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UP Election 2022: आदित्यनाथ को घर मेें ही घेरने में जुटा विपक्ष, BJP संगठन के अंतरविरोध को बना रहा अपना जीत का हथियार
UP Election 2022: आदित्यनाथ को घर मेें ही घेरने में जुटा विपक्ष, BJP संगठन के अंतरविरोध को बना रहा अपना जीत का हथियार
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
UP Election 2022: यूपी विधान सभा चुनाव में गोरखपुर शहर की सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने के एलान के बाद से विपक्षी दलों की रणनीति तेज हो गई है। भाजपा के नजर में कल तक योगी आदित्यनाथ के लिए जो यह सीट सबसे सुरक्षित कही जा रही रही थी,उस राह पर सपा समेत अन्य विरोधी दल कांटे बिछाने में लगे हैं। जिसके पीछे पूर्वांचल की अन्य सीटों को सहेजने के बजाए गोरखपुर की सीट बचाने के लिए सीएम को कड़ा संघर्ष करने के हालात पैदा कर देने की विपक्ष की मंशा साफ नजर आ रही है। विपक्षी दलों की पूरी कोशिश भाजपा के आंतरिक अंतरविरोधों को अपने जीत का हथियार बनाने की है।
गोरखपुर शहर की सीट से लगातार चार बार से विधायक रहे डा.आरएमडी अग्रवाल का टिकट काटकर सीएम योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने के एलान को राजनीति में सामान्य घटना नहीं कही जा सकती। मौजूदा विधायक डा.अग्रवाल भले ही नेतृत्व के निर्णय पर सामान्य प्रतिक्रिया दिए हैं,पर इसका असली भावार्थ जानने के लिए डा.आरएमडी व योगी आदित्यनाथ के रिश्तों को समझना जरूरी है। योगी आदित्यनाथ के चुनाव संचालक रहे डा.राधा मोहन अग्रवाल को पहली बार सीएम ने ही भाजपा विधायक शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ हिंदू महासभा से चुनाव लड़ा कर जीत दिलाई थी। बाद में वे लगातार भाजपा से विधायक बनते रहे हैं।खास बात यह रही कि हर चुनाव में उनके जीत का अंतर बढ़ता गया। बाद के दौर में अपने कार्यशैली व व्यवहार के बदौलत शहर में योगी आदित्यनाथ से उदार छवि बना ली। वर्ष 2017 में भाजपा की बहुमत की बनी सरकार में मंत्री बनने की उम्मीद को कहा जाता है कि योगी आदित्यनाथ ने ही पूरा नहीं होने दिया। दो वर्ष पूर्व एक इंजीनियर के खिलाफ विधायक डा.राधा मोहन अग्रवाल ने जब हमला बोला तो भाजपा के एक गुट से ही उन्हें टकराव झेलना पड़ा। इस दौरान भी योगी व डा.अग्रवाल के रिश्तों को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाया। इंजीनियर का प्रकरण मीडिया में भी खुब उछला। जिसमें पार्टी व सरकार की किरकिरी होते देख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप करना पड़ा था। अब डा. राधा मोहन अग्रवाल का टिकट कटने से उत्पन्न हुई स्थिति एक नया प्रकरण है। लेकिन मुख्यमंत्री को शहर का टिकट मिलने के बाद इसको लेकर कोई अब नया कयास लगाना ठिक नहीं होगा।
गोरखपुर की राजनीति भाजपा नहीं योगी करते रहे हैं तय
आस्था का केंद्र बने गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव इस कदर रहा है कि यहां की राजनीति भाजपा नहीं खुद गोरक्षपीठ तय करती रही है। राममंदिर आंदोलन से लेकर वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव तक इसकी भूमिका को खारिज करने की भाजपा नेतृत्व ने जब भी कोशिश की उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। भाजपा के कददावर नेता व मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ल को चुनाव हराकर योगी आदित्यनाथ ने पहली बार संदेश भी दिया था। इसके बाद समय आने पर भाजपा उम्मीदवारों के सामने हिंदू यूवा वाहिनी का प्रत्याशी खड़ाकर पूर्वांचल के कई सीटों पर योगी द्वारा नेतृत्व को झटका दिए जाने की कहानी बार बार मीडिया में आती रही है।वर्ष 2017 में केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में भाजपा के चुनाव लड़ने व अंतिम समय तक मनोज सिन्हा के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के अटकलों पर विराम लगाकर योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभाल कर संबको अचंभित कर दिया। विधान सभा चुनाव करीब आने पर भाजपा नेतृत्व द्वारा सीएम बदलने की अटकल महिनेभर तक लगती रही। अन्य भाजपा शासित राज्यों में भले ही ऐसा संभव हो गया,पर यूपी में योगी आदित्यनाथ के चाहत के बिना यह कोशिश पूरी नहीं हो सकी। इसे भी भाजपा के एक खेमे ने योगी आदित्यनाथ के लिए व्यक्तिगत जीत माना। यही हाल गुजरात के आईएएस कैडर रहे अरविंद शर्मा को लेकर भी हुआ। प्रधानमंत्री के काफी करीबी कहे जा रहे शर्मा को यूपी में स्थापित करने की कोशिश को योगी आदित्यनाथ के चलते ही झटका लगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के सीट खाली कर देने पर भाजपा नेतृत्व ने लोकसभा सीट पर उप चुनाव पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष डा. उपेंद्र शुक्ल को लड़ाया था। लेकिन भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट होने के बावजूद सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार प्रवीण निषाद से हार का सामना करना पड़ा। इस दौरान कुछ लोगों के तरफ से यह बात उठी थी कि अंतरकलह से यह भाजपा को हार मिली। इसके पीछे भी चर्चा के केंद्र में योगी समर्थक ही बने रहे। इसको साबित करने के लिए तर्क गढ़नेवालों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ कभी नहीं चाहते की उनके गढ़ में कोई और स्थापित होकर भविष्य में चुनौती देने का काम करे। इसके लिए वे बाहरी उम्मीदवार को लड़ाने के ही पक्ष में रहे। इस तर्क को वर्ष 2019 के आमचुनाव में रविकिशन के चुनाव लड़ने से और बल मिला। यहां से रवि किशन अब सांसद हैं।
सपा का अब हो चला है उपेंद्र शुक्ल का परिवार
भाजपा के संसदीय उप चुनाव में उम्मीदवार रहे उपेंद्र शुक्ल का दो वर्ष पूर्व निधन हो गया। वे भाजपा के कददावर नेता के साथ ही ब्राम्हणों के बीच मजबूत पकड़वाले नेता कहलाते थे। गुरुवार को उनकी पत्नी शुभावती शुक्ला, पुत्र अरविंद दत्त शुक्ला और अमित दत्त शुक्ला ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी ज्वाइन कर ली। अब चर्चा है कि ब्राम्हण कार्ड खेलते हुए सपा इनके परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ा सकती है। उधर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पिछले दिनों डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल को टिकट का खुला ऑफर दिया था। यह बयान देकर अखिलेश के तरफ से भाजपा को मुश्किल में डालने की कोशिश करार दी गई थी।
चंद्रशेखर ने चुनाव लड़ने का एलान कर सीएम की बढ़ाई चिंता
गोरखपुर शहरी सीट से सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद रावण ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। भीम आर्मी के मुखिया और आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर जाद ने गुरुवार को मेरठ में ऐलान किया कि वो सीएम योगी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेंगे। एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में आजाद ने कहा, यूपी में बीजेपी का सबसे ताकतवर उम्मीदवार कौन है और यहां कौन कमंडल का प्रतिनिधित्व करता है? वे योगी आदित्यनाथ हैं। यूपी में मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई वापस आ गई है, और मैंने कमंडल को हराने की कसम खाई है। आजाद ने पहले चरण में 12 दलित संगठनों के साथ सामाजिक समावेश गठबंधन नामक गठबंधन की भी घोषणा की। इन संगठनों ने बहुजन समाज के साथ किया है। उन्होंने कहा कि शुरुआती चरण में 33 उम्मीदवार चुनाव लडेंगे।
चंद्रशेखर ने कहा, इस गठबंधन में भारतीय वीर दल, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और सर्वजन लोक समाज जैसी पार्टियां शामिल हैं। वे वाल्मीकि, पाल, कश्यप, पंचाल और कई अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हम यूपी चुनाव के पहले चरण के दौरान एक संयुक्त मोर्चा का प्रदर्शन करेंगे। जब तक हम 403 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करते हैं, तब तक हमारे गठबंधन के सदस्य 100 छोटी पार्टियों को पार कर लेंगे।
आजाद ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने पहले ही उनसे दूरी बना ली है। उन्होंने अपनी पार्टी के समय से पहले अकेले चुनाव लड़ने को लेकर जारी संदेह पर कहा, मैं समझता हूं कि रास्ता कठिन है लेकिन असंभव नहीं है। मैंने पांच साल तक भाजपा और उसकी दमनकारी नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। मैं दो साल से अधिक समय तक जेल में रहा हूं। मेरी लड़ाई वोट बटोरने के लिए नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि दलितों के साथ अमानवीयकरण व्यवहार न हो।
उन्होंने आगे कहा, मैंने केले का नहीं बल्कि आम का पेड़ लगाया है। इसे जड़ जमाने में समय लगता है। यह हमारा पहला अनुभव है। कांशीराम जी कहते थे कि पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा हराने के लिए और तीसरा जीतने के लिए होता है। हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।
कांग्रेस ब्राम्हण या महिला उम्मीदवार पर लगा सकती है दाव
कांग्रेस पार्टी भी गोरखपुर शहरी सीट से मजबूत उम्मीदवार तलाशने में लगी है।पार्टी यहां से किसी महिला या ब्राम्हण उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार सकती है। ऐसे में यह चर्चा तेज हो गई है कि गोरखपुर से पूर्वांचल की सीटों को योगी आदित्यनाथ के माध्यम से समेटने की भाजपा की रणनीति को विपक्षी दल उसे घर में ही घेर कर कमजोर करने में लगे हैं। विपक्ष की यह रणनीति कितना सफल हो पाती है,यह आनेवाला वक्त ही बतायेगा। फिलहाल विपक्ष की घेरेबंदी को तोड़ने के लिए कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ का स्वयं का संगठन हिंदु यूवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने अपनी कमान संभाल ली है। जिसे पांच वर्ष पूर्व आरएसएस ने अपने शर्तों के आधार पर कमजोर करने की जिम्मेदारी दी थी।