SC की कमेटी के चारों चेहरे कृषि कानूनों के पैरोकार, किसान संगठनों का लड़ाई जारी रखने का ऐलान
जनज्वार। मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनायी गयी चार सदस्यीय कमेटी के बावजूद किसान आंदोलन खत्म नहीं होने जा रहा है। किसान नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी कमेटी के सामने नहीं जाएंगे, क्योंकि कोर्ट में किसान नहीं सरकार गयी थी। किसान नेताओं अदालत के फैसले का स्वागत किया है लेकिन कहा है कि वे इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि इस मुद्दे पर उनका संघर्ष सरकार से है और वे सरकार के साथ 15 जनवरी को प्रस्तावित बैठक में शामिल होंगे।
योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी का विरोध करते हुए लिखा है, 'ऐसी कमेटी का हम क्या करेंगे योर ऑनर?
ऐसी कमेटी का किसान क्या करेंगे, योर ऑनर?#FarmersProtests #FarmLaws pic.twitter.com/FNRCH09bu2
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) January 12, 2021
मालूम हो कि कृषि कानून व किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई करते हुए कानून पर फिलहाल रोक लगाते हुए इस पर विचार के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाने की घोषणा की, जिसमें बीकेयू के भूपिंदर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री और कृषि उपज मूल्य निर्धारण आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के डाॅ प्रमोद जोशी और महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के अनिल धनवट को शामिल करने की बात कही गयी।
Farmers clearly opposed SC's order to form committee and are firm about their decision to REPEAL the FARM LAWS. In continuation with the same, farmers stated that the agitation will prevail with a peaceful demonstration on the Republic Day. #FarmersRejectSCcommittee pic.twitter.com/itoVRer4Om
— Kisan Ekta Morcha (@Kisanektamorcha) January 13, 2021
किसान संगठनों के साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा ने इस संबंध में एक बयान जारी कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मौखिक आदेश से हमारे रुख की पुष्टि होती है। बयान में कहा गया है कि किसानों के शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने के अधिकार को अदालत ने मान्यता दी है और उन शरारतपूर्ण याचिकाओं पर ध्यान नहीं दिया जिन्होंने किसानों के मोर्चे को उखाड़ने की मांग की थी।
बयान में कहा गया है कि कृषि कानून पर रोक लगाने का अदालत का फैसला हमारे इस रुख की पुष्टि करता है कि ये तीनों कानून असंवैधानिक हैं। किसान संगठनों ने कहा है कि लेकिन यह रोक केवल अस्थायी है जिसे पलटा जा सकता है, लेेकिन हमारा आंदोलन इन कानूनों को रद्द करने या स्थायी रूप से रोकने को लेकर चलाया जा रहा है, इसलिए हम अपना यह आंदोलन समाप्त नहीं कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि स्टे आर्डर पर हम अपने रुख में कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं।
बयान में कहा गया है कि किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है और अदालत ने समिति में जिन चार लोगों को शामिल किया है वे कृषि कानून के पैरोकार हैं और पिछले कई महीनों से इसकी पैरवी करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मदद के लिए बनायी इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा, इसलिए आंदोलन से जुड़े कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा।
किसान संगठनों ने कहा है कि 13 जनवरी को लोहड़ी के मौके पर कृषि कानूनों को जलाएंगे, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाएंगे, 20 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेंगे, 23 जनवरी को आजाद हिंद किसान दिवस पर देश भर के राजभवनों का घेराव करेंगे और 26 जनवरी को किसान गणतंत्र परेड करेंगे। बयान में बिहार, छत्तीरगढ, कर्नाटक, केरल व तेलंगाना में किसानों के आंदोलन का भी जिक्र किया गया है।
इससे पहले मंगलवार को भी संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों ने कुंडली बाॅर्डर पर कहा था कि वे इस कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे, क्योंकि इसमें शामिल किए गए लोग अखबारों में लेख लिख कर कृषि कानून की पैरवी करते रहे हैं। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, डाॅ दर्शनपाल, जगजीत सिंह दल्लेवाल, प्रेम सिंह भंगू, रमिंदर पटियाल जगमहोन सिंह आदि ने कहा था कि हमारी मांग कानून रद्द करने की है किसी कमेटी में बहस के लिए नहीं। यह कमेटी केवल विषय को भटकाने के लिए बनायी गयी है।