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विकास दुबे की मौत से कुछ घंटे पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जताई गई थी एनकाउंटर की आशंका
नई दिल्ली। कानपुर में 3 जुलाई को आठ पुलिस कर्मियों को अपने गुर्गों से मौत के घाट उतवाने वाले विकास दुबे की मौत से पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें उसके कथित सहयोगियों की 'फर्जी मुठभेड़ों' की जांच की मांग की गई थी।
यह याचिका महाराष्ट्र के एक वकील के द्वारा दायर की गई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि 'पूरी संभावना है' कि विकास दुबे मारा जाएगा। विकास दुबे को 9 जुलाई को गिरफ्तार किया गया और जुलाई की 10 जुलाई को गोली मार दी गई। दुबे को मध्यप्रदेश के उज्जैन से पकड़ा गया था और फिर वापस उत्तर प्रदेश लाया गया था।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक वकील घनश्याम उपाध्याय ने दायर याचिका में उत्तर प्रदेश पुलिस, एसपी कानपुर और सीबीआई को एक पार्टी के रूप में बनाया है।
याचिका में कहा गया है कि 'यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री ने भी कहा कि पुलिसकर्मियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और दोषियों में से किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।
याचिका में उन्होंने कहा कि पुलिस ने दुबे की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए 'पूरी तरह कानून से अज्ञात' कदम उठाया जिसमें उनके घर और वाहन भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा, 'प्रशासन / पुलिस की ओर से इस तरह का कृत्य पूर्ण अराजकता और 'पुलिस राज' के 'जंगल राज' को प्रदर्शित करता है और किसी भी एंगल से प्रशासन/पुलिस की ओर से इस तरह की कार्रवाई उचित और स्वीकार्य नहीं है।'
याचिका में सवाल किया गया है कि उन्होंने 'मुठभेड़ के नाम पर पांच आरोपियों को कैसे गिरफ्तार किया/ पकड़ा और फिर पुलिस ने मार डाला"।
दलील में कहा गया है, 'इस बात की पूरी संभावना है कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा भी विकास दुबे को अन्य सह-अभियुक्तों की तरह मार दिया जाएगा अगर उसकी हिरासत उत्तर प्रदेश पुलिस को मिल जाती है। याचिका में उज्जैन में दुबे की गिरफ्तारी की वास्तविक परिस्थितियों पर सवाल उठाए गए हैं।