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समाज

डेढ़ साल के मासूम बेटे का इलाज करवाना एवरेस्ट की चढ़ाई से भी ज्यादा कठिन रहा मजदूर पिता के लिए

Prema Negi
18 Oct 2019 4:16 AM GMT
डेढ़ साल के मासूम बेटे का इलाज करवाना एवरेस्ट की चढ़ाई से भी ज्यादा कठिन रहा मजदूर पिता के लिए
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मजदूर और मजबूर बाप का बीमार बेटे को लेकर अस्पताल दर अस्पताल भटकने का सफर रहा बहुत पीड़ादायी, मैनपुरी के गांव से दिल्ली के लोकनायक अस्पताल में बेटे की सर्जरी होने तक दर्जनों अस्पतालों के खटखटाये दरवाजे, किसी ने भारी-भरकम बजट बताया तो किसी ने आधार कार्ड न होने को बनाया बहाना

बमुश्किल 4-5 हजार रुपया महीना कमाने वाले प्रदीप जैसों का नहीं बन रहा आयुष्मान कार्ड तो आखिर यह योजना है किसके लिए, सारी पात्रताओं पर खरे उतरने के बावजूद कई बार कोशिश करने के बावजूद योगीराज में नहीं बन पाया था प्रदीप का आयुष्मान कार्ड, जबकि पीएम मोदी गरीबों के इलाज को लेकर करते रहते हैं तमाम दावे और वादे...

सुशील मानव की रिपोर्ट

ल 18 अक्टूबर को लोकनायक अस्पताल में पूनम व प्रदीप के डेढ़ वर्षीय बेटे वंश का ऑपरेशन हो गया, पर ये इतना भी आसान नहीं था। प्रदीप और पूनम के लिए बेटे का इलाज़ करवाना एवरेस्ट की चढ़ाई करने से कमतर तो हरगिज न था। मैनपुरी के कृषि मजदूर प्रदीप पूनम और डेढ़ वर्षीय वंश के संघर्ष की कहानी हिलाकर रख देती है।

हानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद स्थित घिरोर तहसील, पोस्ट मदनपुर के गांव ठाकुरपुर से। प्रदीप और पूनम गांव ठाकुरपुर के रहने वाले हैं। उनके डेढ़ वर्षीय एकलौते बेटे वंश को करीब चार महीने पहले एक दिन अचानक तेज बुखार हो गया। वो अपने बच्चे को मैनपुरी के सिंह अस्पताल लेकर गए, लेकिन 15 दिन तक लगातार उसे बुखार बना रहा। फिर वो अपने बच्चे को मैनपुरी के जिला अस्पताल लेकर गए। 2 बार दिखाया, दवा लेकर खिलायी, पर आराम नहीं मिला। तो वो अपने बच्चे वंश को लेकर फिरोज़ाबाद के जीवनधारा अस्पताल गए। वहां के डॉ. धर्मेंद्र अग्रवाल ने 15 दिन की दवा दी, पर बच्चे को आराम नहीं मिला। यहां से निराश होकर पूनम और प्रदीप वंश को लेकर फर्रुखाबाद में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. भल्ला के भल्ला हॉस्पिटल गए।

डॉक्टर से ज्यादा समझदार टेक्नीशियन

डॉ. सी.एन. भल्ला के इलाज़ से वंश का बुखार तो ठीक हो गया, लेकिन उसके पैरों में दिक्कत पैदा हो गई। फिर चलना तो दूर वंश अपने पैरों पर खड़ा तक न हो पा रहा था। प्रदीप बेटे वंश को लेकर फिर से डॉ सी.एन. भल्ला के पास गए तो उन्होंने पैर के अल्ट्रासाउंड के लिए भेज दिया। वंश की माँ पूनम ने डॉक्टर से कहा कि उन्हें लग रहा है जैसे कि उनके बेटे का सिर कुछ बड़ा हो गया है। इस पर डॉ भल्ला ने कहा कि नहीं बच्चों के सिर का साइज यही होता है।

प्रदीप और पूनम वंश को लेकर पैर का अल्ट्रासाउंड कराने के लिए जब आर. के. हॉस्पिटल के पैथोलॉजी लैब गए तो अल्ट्रासाउंड करने वाले टेक्नीशियन ने वंश को देखा, उसने वंश के बढ़े हुए सिर को नोटिस किया और उसके पिता से वंश के पैरों के बजाय सिर का अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह दी। प्रदीप व पूनम राजी हो गए और लैब टेक्नीशियन ने सिर का अल्ट्रासाउंड करके रिपोर्ट प्रदीप को देते हुए कहा कि इसके सिर में पानी है, जिससे इसका सिर का आकार बढ़ रहा है। रिपोर्ट देखने के बाद शिशु विशेषज्ञ डॉ. भल्ला ने प्रदीप और पूनम से कहा कि इसका इलाज़ केवल दिल्ली या आगरा में हो सकता है।

बीमार बेटे को लेकर अस्पताल-दर-अस्पताल दौड़ने का पीड़ादायी सिलसिला

यहां से शुरू हुआ पूनम और प्रदीप का बीमार बेटे को लेकर अस्पताल दर अस्पताल भटकने का पीड़ादायी सफर। डॉ. भल्ला के कहे अनुसार पूनम और प्रदीप अपने बेटे को आगरा के पुरुषोत्तम अस्पताल ले गए। वहाँ उन्हें इलाज में 1 लाख 40 हजार का खर्च बताया गया। कृषि मजदूर प्रदीप और पूनम के पास इतने पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने बेटे वंश के इलाज के लिए राजधानी दिल्ली का रुख किया। दिल्ली में कुछ दिन भटकने के बाद वो वंश को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल लेकर गए। वहां वंश को 23 से 28 अगस्त यानी 6 दिन तक भर्ती रखा गया। वहां उसका सारा चेकअप हुआ और फिर जीबी पंत अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।

गरीब मां-बाप के साथ इलाज के दौरान 18 वर्षीय वंश

सके बाद प्रदीप और पूनम वंश को लेकर पंत अस्पताल गए। वहां उसका इलाज 30 अगस्त से शुरू हुआ। वंश को दवाइयां तो मुहैया करा दी जाती थीं, लेकिन बेड न खाली होने का कारण देकर इंतज़ार करने को कहा जाता। इस तरह पूनम और प्रदीप बीमार बेटे को लेकर पूरे एक महीने पंत अस्पताल के सामने फुटपाथ पर डेरा डाले रहे, लेकिन अस्पताल में एक भी बेड खाली न होने का कारण बताकर अस्पताल प्रबंधन ने अपनी असमर्थता जता दी। बुखार की दवा तक पंत अस्पताल में उपलब्ध नहीं करायी गयी। प्रदीप को बुखार की दवा लेने के लिए लोकनायक अस्पताल जाना पड़ा।

आधारकार्ड न होने के कारण बच्चे को भर्ती करने से इंकार कर दिया कपूर अस्पताल ने

जब प्रदीप बेटे की दवा लेने लोकनायक अस्पताल पहुंचे तो वहाँ उन्हें किसी भुक्तभोगी ने सुप्रीम कोर्ट के वकील, सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल से मदद मांगने की राय दी। अशोक अग्रवाल से प्रदीप मिले तो उन्होंने अपने लेटरहेड पर एक सिफारिशी पत्र लिखकर प्रदीप को दिया। प्रदीप सिफारिशी पत्र के साथ बेटे को लेकर पूसा रोड स्थित बीएल कपूर मेमोरियल अस्पताल गए। वहाँ पहले उन्हें सिफारिश पत्र पर मोहर न होने के चलते लौटाया गया। जब मोहर लगवाकर वो दोबारा गए तो उनसे बीमार बेटे का आधार कार्ड और राशन कार्ड में नाम माँगा गया।

फिर डेढ़ वर्षीय वंश का आधार कार्ड न होने और राशन कार्ड में उसका नाम न दर्ज होने का बहाना बताकर उन्हें इलाज़ देने से मना कर दिया गया। प्रदीप बताते हैं कि वो पिछले साल अपने बेटे का आधार कार्ड बनवाने नजदीकी सेंटर पर बेटे को लेकर गए थे लेकिन उनका बेटा अभी बहुत छोटा है ऐसा कहकर आधारकार्ड नहीं बनाया गया।

बीएल कपूर अस्पताल से भर्ती और इलाज की मनाही होने के बाद प्रदीप और पूनम बेटे वंश को लेकर विमहंस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल गए। वहां उन्हें तीन-चार घंटे रोकने के बाद बताया गया कि उनके यहाँ सर्जरी करने वाले डॉक्टर नहीं हैं। यह अंतहीन सिलसिला पता नहीं और कितना ज्यादा खिंचता अगर अशोक अग्रवाल की कोशिशों से नन्हे वंश का मामला मीडिया में न आ गया होता।

शोक अग्रवाल ने ही प्रदीप को एक टीवी पत्रकार से मिलवाया, जिन्होंने प्रदीप का इंटरव्यू किया। प्रदीप का इंटरव्यू टीवी पर आने के बाद दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी के मीडिया पैनलिस्ट अक्षय मराठे से प्रदीप की बात हुई, जिन्होंने कहा कि वे अपने बीमार बेटे को लेकर लोकनायक अस्पताल जाकर सीनियर डॉक्टर पीएन पांडेय से मिलें। इसी के बाद वंश के आपरेशन को लेकर डॉक्टरों ने तेजी दिखायी।

प्रदीप बताते हैं, 'इस मामले में अशोक अग्रवाल की कोशिशों से मीडिया ने हमारा बहुत साथ दिया। अख़बार में मामला आने के बाद ही उनके बेटे को 14 अक्टूबर को लोकनायक अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। वहां डॉ पीएन पांडेय वंश का इलाज कर रहे हैं। वंश का सारा चेकअप हुआ और फिर 17 अक्टूबर को सर्जरी करके आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है। प्रदीप बताते हैं कि डॉक्टरों का कहना है कि वो पहले सर्जरी के जरिए सिर में पाइप डालकर पानी निकालेंगे और फिर जांच होगी। अगर कोई गांठ होगी तो उसे दोबारा ऑपरेशन करके निकाला जाएगा। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा बच्चे का सिर के बल गिरने और सिर में चोट लगने से होता है।

आयुष्मान भारत योजना यानी थोथा चने बाजे घना

आयुष्मान भारत योजना का लाभ क्यों नहीं लेते? पूछने पर प्रदीप बताते हैं कि साल 2018 की शुरुआत में उन्होंने आयुषमान कार्ड के लिए ऑनलाइन अप्लाई किया था। नहीं बना तो दोबारा फिर 2019 में अप्लाई किया, लेकिन उनका आयुष्मान कार्ड नहीं बना। जबकि उनके पास सभी ज़रूरी पात्रता थी। प्रदीप के पास डेढ़ बीघा जमीन है और वो कृषि-मजदूर हैं। खेती का मौसम होता है तो काम मिल जाता है। 4-5 हजार की कमाई हो जाती है, मौसम नहीं होता तो काम नहीं मिलता। उनके पास आय का दूसरा कोई साधन भी नहीं है। प्रदीप और सुमन के पास सिर्फ़ एक मोबाइल है वो भी कीपैड वाला। उनके पास स्मार्टफोन नहीं है, शायद इसीलिए वो अभी डिजिटल इंडिया के नागरिक नहीं बन पाए नहीं हैं।

हजारों लोग हर महीने इलाज़ के लिए आते हैं दिल्ली

देश के दूसरे प्रदेशों से इलाज़ के लिए दिल्ली आने वाले बहुत से लोग सिफ़ारिशी पत्र के लिए सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल के पास आते हैं। इलाज़ के लिए अस्पताल दर अस्पताल धक्के खाते प्रदीप जैसे लोगों को कोई न कोई व्यक्ति अशोक अग्रवाल से मदद लेने की सलाह दे ही देता है।

शोक अग्रवाल कहते हैं, 'एम्स में हर माह दूसरे राज्यों से हजारों लोग इलाज़ के लिए आते हैं, जबकि पंत और लोकनायक अस्पताल में भी सैकड़ों मरीज हर महीने आते हैं। ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें उनके राज्यों में सरकारें इलाज तक मुहैया करवा पा रही हैं, जबकि दिल्ली आने पर उन्हें कई बार अलग-अलग कारणों से इलाज़ नहीं मिल पाता है।'

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