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DDU news today: सीबीसीएस पैटर्न में पाठ्यक्रम से लेकर परीक्षा प्रणाली पर विद्यार्थियों ने किया हंगामा, कुलपति के विरोध में लगाए नारे
चक्रपाणि ओझा की रिपोर्ट
ddu news today: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर में आजकल नई शिक्षा नीति लागू हो चुकी है, जिसकी औपचारिक शुरुआत भी हो गई है। विश्वविद्यालय समेत सभी संबद्ध महाविद्यालयों में प्रथम वर्ष के विद्यार्थी जिनका कुछ दिनों पूर्व तक प्रवेश हुआ है, उन्हें ना तो ठीक ढंग से अपने कोर्स के बारे में बहुत कुछ ज्ञात हो पाया और न ही उनको पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षक भी नवीनतम पाठ्यक्रम की बनावट को ठीक ढंग से समझ पाए हैं, जैसे तैसे पठन-पाठन शुरू तो हुआ है लेकिन प्रवेश लेने के तुरंत बाद ही परीक्षा की घोषणा विश्वविद्यालय द्वारा कर देना ना सिर्फ छात्रों को न केवल परेशान करने वाला है बल्कि उनके शिक्षकों और अभिभावकों को भी चिंतित करने वाला है कि आखिर छात्र परीक्षा में क्या लिखेंगे? जब उनका कोर्स ही पूरा नहीं हो पाया है। कोर्स पूरा करना तो दूर की बात है ठीक से शुरू ही नहीं हो पाया है और परीक्षा का शंखनाद हो गया।
फिलहाल परीक्षा कार्यक्रम आना अभी शेष है। इतना भयानक है कि किसी विश्वविद्यालय का अपने छात्रों के भविष्य से इस प्रकार का खिलवाड़ करना। जहां कभी 180 दिन कक्षाएं ना चलने पर परीक्षा से वंचित कर दिया जाता था, परीक्षा देने के बाद भी परिणाम के लिए संघर्ष करना पड़ता था आज वहीं पर बिना पढ़ाए ही परीक्षा कराने की तैयारी करना हमारी शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा करने वाली स्थिति है।
स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने के लिए जिन छात्रों ने प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया है उनके सामने बिना समुचित तैयारी के परीक्षा में शामिल होने की सूचना कितनी परेशानी पैदा करने वाली होगी अगर हम एक छात्र की नजर से देखें तो। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए इतना उतावला है कि वह छात्रों के भविष्य तक की चिंता नहीं कर रहा है। सवाल यह है कि यह नए छात्र जो विश्वविद्यालय और संबद्ध कालेजों में नए-नए सपने लेकर प्रवेश लिए थे उनके सपनों का क्या होगा? यह सोचने वाला कोई नहीं है,इस समय विश्वविद्यालय में सब मौन हैं, शिक्षक संघ गायब है, छात्र संघ भंग है, छात्र संगठन अब रहे नहीं जो हैं वे चुनावी हैं, सत्ताधारी दल के हैं, उनसे किसी छात्र हित की आवाज की उम्मीद नहीं की जा सकती है। ऐसे में सवाल यह है कि नए प्रवेश लिए छात्र प्रथम सेमेस्टर की होने वाली परीक्षा में किस तैयारी के साथ शामिल होंगे जहां अधिकांश के पास अभी तक नई किताबों की पहुंच सुनिश्चित नहीं हो पाई है। अगर छात्र किसी तरह परीक्षा पास भी हो गए तो इनकी जानकारी का स्तर क्या होगा यह शोचनीय है। अभी तो पिछले वर्ष कोरोना के कारण बहुत सारे छात्रों को विश्वविद्यालय ने प्रमोट कर दिया वे पास हो गए बिना पढ़े, बिना परीक्षा दिए। लेकिन अब जब सब कुछ सामान्य है तब सेमेस्टर प्रणाली लागू करने के नाम पर विश्वविद्यालय प्रशासन इतनी जल्दीबाजी में है कि उसे महज प्रवेश,परीक्षा और परिणाम की चिंता है छात्रों के भविष्य की नहीं। समूचे विश्वविद्यालय की खस्ताहाल हो चुकी शिक्षा व्यवस्था से बहुत उम्मीद करना बेमानी होगा। जो विश्वविद्यालय कभी साहित्य,संस्कृति व राजनीति का बड़ा केंद्र था आज वह डिग्री बांटने का केंद्र बनता जा रहा है,हालांकि इसकी शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी। लेकिन अब यह डीडीयू वास्तव में "डिग्री डिस्ट्रीब्यूशन यूनिट" बनने में सफल होता दिख रहा है।
काश ! विश्वविद्यालय तंत्र परीक्षाओं को लेकर जितना जागरूक होता है उतनी ही जागरूकता का परिचय वह पढ़ाई करवाने के लिए,विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों व स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की पठन-पाठन की व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति के प्रति जागरूक होता तो देश में एक अच्छा संदेश जाता लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। यह शोचनीय विषय है। समाज के जागरूक लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आगे आकर बदहाल होती शिक्षा प्रणाली पर विचार करें।