे बड़ा प्रहार - सोशल एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज

Janjwar Desk
14 Nov 2021 3:48 PM IST
सरकार के पास आंकड़ों का अभाव, सूचना के अधिकार पर सबसे बड़ा प्रहार - सोशल एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज
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सूचना आयोग और उसके कमिश्नर को सरकार से स्वत्रंत संस्था होनी चाहिए। सरकार ने उसी के अधिकार छीन लिए।

नई दिल्ली। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ पारदर्शिता, भ्रष्टाचार उन्मूलन और जन सूचना अधिकार के प्लैंक पर साल 2014 में भाजपा ( BJP ) सत्ता में आई थी। तब से भाजपा की सत्ता पर काबिज है। अफसोस की बात या भरोसे से विश्वासघात वाली बात यह है कि जब से भाजपा सत्ता में आई तभी से मोदी सरकार ( Modi government ) ने सबसे ज्यादा प्रहार उसी जन सूचना अधिकार ( RTE ) पर किया, जो किसी भी विषय या समस्या से संबंधित आंकड़े हासिल करने के आम लोगों के हाथ में बड़ा हथियार हुआ करती थी। पिछले सात सालों में केंद्र सरकार ने जन सूचना के अधिकार ( Right to Information ) को लगभग पंगु बनाकर रख दिया है।

एक ही रट है - मेरे पास और आंकड़े नहीं हैं

जन अधिकार राष्ट्रीय अभियान की संयोजक और सोशल एक्टिविस्ट अंजली भारद्वाज ( Social Activist Anjali Bhardwaj ) का कहना है कि पिछले सात साल में खास बात यह हुई है कि भाजपा पारदर्शिता लाएंगे और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाएंगे, के दम पर सत्ता में आईथ थी। भाजपा ने वादा किया था कि हम देश में सुशासन का राज स्थापित करेंगे। बीते कुछ सालों में हम देख रहे हैं कि केंद्र सरकार ने उसी सूचना अधिकार कानून और उसे इस्तेमाल करने वाले लोगों पर सबसे बड़ा प्रहार कर रही है। अब हालात ये हैं कि भाजपा की सरकार न ही सवाल चाहती और न उसका जवाब देने के लिए तैयार है। मौजूदा सरकार व्हिसल ब्लोअर्स पर लगातार प्रहार कर रही। सरकार हर जग़ह एक ही रवैया अपना रही है। मेरे पास और आकड़े और सूचना नहीं हैं।

कोविड-19 महामारी के दौरान देश और दुनिया के लोगों ने देखा कि इसका लोगों पर विनाशकारी प्रभाव रहा। लाखों लोगों की जान इस बीमारी की वजह से चली गई। हम सभी ने ये भी देखा कि किस तरीके से सेकेंड वेव के दौरान लोगों के पास ऑक्सीजन की कोई व्यवस्था नहीं थी। लोग अपने परिवारजन और रिश्तेदारों के लिए दौड़-दौड़ कर, इधर—उधर से ऑक्सीजन ला रहे थे। ऑक्सीजन की कमी की वजह से घोर संकट उत्पन्न हो गया था। अस्पतालों में बेड तक नहीं थीं। ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो रही थी।

आंकड़ों के बगैर सूचना अधिकार का क्या मतलब

जब सदन में सरकार से पूछा गया की ऑक्सीजन की कमी से कितने लोगों की मौतें हुईं तो सरकार का कहना था कि हमारे पास इसके आकड़े और कोई सूचना नहीं है। सरकार यही रवैया जग़ह—जग़ह अपना रही हैं बेरोजग़ारी पर सरकार के पास आंकड़े नहीं है। इससे पहले सरकार सर्वे कंज्यूमर इंडेक्स पर काम कराती थीं। उसे बंद कर दिया गया। सूचना अधिकार पर सबसे बड़ा प्रहार की सरकार कहती है कि हमारे पास सूचना ही नहीं है। मैं, पूछती हूं कि जब सरकार के पास सूचना ही नहीं रहेंगी तो अधिकार का क्या मतलब रह जाएगा

इतना ही नहीं सरकार ने सूचना कानून में संशोधन कर सूचना आयुक्त के कार्यकाल और सैलरी को अपने हाथ में ले लिया। यह जन सूचना अधिकार पर सबसे बड़ा प्रहार था।

इसी तरह सरकार ने 2019 में 2005 में पारित आरटीआई कानून में संशोधन कर दिया। संशोधित नियमों के मुताबिक हालात बदल गए। बदले हालात में सूचना आयोग के पास सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों द्वारा सूचना न देने की स्थिति में अधिकारियों पर पेनल्टी लगाने का अधिकार नहीं रहा। जबकि पहले आयोग सरकार पर सूचना देने के लिए दबाव भी डालती थी। सूचना आयोग और उसके कमीश्नर को सरकार से स्वत्रंत संस्था होनी चाहिए। सरकार ने उसी के अधिकार छीन लिए। तभी ये संभव हो सकता है। सराकर ने कार्यकाल को और सैलरी, पेंशन इसे कंट्रोल करने के लिए सूचना के अधिकार क़ानून को संशोधित कर दिया।

कानून में पहले लिखा था की सूचना आयुक्त की नियुक्ति 5 साल के लिए कि होगी। सैलरी और पेंशन सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर तय की गई थी। अब कमिश्नर की सैलरी, पेंशन और कार्यकाल सरकार तय करेगी। इसका मतलब सूचना आयुक्त पर सरकार के हिसाब से काम करने दबाव हमेशा रहेगा। अगर कमिशनर ऐसे ऑर्डर देते हैं जो सरकार को पसंद नहीं है तो पेंशन और सैलरी सरकार रोक सकती है।

ऐसे में तो सूचना का अधिकार बस कागज पर रह जाएगा

2014 के बाद बीजेपी सरकार आने के बाद जब तक लोगों ने कोर्ट के दरवाज़े नहीं खड़काए तब तक सूचना आयोग में एक भी केंद्रीय सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं हुई। अगर आयोग में नियुक्तियां ही नहीं होंगी तो सरकार को सूचना देने के लिए मजबूर कौन करेगा। ऐसे में तो सूचना का अधिकार बस कागज़ पर रह जाएगा।

8 साल से लंबित है व्हिसल ब्लोअर्स क़ानून पर अमल

व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन कानूनों पर अमल आठ साल से लंबित है। व्हिसल ब्लोअर्स उक्त कानूनों के तहत ही सूचना निकालते हैं। भ्रष्टाचार को उजागार करते है। जिस कानून से उन्हें प्रोटेक्शन मिल सकती थी, उस कानून को पारित हुए 8 साल होने वाले है। 2014 ये कानून पारित हुआ था। आज तक उसके जो नियम थे उसे सरकार ने अभी तक लागू नहीं किए।

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