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उत्तर प्रदेश

रिहाई मंच ने राकेश पाण्डेय एनकाउंटर मामले पर उठाया सवाल, कहा- राजनीतिक बदले से हो रही कार्रवाई

Janjwar Desk
1 Sep 2020 8:32 AM GMT
रिहाई मंच ने राकेश पाण्डेय एनकाउंटर मामले पर उठाया सवाल, कहा- राजनीतिक बदले से हो रही कार्रवाई
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राकेश के बेटे आकाश बताते हैं कि 2005 में मम्मी के नाम से शस्त्र लाइसेंस निर्गत हुआ था। इसके पहले भी लाइसेंस को जब्त करने की कोशिश हुई, राकेश के ऊपर 1993 में एक और 2000 में दो केस दर्ज थे, जो लाइसेंस जारी होने के वक़्त विचाराधीन नहीं थे, फिर भी एलआईयू की रिपोर्ट थी कि वे बंदूक लेकर गांव में घूमते हैं, दहशत फैलाते हैं.....

लखनऊ। रिहाई मंच ने यूपी के मऊ जिले व आस-पास के क्षेत्रों में मुख्तार अंसारी के नाम पर हो रहे एनकाउंटर और सीएए आंदोलनकारियों पर गैंगेस्टर की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट जारी की है। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा है कि मुख्तार के नाम पर सरकार को किसी का एनकाउंटर, गैंगेस्टर, जिलाबदर, गुंडा एक्ट और संपत्ति को जब्त करने का अधिकार नहीं है। कानून के तहत नहीं बल्कि बदले के तहत कार्रवाई की जा रही है। 2005 में मऊ साम्प्रदायिक हिंसा से हिंदू युवा वाहिनी और योगी के निशाने पर मऊ का मुस्लिम समाज रहा है, जहां सूत की जगह नफरत की राजनीति ने आग बुनने का काम किया। मऊ साम्प्रदायिक हिंसा में मां-बेटी के सामूहिक बलात्कार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुजरात की जाहिरा शेख से मिलती हुई घटना कहकर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।

यूपी में मऊ के राकेश पाण्डेय के एनकाउंटर के बाद पिछले दिनों 2005 की मुख़्तार अंसारी और अभय सिंह की एक कॉल रिकॉर्डिंग कृष्णानंद राय को लेकर वायरल हुई। दावा किया गया कि यूपी एसटीएफ के एक जवान ने ये कॉल इंटरसेप्ट की थी और बाद में ये ऑडियो सीबीआई को भी सौंपी गई थी। कृष्णानंद राय मामले में सीबीआई के विशेष कोर्ट से सभी आरोपी बरी हो गए थे। कॉल रिकॉर्डिंग के बारे में बताया जाता है कि उस वक्त मुख्तार गाजीपुर और अभय सिंह फैज़ाबाद जेल में बंद थे। इसके बारे में मीडिया में बताया गया कि यह कॉल रिकॉर्डिंग जब कृष्णानंद राय पर हमला हुआ, ठीक उसी समय की है।

मुख्तार अंसारी कृष्णानंद राय और मुन्ना बजरंगी में हो रही गोलीबारी को बताते हुए अंत में कह रहे कि जय श्रीराम, काट लीन्ह..... मुठ्ठी में। मीडिया ने कहा कि काट लीन्ह का मतलब कृष्णानंद राय की शिखा से, जिसे राकेश ने काटा था, ऐसा कहा जा रहा। जैसा कि मालूम हो कि मुन्ना बजरंगी की जेल में योगी सरकार में हत्या हो चुकी है।

मीडिया के अनुसार योगी के आदेश पर डीजीपी द्वारा ऑपरेशन मुख्तार चलाया जा रहा है। वाराणसी, जौनपुर, मऊ, आज़मगढ़, गाजीपुर, चंदौली में जिसका व्यापक असर है। 7 लोग गिरफ्तार हुए हैं। 20-25 अपराधियों पर गैंगेस्टर एक्ट, मुख्तार गैंग के शूटर प्रकाश मिश्रा, बृजेश सोनकर की संपत्ति जब्त, तीन रिश्तेदारों के शस्त्र लाइसेंस रद्द, मुख्तार से जुड़े 20 लोगों के शस्त्र लाइसेंस रद्द, जौनपुर, माफिया रविन्द्र निषाद, वी नारायण राव गिरफ्तार जैसी सूचनाओं के साथ मीडिया में मुख्तार की कहानियां इन दिनों जोरों पर है। गौरतलब है कि जिनको मुख्तार के नाम पर गैंगेस्टर कहा जा रहा है उसमें ज्यादातर सीएए आंदोलन में गिरफ्तार किए गए थे और अब उनको गैंगेस्टर लगाकर फिर से गिरफ्तार किया जा रहा।

बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में आरोपी और बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर राकेश उर्फ हनुमान पाण्डेय को यूपी एसटीएफ ने मार गिराया, एसटीएफ ने अपनी थ्योरी में बताया था कि पांच लोगों के साथ इंडिया वॉच न्यूज़ स्टीकर लगी गाड़ी से राकेश आया था। इनोवा से जा रहे लोग एसटीएफ के घेरे में आ गए। चार उसके साथी भागने में सफल रहे। लेकिन वहीं राकेश पाण्डेय के पिता का कहना है कि कोई केस नहीं था तो आखिर एनकाउंटर क्यों किया गया। राकेश पाण्डेय के बेटे ने एनकाउंटर को प्री प्लान हत्या करार दिया। इन खबरों के बाद रिहाई मंच के एक प्रतिनिमण्डल जिसमें राजीव यादव, प्रवीण राय और अवधेश यादव ने राकेश के परिजनों से मऊ में उनके गांव में मुलाकात की।

मऊ के लिलारी भरौली में राकेश पाण्डेय के पिता बलदत्त पाण्डेय, जो 1984 में नायब सूबेदार से रिटायर हैं, कहते हैं कि 9 अगस्त की सुबह-सुबह करीब-करीब 6 बजे सोकर उठे थे और तख्त पर बैठा था। उसी वक़्त गांव का एक लड़का आया और बोला मामा कुछ खबर मिली। हम पूछे काहे का। उसने कहा टीवी देखे हैं। हमने कहा कि अभी सोकर उठ रहा हूं। टीवी खोला तो देखा कि पहले ही नीचे स्ट्रिप पर चल रहा है कि लखनऊ में कृष्णानंद के हत्यारे राकेश पाण्डे उर्फ हनुमान को एसटीएफ ने ढेर कर दिया। जिनके ऊपर एक लाख का ईनाम घोषित था। वो कहते हैं कि वो इंजीनियरिंग का स्टूडेंट था। कृष्णनगर के किसी कॉलेज का जिक्र करते है। उन्होंने बताया कि वो (राकेश पाण्डेय) उस कॉलेज में 1992-93 में अध्यक्ष था।

घर पर पुलिस के आने के बारे में पूछने पर बलदत्त पाण्डेय बताते हैं कि बेटे की हत्या के कुछ दिनों पहले दो बार पुलिस के लोग आए थे। पहली बार चार-पांच सिपाही, एक एसआई आए थे और हमसे विभिन्न जानकारियां लेने लगे कि कितने लड़के हैं कितनी लड़कियां हैं। कौन कहां है? किसका ननिहाल कहां है? ससुराल कहां है और बहुत सारी चीजें। बच्चे कहां हैं? लड़के-लड़की की शादी कहां हुई है? हमने पूछा कि आप किस मकसद से ये पर्सनल डेटा ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार का आदेश है कि जिसके पास गन है उसका डेटा लेना आवश्यक है। हमने कहा जिसके नाम से गन है उससे मतलब होना चाहिए, बाकी लोगों का पर्सनल डेटा लेने का क्या मतलब है? तो वे कुछ नहीं बोले।

राकेश की मां की तबीयत खराब थी तो मैं लखनऊ गया था। वार्ड में था तो पता चला कि एसओ साहब दोबारा आए हैं और बंदूक जो थी ले गए। पहली बार में लाइसेंस लिए मिलान किए, डिटेल लिए, मोबाइल से फ़ोटो लिए, कागज पर दस्तखत कराए, फिर चले गए थे। संयोग से मैं आ गया तो एसआई से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि गन लेने आया था। गन ले लिए। छानबीन करनी थी। हमने कहा गन मिल गई तो उन्होंने कहा कि हां। जब भी आते थे राकेश की फोटो जरूर मांगते थे। पुलिस की इस सक्रियता को परिजन मानते हैं कि कहीं न कहीं ये सब उसी साजिश का हिस्सा था जिसके तहत उनको मारा गया। नहीं तो पूरे लॉकडाउन में वे घर पर थे।

खबरों के मुताबिक 9 जुलाई को मऊ में सामने आया था कि राकेश पाण्डेय की पत्नी सरोज लता पाण्डेय ने तथ्यों को छिपाकर गन का लाइसेंस 2005 में ले लिया था। उन्होंने राकेश के ऊपर दर्ज अभियोगों को छिपाया था। इस मामले को लेकर सरोज लता पाण्डेय के खिलाफ मुकदमा दर्ज का शस्त्र जब्त कर निरस्तीकरण के लिए रिपोर्ट भेजी जा चुकी है।

राकेश के बेटे आकाश बताते हैं कि 2005 में मम्मी के नाम से शस्त्र लाइसेंस निर्गत हुआ था। इसके पहले भी लाइसेंस को जब्त करने की कोशिश हुई। राकेश के ऊपर 1993 में एक और 2000 में दो केस दर्ज थे। जो लाइसेंस जारी होने के वक़्त विचाराधीन नहीं थे। फिर भी एलआईयू की रिपोर्ट थी कि वे बंदूक लेकर गांव में घूमते हैं, दहशत फैलाते हैं, और 2010-11 तक लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था। वे बताते हैं कि उन पर अब तक 2 मुकदमा मऊ, 4 अन्य और 2 गैंगेस्टर के थे।

सबसे अहम सवाल आकाश उठाते हैं कि उनके पिता का एनकाउंटर का वाराणसी एसटीएफ ने दावा किया है। जबकि राकेश पिछले एक महीने से लखनऊ में पीजीआई-केजीएमयू के चक्कर काटकर अपनी माता जी का इलाज करवा रहे थे। आखिर इतना उनकी तलाश थी तो लखनऊ एसटीएफ क्यों नहीं पकड़ लेती। वे तो लखनऊ में थे। उनके लिए आसान भी होता। कृष्णानंद राय मामले से जोड़कर उनके बारे में कहा जा रहा है जबकि कृष्णानंद राय और मन्ना सिंह दोनों मामलों से वे बरी हो चुके थे।

राकेश के पिता बलदत्त कहते हैं कि राकेश के खिलाफ कोई वारंट नहीं था। एफआईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कुछ नहीं मिली। मानवाधिकार के तहत हमको लाश मिलनी चाहिए थी पर वो भी नहीं मिली। कोई सूचना तक नहीं दी।

मुठभेड़ पर सवाल उठाते हैं कि एनकाउंटर दो पार्टियों के बीच होता है। ये कैसा एनकाउंटर जिसमें एक आदमी मारा गया चार आदमी भाग गए। ईनामी बदमाश की बात कर रहे हैं क्या किसी पेपर में गजट हुआ है, कोई नोटिफिकेशन है या कोर्ट का आदेश जिसकी उन्होंने अवहेलना की, जो उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट है। वो कहीं फरार या अंडरग्राउंड नहीं थे वो अपनी मां का इलाज करवा रहे थे। अपना इलाज करा रहे थे।

पिता आरोप लगाते हुए कहते हैं कि राकेश पाण्डेय को इलाज के दौरान अस्पताल से उठाया गया था। बाद में मालूम चला कि वहां एसटीएफ थी मरीज के रूप में। राकेश के भाई बताते हैं कि 2 अगस्त को वे उनके साथ थे। गुड़म्बा थाने के पास श्रीसाईं हॉस्पिटल में वे भर्ती थे। बीमारी के बारे में पूछने पर बताते हैं कि अस्थमा के पुराने मरीज थे। तकरीबन 50 वर्षीय राकेश को बीपी, ऑक्सीजन की शिकायत थी। उनकी माता जी की तबीयत सवा महीने से खराब थी।

वो फरार चल रहे थे इस पर बोलते हुए बताया कि लॉकडाउन में राकेश पाण्डेय घर पर ही थे और जब माताजी की तबीयत खराब हुई तो उनको लेकर राकेश खुद केजीएमसी गए। याद करते हुए बताते हैं कि 12 जुलाई को गए और दस दिन लगातार वहीं रहे। कोई फरारी में नहीं थे।

कुछ याद करते हुए राकेश के पिता कहते हैं कि डाइबिटीज कंट्रोल नहीं हो रही थी। गांधी वॉर्ड में सेकंड फ्लोर पर 2 अगस्त तक बेड नम्बर 4 पर भर्ती थीं। पिता और भाई सहयोग के लिए गए। बहुत सी जांचें होती थीं। इसलिए वहां रहना होता था और राकेश वहीं रहते थे। उनसे वहां तमाम लोग मिलने जुलने वाले आते थे।

राकेश के बेटे आकाश पाण्डेय बताते हैं कि एक दिन में पांच-छह जांचें होती थीं। दो आदमी की हर वक़्त जरूरत थी। बुआ भी गई थीं। इंसुलिन लगाई जाती थी। वहीं राकेश दूसरे अस्पताल में भर्ती थे। जिनकी दवाओं के बारे में कहते हैं कि कुछ एंटीबॉयोटिक चल रही थी। 8-9-10 अगस्त को डिस्चार्ज हो जाएंगे ये लग रहा था। जिस रात राकेश को अस्पताल से उठाने की बात आई उस शाम को तकरीबन 6 बजे परिजन मुलाकात किए थे। तबीयत बेहतर हो रही थी तो वहां रुकने की खास जरूरत न होने के चलते एक आदमी ही था। वहां विभिन्न पार्टियों के लोग मिलने आते थे। नाम पूछने पर की कौन-कौन तो उन्होंने मना कर दिया।

रात 11 बजे पिता से राकेश ने बात की थी। रात के करीब ढाई-तीन बजे के करीब कुछ लोग अस्पताल के उस कमरे से राकेश को उठा ले गए। उन लोगों ने कहा कि माताजी की तबीयत खराब हो गई इसलिए उन्हें चलना होगा। उसके बाद एसटीएफ की दूसरी टीम आई जो राकेश को वहां न देखकर भौचक्की हुई और इधर-उधर फोन किया। तब आश्वस्त हुए की वो भागे नहीं एसटीएफ ने ही उठाया। एसटीएफ फिर आई और अबकी बार अस्पताल का डीवीआर, कागज पत्तर सब लेकर चले गए। जिससे राकेश के उठाए जाने का कोई सुबूत न मिले। वे बताते हैं कि पिस्टल जैसे असलहों से धमकाया गया। अस्पताल वालों को भी मार-पीट धमकाया कि राकेश के बारे में कुछ नहीं बोलना है। डॉक्टर को भी।

एसटीएफ बता रही है कि वाराणसी से वे चले थे और वाराणसी एसटीएफ पीछा कर रही थी और लखनऊ पहुंचते-पहुंचते एनकाउंटर हुआ। एसटीएफ द्वारा दिखाई जा रही गाड़ी के बारे में कोई जानकारी न होने की बात कहते हुए परिजन कहते हैं कि जिस गाड़ी से वे चलते थे वो वहीं थी। वहीं वे बताते हैं कि अस्पताल में उनके सामने वाले कमरे में एसटीएफ मरीज के रूप में किसी को भर्ती करवाकर निगरानी कर रही थी और मौका मिलते ही उठा लिया।

एक लाख के ईनामी बदमाश की कहानी को खारिज करते हुए परिजन कहते हैं कि उनको एफआईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट यहां तक कि लाश तक नहीं मिली। 2 साल पहले वो मऊ से रिहा हुए थे। कृष्णानंद राय, मन्ना सिंह मामलों से वो बरी हो गए थे। यूपी और जिले में अपराधियों की जो सूची है उसमें भी उनका नाम नहीं है। अगर एक लाख का ईनाम घोषित था तो क्या कोई नोटिफिकेशन जारी था। किस मीडिया में जारी हुआ था। परिजन यह सवाल करते हैं।

राकेश पाण्डेय के बेटे कहते हैं कि जब मालूम चला कि पुलिस ने उनके पिता को मारने के बाद केजीएमसी पोस्टमॉर्टम के लिए लाया है तो 2 बजे वे वहां पहुंचे। वहां से भैसा कुंड श्मशान घाट ले जाने की तैयारी पुलिस कर रही थी। एडिशनल एसपी समेत बहुत से लोग थे। एक केशरवानी एसओ थे जो सरोजिनी नगर के थे। वे उनसे बात कर रहे थे। वहां मीडिया वाले थे जो स्टेटमेंट ले रहे थे तो एसओजी वालों ने उनको रोका-टोका तो बात बहस होने लगी तो कोतवाल ने गाड़ी में बैठा लिया। छह बजे वे भैसाकुंड पहुंचे। उनसे कई कागजों पर न चाहते हुए हस्ताक्षर करवाए गए। सात-साढ़े सात बजे के करीब दाह संस्कार करवा दिया। लाश काली प्लास्टिक में बंधी थी।

राकेश के पिता कहते हैं कि वो लाश मांगते रहे पर उनको नहीं दी गई। क्या मेरा मानवाधिकार नहीं है कि मुझे मेरे बेटे की लाश न मिले।

मीडिया में आया है कि सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट विकास तिवारी ने राकेश पांडेय एनकाउंटर की जांच के लिए याचिका भी दायर की है। कहा है कि जिस तरह विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ वैसे ही राकेश का। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने विकास दुबे मामले में कहा था कि ऐसा फिर नहीं होना चाहिए। अभी कमिशन ने जांच भी नहीं शुरू की, विकास दुबे मामले की तरह दूसरा एनकाउंटर हो गया।

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