Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

विश्व भारती विवाद में बुद्धिजीवियों ने अमर्त्य सेन का दिया साथ, किया प्रदर्शन

Janjwar Desk
27 Dec 2020 10:00 PM IST
विश्व भारती विवाद में बुद्धिजीवियों ने अमर्त्य सेन का दिया साथ, किया प्रदर्शन
x
इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा सेन को कैंपस में अवैध रूप से रहने वालों की सूची में नाम डाले जाने के बाद उन्हें पत्र लिखा....

कोलकाता। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) समर्थित बुद्धिजीवियों के एक समूह ने रविवार को नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के समर्थन में यहां प्रदर्शन किया। ये लोग विश्व भारती विश्वविद्यालय (वीबीयू) परिसर में सेन का नाम गैरकानूनी ढंग से रहने वालों की सूची में डाले जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। थियेटर से जुड़े और पश्चिम बंगाल के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ब्रात्य बासु द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन कोलकाता के ललित कला अकादमी के परिसर के सामने आयोजित किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भारती विश्वविद्यालय ने कहा कि अमर्त्य सेन के दिवंगत पिता द्वारा कानूनी तौर पर पट्टे पर ली गई 125 डिसमिल जमीन के अलावा, 13 डिसमिल जमीन पर अवैध रूप से कब्जा है।

ब्रात्य बासु ने कहा, 'अमर्त्य सेन का अपराध यह है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ आवाज उठाई है। यदि बंगाल में भगवा पार्टी सत्ता में आती है, तो ये आम लोगों के लिए अच्छी बात नहीं होगी। वे सेन जैसे लोगों का सम्मान नहीं कर सकते हैं, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाविद और नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।'

विरोध प्रदर्शन में बंगाली कवि जॉय गोस्वामी, सुबोध सरकार, चित्रकार जोगन चौधरी, कलाकार शुवाप्रसन्ना, फिल्म निर्माता अरिंदम सिल, गायक सौमित्र रॉय सहित अन्य लोग शामिल थे। कुछ लोग हाथ में टीएमसी का झंडा लिए हुए थे। लेकिन इस कार्यक्रम में बासु के अलावा तृणमूल का कोई और नेता नहीं दिखा।

इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा सेन को कैंपस में अवैध रूप से रहने वालों की सूची में नाम डाले जाने के बाद उन्हें पत्र लिखा। ममता ने पत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता के साथ एकजुटता भी जताई।

विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। मई 1951 में इसे संसद के एक अधिनियम द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था।

आर्टिस्ट शुवाप्रसन्ना ने कहा, 'विश्वविद्यालय के अधिकारी टैगोर के नोबेल पुरस्कार को नहीं बचा पाए। वे अमर्त्य सेन जैसे बुद्धिजीवियों का सम्मान क्या करेंगे। बंगालियों के रूप में, हमें वास्तव में शर्म महसूस हो रही है।'

Next Story

विविध