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6 लाख रिक्त पदों को भरने के चुनावी वायदे और बेरोजगारी की भयावहता को लेकर योगी सरकार नहीं गंभीर, युवाओं पर लाठीचार्ज निंदाजनक
file photo
लखनऊ। विधानसभा सत्र में रोजगार का मुद्दा उठाने के लिए युवाओं ने सोशल मीडिया में अभियान चलाया। इस दौरान युवा मंच ने मांग की है कि विधानसभा सत्र में सरकार 6 लाख रिक्त पदों को भरने के चुनावी वायदे को पूरा करने का आश्वासन दे। युवा मंच ने शिक्षक भर्ती अभ्यर्थियों पर लाठीचार्ज की भी निंदा की है।
प्रेस को जारी बयान में संयुक्त युवा मोर्चा के केंद्रीय टीम सदस्य और युवा मंच संयोजक राजेश सचान ने कहा कि 6 लाख रिक्त पदों को भरने के चुनावी वायदे और बेकारी की विकराल हो रही समस्या के हल करने को लेकर सरकार कतई गंभीर नहीं है। कहा कि गरिमापूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना सरकार की संवैधानिक जवाबदेही है और रोजगार अधिकार के लिए शांतिपूर्ण ढंग आवाज उठाना युवाओं का लोकतांत्रिक हक है, लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलनों को कुचलने पर सरकार आमादा है।
युवा मंच अध्यक्ष अनिल सिंह ने योगी सरकार पर शिक्षा सेवा चयन आयोग के गठन को लेकर गंभीर न होने का आरोप लगाते हुए कहा कि लाखों युवाओं के भविष्य से जुड़े इस मामले में महज नियमावली की मंजूरी के लिए 3 महीने से ज्यादा समय लग गया, अगर यही हाल रहा तो अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति में 3-4 महीने लगना तय है।
उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की कि वह विधानसभा सत्र में आचार संहिता लागू होने के पहले टीजीटी—पीजीटी 2022 में सभी रिक्त 25 हजार पदों को शामिल कर परीक्षा तिथि घोषित करने समेत लंबित भर्तियां को पूरी करने और एलटी, प्राथमिक शिक्षक, पुलिस आदि भर्तियों की चयन प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन दें।
दूसरी तरफ भाकपा (माले) ने बयान जारी कर कहा है कि 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले के शिकार अभ्यर्थियों को बिना और देरी किये न्याय मिलना चाहिए। पार्टी ने पिछले कई दिनों से राजधानी के ईको गार्डेन में चल रहे अभ्यर्थियों के आंदोलन का समर्थन किया है और आज उनके शांतिपूर्ण विधानसभा मार्च पर हुसैनगंज चौराहे के निकट पुलिस के दमन की कड़ी निंदा की है।
माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने बुधवार 29 नवंबर को जारी बयान में कहा कि सरकार अपनी गलती की सजा इन युवा अभ्यर्थियों को दे रही है, जो नियुक्ति पाने के हकदार हैं। सरकार की संवेदनहीनता के चलते वे सड़क पर उतरने को बाध्य हुए हैं। दरअसल भाजपा सरकार दलित-पिछड़ा आरक्षण को लागू करना नहीं, बल्कि उसे खत्म करना चाहती है। उसकी रुचि ईडब्लूएस यानी सवर्ण आरक्षण को लागू करने में है। ऐसे में दलित-पिछड़ा आरक्षण के हकदार हजारों अभ्यर्थी जो आरक्षण घोटाला के चलते नौकरी पाने से वंचित रह गए हैं, सरकार के मंत्रियों की डेहरी पर गुहार लगा रहे हैं, पुलिस की जोर-जबरदस्ती से लेकर दमन का सामना कर रहे हैं, मगर उनकी मांग को लेकर भाजपा सरकार की कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
एक तरफ नियुक्ति पत्र बांटने की डुगडुगी पीटी जा रही है, कहा जा रहा है कि विपक्ष बेवजह बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा है, दूसरी तरफ नियुक्ति की बाट जोह रहे युवा दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। यह वाकई दुखद है।