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पर्यावरण

Wildlife Conservation: 50 हजार वन्‍यजीव प्रजातियाँ कर रहीं सेवा, अरबों लोग खा रहे मेवा

Janjwar Desk
9 July 2022 4:46 PM IST
Wildlife Conservation: 50 हजार वन्‍यजीव प्रजातियाँ कर रहीं सेवा, अरबों लोग खा रहे मेवा
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 देश में कागजों पर भले ही संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ रहा हो पर वन्यजीवों की संख्या के लिहाज से ये पर्याप्त नहीं है और वन्यजीवों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहना पड़ रहा है

Wildlife Conservation: हर पांच में से एक व्‍यक्ति अपनी आमदनी और भोजन के लिये वन्‍यजीव प्रजातियों पर निर्भर है, इंसान के भोजन के लिये 10 हजार वन्‍यजीव प्रजातियों का दोहन होता है...

Wildlife Conservation: अक्‍सर 'जैव-विविधता के लिये आईपीसीसी' के तौर पर वर्णित की जाने वाली अंतर्राष्‍ट्रीय शोध एवं नीति इकाई आईपीबीईएस ने एक नयी रिपोर्ट जारी की है, जो कहती है- विकसित और विकासशील देशों में रहने वाले अरबों लोग भोजन, ऊर्जा, सामग्री, दवा, मनोरंजन, प्रेरणा तथा मानव कल्याण से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण योगदानों के लिए वन्य प्रजातियों के इस्तेमाल से रोजाना फायदा उठाते हैं। बेतरतीब शिकार को 1341 स्तनधारी वन्यजीव प्रजातियों के लिए खतरा माना गया है।

हाल में लगाए गए वैश्विक अनुमानों से इस बात की पुष्टि हुई है कि करीब 34% समुद्री वन्य, मत्स्य धन का जरूरत से ज्यादा दोहन किया गया है। वहीं 66% फिश स्टॉक को जैविक रूप से सतत स्तरों के अनुरूप निकाला गया है।

एक अनुमान के मुताबिक 12% जंगली पेड़ प्रजातियां गैर सतत रूप से कटान के खतरे के रूबरू हैं। वहीं गैर सतत एकत्रण भी अनेक पौध समूहों पर मंडराता एक प्रमुख खतरा है। इनमें कैक्टी, साईकैड्स और आर्चिड मुख्य रूप से शामिल हैं। बढ़ते हुए वैश्विक जैव विविधता संकट, जिसमें कि पौधों और जानवरों की लाखों प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। ऐसे में लोगों के प्रति होने वाले इन योगदानों पर खतरा है।

इंटरगवर्नमेंटल साइंस पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज (आईपीबीईएस) की एक नई रिपोर्ट पौधों, जानवरों, कवक (फंजाई) एवं शैवालों (एल्गी) की जंगली प्रजातियों का अधिक सतत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अंतर्दृष्टि, विश्लेषण और उपकरण पेश करती है। सतततापूर्ण इस्तेमाल का मतलब उस स्थिति से है जब मानव कल्याण में योगदान करते हुए जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी तंत्र की क्रियाशीलता बनाए रखी जाए।

वन्य जीव प्रजातियों के सतत उपयोग पर आईपीबीईएस की आकलन रिपोर्ट प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान से जुड़े हुए 85 प्रमुख विशेषज्ञों की 4 साल की मेहनत का नतीजा है। इसमें देसी और स्थानीय जानकारी रखने वाले लोगों तथा 200 योगदानकर्ता लेखकों का भी योगदान है और इसमें 6200 से ज्यादा स्रोतों का उपयोग किया गया है।

1) हर पांच में से एक व्यक्ति लगभग (1.6 बिलियन) अपने भोजन और आमदनी के लिए वन्यजीवों पर निर्भर करता है। वहीं, हर तीन में से एक व्यक्ति (2.4 बिलियन) खाना पकाने के लिए ईंधन के तौर पर लकड़ी पर निर्भर करते हैं।

2) 10,000 से ज्यादा वन्यजीवों को सीधे तौर पर इंसान के भोजन के लिए काटा जाता है वही अनेक अन्य को अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल किया जाता है। कुल मिलाकर देखें तो यह आंकड़ा लगभग 50000 है।

3) जलवायु परिवर्तन बढ़ती मांग और उत्खनन संबंधी प्रौद्योगिकियों में दिन-ब-दिन होती तरक्की वन्य जीव प्रजातियों के सतत इस्तेमाल के सामने संभावित प्रमुख चुनौतियों में शामिल हैं और इन समस्याओं के समाधान के लिए रूपांतरणकारी बदलाव की जरूरत है।

4) पिछले 20 वर्षों के दौरान वन्य जीव प्रजातियों का इस्तेमाल समग्र रूप से बढ़ा है मगर इसकी सततता विभिन्न पद्धतियों में अलग अलग हुई है। जहां तक अत्यधिक दोहन का सवाल है तो यह अब भी बेहद आम बात है।

5) न सिर्फ भोजन या ऊर्जा के लिए बल्कि दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, सजावट और मनोरंजन के लिए भी वन्यजीवों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालात यह हैं कि उनका इस्तेमाल इस हद तक किया जा रहा है जितना कि हम सोच भी नहीं सकते।

6) एक अनुमान के मुताबिक जंगली जीवों का अवैध व्यापार लगभग 199 बिलियन डॉलर का है और अवैध कारोबार के मामले में यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा व्यापार है।

डॉक्टर मार्ला आर एमेरी (अमेरिका/नॉर्वे) और प्रोफेसर जान डोनाल्डसन (दक्षिण अफ्रीका) के साथ इस असेसमेंट की सह अध्यक्षता करने वाले डॉक्टर जी माक फोमोंता ने कहा "दुनिया में विभिन्न पद्धतियों से करीब 50000 वन्य जीव प्रजातियां इस्तेमाल की जाती हैं। इनमें से 10000 प्रजातियां ऐसी हैं जिनका प्रयोग सीधे तौर पर इंसान के खाने के लिए किया जाता है। ऐसे में विकासशील देशों के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग इन जीवों के गैर सतत उपयोग के सबसे ज्यादा जोखिम से जूझते हैं क्योंकि उनके पास विकल्पों की कमी होती है। नतीजतन वे उन वन्य जीव प्रजातियों का और भी ज्यादा दोहन करते हैं, जो पहले से ही विलुप्त होने की कगार पर हैं।"

इस रिपोर्ट में जंगली प्रजातियां के गैर कानूनी इस्तेमाल और अवैध व्यापार का भी समाधान पेश किया गया है क्योंकि यह सभी पद्धतियों में होता है और अक्सर इसका नतीजा गैर सतत इस्तेमाल के तौर पर सामने आता है। लकड़ी और मछली का अनुमानित सालाना अवैध व्यापार 199 बिलियन डॉलर है। इस तरह वन्य प्रजातियों के अवैध कारोबार में इन दोनों की कुल मात्रा सबसे ज्यादा है।

प्रोफेसर डोनाल्डसन ने कहा "अत्यधिक दोहन किया जाना जमीन पर रहने वाली और पानी में निवास करने वाली अनेक जंगली प्रजातियां के लिए प्रमुख खतरो में शामिल है। गैर सतत इस्तेमाल के कारणों का समाधान और इस सिलसिले को जहां तक संभव हो, पलट देने से ही जंगली प्रजातियों और उन पर निर्भर लोगों के लिए बेहतर नतीजे मिलेंगे।

डॉक्टर फोमोंता ने कहा "उदाहरण के लिए नीले पर वाली अटलांटिक टूना मछली की तादाद को फिर से बढ़ाया गया है और अब उसका शिकार सतततापूर्ण स्तरों पर किया जा रहा है।"

जहां जंगली प्रजातियों के व्यापार से उनके निर्यातकर्ता देशों को महत्वपूर्ण आमदनी हासिल होती है, उनके उत्पादकों को अधिक आय मिलती है और इससे आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई जा सकती है ताकि प्रजातियों से दबाव को पुनः निर्देशित किया जा सके और यह उनके मूल स्थानों से जंगली प्रजातियों की खपत को भी कम करता है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रभावी नियम-कायदों के बगैर (स्थानीय से लेकर वैश्विक तक) जंगली प्रजातियों के वैश्विक व्यापार में आमतौर पर वन्य प्रजातियों पर दबाव बढ़ जाता है जिससे बेतरतीब इस्तेमाल होता है और कभी-कभी इससे जंगली आबादी पर बहुत बुरा असर पड़ता है (उदाहरण के लिए शार्क फिन का व्यापार)।

रिपोर्ट में पाया गया है "वन्य प्रजातियों का व्यवस्थित उपयोग अनेक देशज लोगों तथा स्थानीय समुदायों की पहचान और अस्तित्व का केंद्र है। ये पद्धतियां और संस्कृतियां विविधतापूर्ण हैं, मगर उनके मूल्य साझा हैं। इन मूल्यों में प्रकृति को ससम्मान अपने साथ जोड़ने, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव, बर्बादी से बचना, कटान का प्रबंधन और समुदाय की भलाई के लिए वन्यजीवों से होने वाले लाभों के निष्पक्ष और समानतापूर्ण वितरण को सुनिश्चित करना शामिल है। विश्व स्तर पर वनों की कटाई स्वदेशी क्षेत्रों में आमतौर पर कम होती है।"

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