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उत्तराखंड

Kiran Negi Murder Case : किरण नेगी के कातिलों को सजा दिलाने के लिए अधिवक्ता हुए सक्रिय, रिव्यू पेटीशन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट फैसले को चुनौती देने की तैयारियों में जुटे

Janjwar Desk
8 Nov 2022 1:03 PM GMT
Kiran Negi Murder Case : किरण नेगी के कातिलों को सजा दिलाने के लिए अधिवक्ता हुए सक्रिय, रिव्यू पेटीशन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट फैसले को चुनौती देने की तैयारियों में जुटे
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Kiran Negi Murder Case : उत्तराखंड मूल की बेटी किरन नेगी के फांसी की सजा प्राप्त बलात्कारियों और दुर्दांत हत्यारों सुप्रीम कोर्ट द्वारा फाँसी की सजा को बदलकर उन्हें बाइज़्ज़त बरी किए जाने को लेकर उत्तराखंड का पारा हाई हो गया है।

Kiran Negi Murder Case : उत्तराखंड मूल की बेटी किरन नेगी के फांसी की सजा प्राप्त बलात्कारियों और दुर्दांत हत्यारों सुप्रीम कोर्ट द्वारा फाँसी की सजा को बदलकर उन्हें बाइज़्ज़त बरी किए जाने को लेकर उत्तराखंड का पारा हाई हो गया है। पहले से अंकिता हत्याकांड के दंश से जूझ रहे उत्तराखंड अब इस नए मानसिक आघात के खिलाफ प्रतिकार करने के लिए अंगड़ाई ले रहा है। राज्य मूल के कुछ अधिवक्ताओं ने इस मामले में पहलकदमी लेते इस मामले में रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की तैयारी शुरू कर दी है। दूसरी तरफ अंकिता हत्याकांड में तमाम आलोचनाओं को झेल चुकी राज्य सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अपने को असहज महसूस कर रही है। मुख्यमंत्री ने इस मामले में केंद्रीय कानून मंत्री से बात करते हुए उत्तराखंड की बेटी के साथ बेइंसाफी न होने का भरोसा दिलाया है।

बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में दिल्ली के छावला गैंगरेप मामले में अपना फैसला सुनाते हुए इस केस के तीनों आरोपी रवि कुमार, राहुल और विनोद को बरी कर दिया है। शीर्ष अदालत ने जिन आरोपियों को बरी किया है, उन्हें ट्रायल कोर्ट ने घटना के दो साल बाद 2014 में इस मामले को दुर्लभ दुर्लभ बताते मौत की सजा सुनाई थी। यह प्रकरण इतना लोमहर्षक और दहला देने वाला था कि आरोपियों द्वारा अपनी सजा के खिलाफ जब हाई कोर्ट में अपील की गई थी तो हाई कोर्ट ने 26 अगस्त 2014 को न केवल इस फैसले को यथावत रखा, बल्कि अपनी ओर से यह टिप्पणी भी की थी "यह दोषी ऐसे शिकारी हैं, जो सड़क पर शिकार की तलाश में घूम रहे थे। इन पर रहम करना कानून के साथ खिलवाड़ होगा।"

संक्षेप में केस कुछ इस तरह से था कि साल 2012 में दिल्ली में उत्तराखण्ड की 19 वर्षीय लड़की के साथ आरोपियों ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर उसकी हत्या कर दी थी। जिस युवती के साथ यह सब हुआ, वह किरण मूल रूप से उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल के नैनीडांडा क्षेत्र की रहने वाली थी। 9 फरवरी 2012 को आम दिन की तरह वह अपनी नौकरी से घर की ओर जा रही थी। इसी दौरान रास्ते में राहुल, रवि और विनोद नाम के तीनों आरोपियों ने लड़की को अगवा कर लिया। इसके बाद उन हैवानों ने उस लड़की के साथ जो किया,वह किसी का भी कलेजा चीर देने वाला था। गैंगरेप के बाद किरण की आँखो और कान में तेजाब डाला गया। पेंचकस से उसकी आँखें फोड़ दी गयी। गुप्तांग में शराब की बोतल घुसाकर बोतल फ़ोड दी गयी। हैवानियत की कोई हरकत नहीं बची थी, जिसको किरण ने न झेला हो। पुलिस में रिपोर्ट के बाद लड़की की लाश हरियाणा के रेवाड़ी में बहुत बुरी हालत में मिली। जाँच में पता भी चला कि उसे काफी यातनाएं दी गयीं थी। जाँच में भी पता चला कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के अलावा आरोपियों ने उसके शरीर को सिगरेट और गर्म लोहे से दागा था। लड़की के चेहरे और आंखों पर तेजाब डाला गया था। उसे कार में मौजूद औजारों से बुरी तरह पीटा गया था।

निचली अदालत और हाईकोर्ट से आरोपियों को फाँसी की सजा मुक़र्रर होने के बाद गैंगरेप का यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।जहां चीफ जस्टिस यूयू ललित और एस. रवींद्र भट्ट और बेला एम. त्रिवेदी ने इस मामले पर 6 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था। दिल्ली सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने आरोपियों को फाँसी की सजा की पुष्टि की माँग की थी। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा था कि इन वहशी दरिंदों की वजह से परिवारों को अपनी लड़कियों को बाहर भेजने से डर लगता है। इस दौरान दोषियों के सुधार आने की संभावना पर विचार करने का भी अनुरोध किया गया था। कोर्ट को यह दलील दी गई कि दोषियों में से एक जिसका नाम विनोद है, वह बौद्धिक अक्षमता से पीड़ित है। उसके सोचने विचारने की शक्ति ठीक नहीं है। दोषियों की तरफ से पेश वकील ने इनके खिलाफ सहानुभूति भरा रवैया अपनाने का आग्रह किया था। जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सजा पाए इन लोगों को बरी कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद उत्तराखंड के कानूनी जानकारों में इस केस को लेकर बहस छिड़ी हुई है। जानकारों के मुताबिक रेयरेस्ट ऑफ रेयर इस अपराध में अपराधियों का बरी होना दिल्ली पुलिस के अपराध के साक्ष्य संकलन,एविडेंस एक्ट की सही व्याख्या और भारतीय न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है और न्यायपालिका पर विश्वास रखने वाले सभ्य समाज का मनोबल तोड़ने वाला है। इसी के साथ उत्तराखण्ड मूल के कुछ संवेदनशील अधिवक्ता इस हैरतअंगेज फैसले को रिव्यू पेटीशन के माध्यम से चुनौती देने की तैयारियों में जुट गये हैं। सूत्रों ने अधिवक्ता का नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि इस बारे में वह युवती के परिवार के साथ संपर्क में हैं। जल्द ही इस मामले में निर्णय लेकर अगला कदम उठाया जायेगा।

जबकि दूसरी तरफ अंकिता हत्याकांड की वजह से तमाम आलोचनाओं का केंद्र बनी राज्य सरकार भी इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सक्रिय हो गई है। उत्तराखंड के पौड़ी निवासी 19 वर्षीय युवती का अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए तीन आरोपियों को बरी करने के मामले में राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि कोर्ट ने जो फैसला किया है, उस पर उन्होंने इस केस देख रही एडवोकेट चारू खन्ना से बात की है। साथ ही इस मुद्दे पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू से भी बात की गई है। उन्होंने कहा कि पीड़िता हमारे देश की बेटी है और उसे न्याय दिलाने के लिए हम सब कुछ करेंगे।

दूसरी ओर दिल्ली छावला हत्या एवं बलात्कार के दोषियों को सर्वोच्च न्यायालय से आरोपमुक्त करने के खिलाफ देहरादून में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने मंगलवार को जोरदार प्रदर्शन कर दोषियों को निचली अदालत की फांसी की सजा बरकरार रखने की मांग की। इस दौरान देहरादून में सीपीएम कार्यकर्ताओं ने जिला कार्यालय से जलूस निकालकर राजपुर रोड पर पुतला दहन भी किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार ने न्याय एवं कानून व्यवस्था का मखौल बनाकर रख दिया है। इसलिए सरकार एवं न्यायालय की मिलीभगति के चलते बिलकिस बानोकांड के हत्यारे एवं बलात्कारी जेल से रिहा हो जाते हैं। गुजरात दंगों के खिलाफ पैरवी करने वाली तिस्ता शीतलवाड़ को जेल के सलाखों के पीछे जाना पड़ता है। यदि न्यायालयों एवं देश की सरकार जनविरोधी फैसले लेते रहे तो निश्चित रूप से जनता सड़कों पर उतरेगी। अभी अंकिता आदि हत्याकांड में राज्य की जनता न्याय मांग ही रही थी कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उत्तराखंड एवं देश की जनता को निराश किया है। उत्तराखंड की बेटी के माता पिता को न्याय की उम्मीद थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उन्हें भी धक्का लगा। साथ ही न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं। देश की जनता सुप्रीम कोर्ट के फैसले से स्तब्ध है। वक्ताओं ने कहा है कि यदि न्यायालय ने अपराधियों की सजा बरकरार नहीं रखी केन्द्र की भाजपा सरकार ने पीड़ितों के लिए न्याय एवं सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया, तो आन्दोलन को व्यापक बनाया जाऐगा।

इस अवसर पर पार्टी राज्य सचिव मंडल सदस्य सुरेन्द्र सिंह सजवाण, जनवादी महिला समिति की प्रान्तीय उपाध्यक्ष इन्दु नौडियाल, सीपीएम के जिला सचिव राजेन्द्र पुरोहित, देहरादून महानगर सचिव अनन्त आकाश, सीटू के प्रांतीय महामन्त्री महेंद्र जखमोला, प्रान्तीय सचिव लेखराज, वीएस के इन्देश नौटियाल, कमलेश खन्तवाल, सतीश धौलाखंडी, सीटू के अध्यक्ष किशन गुनियाल, भगवन्त पयाल, रविन्द्र नौडियाल, कलम सिंह लिंगवाल, सैदुल्लाह अंसारी, एन एस पंवार, मामचन्द आदि बड़ी संख्या पार्टी कार्यकर्ता शामिल थे।

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