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राष्ट्रीय

1 व्यक्ति 1 सीट पर चुनाव के पीछे ECI का क्या है तर्क, पहली बार केंद्र के पास कब आया था प्रस्ताव

Janjwar Desk
9 Oct 2022 4:14 PM IST
पहली बार चुनाव आयोग ने एक व्यक्ति एक सीट पर चुनाव का प्रस्ताव 2004 में केंद्र सरकार के सामने रखा था।
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पहली बार चुनाव आयोग ने एक व्यक्ति एक सीट पर चुनाव का प्रस्ताव 2004 में केंद्र सरकार के सामने रखा था।

पहली बार चुनाव आयोग ( Election Commission ) ने एक व्यक्ति एक सीट पर चुनाव का प्रस्ताव 2004 में केंद्र सरकार के सामने रखा था। तब से अभी तक यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है।

नई दिल्ली। अठारह साल बाद एक बार फिर चुनावी खर्च ( election expenses ) को कम करने के लिए एक व्यक्ति एक सीट ( one person one seat election ) पर चुनाव का प्रस्ताव चर्चा में है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने नये सिरे से इस पर जोर दिया है। उन्होंने वन कैंडिडेट वन सीट का प्रस्ताव विचार के लिए मोदी सरकार ( central government ) के पास भेजा है। चुनाव आयोग ( Election commission ) ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के साथ इस मुद्दे पर चर्चा भी की है। अगर केंद्र सरकार इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति देती है तो चुनावी खर्च को कम करने में मदद मिलेगी।

साल 2004 में पहली बार वन कैंडिडेट वन सीट ( one person one seat election ) का प्रस्ताव चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार के पास भेजा था लेकिन एनडीए से लेकर यूपीए की सरकारों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसकी चर्चा नये सिरे से इसलिए उठी है कि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई भी जारी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चुनाव आयोग से राय देने को कहा था। पिछले 18 साल में इस नियम को लागू करने के संबंध में कुछ प्रगति नहीं हुई। यानि अभी तक सरकारों ने इसे ठंडे बस्ते में ही डाले रखना मुनासिब समझा है। अब एक बार फिर निर्वाचन आयोग ने नए सिरे से इस नियम को लागू करवाने पर जोर देना शुरू किया है। वर्तमान में जनप्रतिनिधित्व कानून के सेक्शन 33 (7) में मौजूद नियमों के अनुसार एक व्यक्ति दो सीटों से चुनाव लड़ सकता है।

ईसी ( Election Commission of India ) के इस प्रस्ताव पर अमल के लिए पहले तो सरकार का राजी होना जरूरी है। मोदी सरकार राजी हो भी गई तो एक व्यक्ति एक सीट नियम लागू करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) में बदलाव करना होगा। इस राह में एक परेशानी ये भी है क्या विपक्षी दलों के नेता इसे लिए राजी होंगे?

प्रस्ताव के पीछे ईसी का तर्क

साल 2004 में पहली बार निर्वाचन आयोग ( Election commission ) ने केंद्र सरकार के पास 'एक व्यक्ति एक सीट' का प्रस्ताव भेजा था, तो तर्क दिया था कि अगर एक व्यक्ति 2 सीटों से चुनाव लड़ता है और दोनों जगह से जीतने के बाद एक सीट खाली करता है तो उपचुनाव कराने में फिर खर्च आता है। एक तरह से यह पैसे का दुरुपयोग है। इस बात को ध्यान में रखते हुए देखते सीट छोड़ने वाले निर्वाचित उम्मीदवार को सरकार के अकाउंट में एक निश्चित रकम जमा करने का नियम बनाने की भी सिफारिश ईसी ने की थी।

निर्वाचन आयोग का तर्क है कि प्रस्ताव ( one person one seat election ) पर अमल से उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी। इससे सरकारी कोष पर पड़ने वाले वित्तीय भार को कम किया जा सकेगा। कुछ वर्ष पहले किसी भी प्रत्याशी के एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका पर अपना पक्ष रखते हुए चुनाव आयोग ने एक उम्मीदवार-एक सीट पर चुनाव लड़ने का समर्थन किया था।

उपचुनाव का खर्च उठाने की जिम्मेदारी सीट छोड़ने वाले की

एक उम्मीदवार के दो सीटों से चुनाव लड़ने का प्रावधान समाप्त किया जाए। चुनाव आयोग पहले भी कह चुकी है कि यदि सरकार इस प्रावधान को बनाए ही रखना चाहती है तो उपचुनाव का खर्च उठाने की ज़िम्मेदारी सीट छोड़ने वाले प्रत्याशी पर डाली जाए। विधानसभा व विधान परिषद के उपचुनाव के मामले में राशि 5 लाख रुपए और लोकसभा उपचुनाव में राशि 10 लाख रुपए होनी चाहिए। दो सीटों पर चुनाव लड़ने से संसाधन की बर्बादी होती है क्योंकि 6 महीने के अंदर एक सीट खाली करनी ही होती है।

प्रत्याशी को 1 ही सीट से चुनाव लड़ने का मिले मौका

इस मसले पर याचिकाकर्त्ता व भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को चुनौती देते हुए अपील की थी कि संसद या विधानसभा सहित सभी स्तरों पर प्रत्याशी को सिर्फ एक ही सीट से चुनाव लड़ने का अधिकार मिले। धारा 33(7) में यह व्यवस्था की गई है कि कोई व्यक्ति दो सीटों से आम चुनाव अथवा कई उपचुनाव अथवा द्विवार्षिक चुनाव लड़ सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले में भारत के अटार्नी जनरल को अपनी राय देने का निर्देश दिया है।

विधि आयोग ने 2015 में जताई थी अपनी सहमति

1996 से पूर्व कोई प्रत्याशी कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था, जिसे बाद में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके दो सीटों तक सीमित किया गया था। मार्च 2015 में विधि आयोग ने चुनाव सुधारों ( Election reform ) पर अपनी 211 पन्नों की 255वीं रिपोर्ट में अनेक उपाय सुझाए थे। इनमें एक सुझाव उम्मीदवारों को एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने से रोकने और निर्दलीय उम्मीदवारों की उम्मीदवारी प्रतिबंधित करने का भी शामिल था। मौजूदा व्यवस्था में चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार उतरते हैं, जिनमें से अधिकतर डमी उम्मीदवार होते हैं तथा कई तो एक ही नाम के होते हैं जिनका उद्देश्य मतदाताओं में भ्रम फैलाना होता है।

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